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प.बंगाल चुनाव में राहुल की देरी से एंट्री, औपचारिकता या राजनीतिक रणनीति?

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Published : Apr 15, 2021, 7:41 PM IST

देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद को अभी तक बंगाल से दूर रखा था. बुधवार को पहली बार उन्होंने पश्चिम बंगाल में चुनावी रैलियां की. राहुल ने चुनावी अभियान में ज्यादातर वक्त दक्षिण भारत के राज्य केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में गुजारा. इसके अलावा करीब आधा दर्जन रैलियां असम में की थीं. ऐसे में पश्चिम बंगाल में राहुल का देरी से चुनावी रैलियां करना कई सवाल खड़े कर रहा है.

राहुल
राहुल

नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव आठ चरणों में हो रहे हैं, जिसमें से चार चरण की वोटिंग हो चुकी है और पांचवें चरण के लिए 17 अप्रैल को मतदान होना है. इस दौरान भाजपा और टीएमसी धुआंधार रैलियां कर एक-दूसरे को कांटे की टक्कर दे रही हैं. ऐसे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को पहली बार चुनाव प्रचार कर, सबको यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि पश्चिम बंगाल में इतनी देरी से चुनाव प्रचार सिर्फ औपचारिकता है या राजनीतिक रणनीति?

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को पश्चिम बंगाल में पहली बार चुनाव प्रचार किया, वो भी ऐसे समय में जब विधानसभा चुनाव के आठ में से चार चरण पहले ही समाप्त हो चुके हैं. बता दें कि तमिलनाडु, असम, केरल, और पुडुचेरी के चुनाव समाप्त होने बाद भी कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने पश्चिम बंगाल में कदम तक नहीं रखा है. ऐसे में अब भी अगर चुनावी प्रचार में नहीं उतरा गया तो कांग्रेस की रणनीति पर सवाल खड़े होना लाजमी है?

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वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने ईटीवी भारत से कहा, पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार अभियान में गांधी परिवार की अनुपस्थिति कई सवाल खड़े कर रही है, वो भी ऐसे समय में जब भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल की चुनावी जंग को फतह करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में दो जनसभाओं को संबोधित किया. पहली उत्तर दिनाजपुर के गोलपोखर में और दूसरी दार्जिलिंग में शिवमंदिर बाजार माटीगारा में. बंगाल में कुल 294 निर्वाचन क्षेत्रों में से लगभग आधी सीटों (135) पर चुनाव होने हैं, ऐसे में गांधी परिवार के द्धारा पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित न करना और देरी से इस अभियान का हिस्सा बनना, कई सवाल खड़े कर रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि इतनी देरी से चुनाव प्रचार सिर्फ औपचारिकता है या राजनीतिक रणनीति?

उन्होंने आगे कहा, कांग्रेस के पास सभी पांच राज्यों के चुनावों के लिए रणनीति तैयार है. उदाहरण के लिए वे केरल में वाम दलों के खिलाफ लड़ रहे थे, जबकि वे पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ गठबंधन में हैं, इसीलिए राहुल गांधी केरल चुनाव संपन्न होने से पहले रणनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं जा सकते थे. कांग्रेस का एकमात्र लक्ष्य है भारतीय जनता पार्टी को सभी पांच राज्यों में पराजित करना, जहां विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. उनकी कोशिश रहती है कि भले ही उन्हें तीसरे पक्ष के साथ गठबंधन करना पड़े, लेकिन भाजपा को पराजित करना है. यह भी एक कारण है पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में देरी से एंट्री का.

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वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि अपनी रैलियों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार के खिलाफ कई टिप्पणियां की थीं, लेकिन उन्होंने अपने भाषणों का प्रमुख फोकस भाजपा-आरएसएस पर रखा. राहुल गांधी ने टीएमसी के साथ-साथ बीजेपी पर भी जमकर तंज कसा. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी केंद्र में हैं और ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में तो ऐसे में कांग्रेस टीएमसी के साथ गठबंधन कर सकती है. कांग्रेस के पास परंपरागत रूप से बंगाल में मालदा, रायगंज, मुर्शिदाबाद जैसी सीटों पर समर्थन है. मुझे लगता है कि कांग्रेस उन सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है ताकि वे सरकार बनाने के लिए उस स्थिति में हो.

उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में ज्यादा दांव नहीं लगा सकती. राज्य में प्रमुख खिलाड़ी टीएमसी और भाजपा हैं, इसीलिए राहुल गांधी ने अपना ज्यादा फोकस केरल और असम पर रखा है. उन्होंने इसी तरह तमिलानाडु में भी पर्याप्त संख्या में सीटें हासिल करने कि कोशिश की है, लेकिन ऐसे समय में भी डीएमके की जीत के ज्यादा आसार हैं.

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