चेन्नई :केंद्र सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण वाले कदम के विरोध में हड़ताल के दूसरे दिन भी देश भर में बैंकिंग सेवाएं बंद रहीं.
बैंकिंग सेवाएं जैसे नकद लेनदेन, एटीएम सेवाएं, सहित अन्य सेवाएं प्रभावित हुईं. नौ यूनियनों के सम्मिलित संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंकिंग यूनियन (यूएफबीयू) के अनुसार, देश भर में बैंक शाखाओं 10 लाख से अधिक कर्मचारियों और अधिकारियों ने इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया.
अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने इस मुद्दे पर ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के केंद्र सरकार के कदम से कर्मचारियों के साथ-साथ आम जनता पर भी विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि सबसे पहले यह बैंक कर्मचारी की सामाजिक सुरक्षा, पदोन्नति, और समान वेतन को प्रभावित करेगा. नए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों नई नौकरियों में आरक्षण खो देंगे.
राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल को लेकर बातचीत सीएच वेंकटचलम ने कहा कि निजी निगम लाभ-संचालित होते हैं और वे गरीब लोगों की सेवा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएं स्थापित करने की परवाह नहीं करते हैं. निजी बैंक कृषि, शिक्षा, ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण जैसे राष्ट्रीय विकास के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को ऋण नहीं देंगे. मोदी सरकार के 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी लक्ष्य को हासिल करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आवश्यक हैं.
सरकार निजी निगमों के ऋणों को माफ कर रही है. सरकार को विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे डिफॉल्टरों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए. यह विडंबना है कि सरकार बैंकों को दोषियों को ही सौंपना चाहती है. सरकार को डिफॉल्टरों से पैसा वसूलना चाहिए जिससे पुनर्पूंजीकरण की जरुरत नहीं पड़ेगी.
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सीएच वेंकटचलम ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में खराब सेवा और प्रौद्योगिकी उन्नयन की कमी की शिकायतों से इनकार किया. उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि हालिया 'आरबीआई ट्रेंड एंड प्रोग्रेस रिपोर्ट' कहती है कि पीएसयू की तुलना में नए बैंकों और विदेशी बैंकों में प्रति शाखा शिकायतों की संख्या बहुत अधिक है.
हम प्रौद्योगिकी में किसी भी बैंक के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, लेकिन सेवा प्राप्त करने वालों का तकनीकी ज्ञान भी महत्वपूर्ण है. सार्वजनिक बैंक की तकनीकी सेवाएं ग्रामीण, अशिक्षित ग्राहकों के लिए लाभदायक और सुलभ होनी चाहिए.
उन्होंने स्वीकार किया कि कर्चारियों की कमी और कर्मियों के लिए प्रशिक्षण की कमी के कारण सरकारी बैंकों में कुछ समस्याएं हैं.
सीएच वेंकटचलम ने कहा कि राजनीतिक दल, ट्रेड यूनियन और अन्य संगठन हमें अपना समर्थन दे रहे हैं. यदि सरकार का इरादा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक कुशल बनाना है, तो हम बैठकर बात कर सकते हैं. यदि सरकार का एकमात्र उद्देश्य बैंकों का निजीकरण करना है तो आगे अभियान, आंदोलन और टकराव जारी रहेगा.