अजीब बीमारी से जीना हुआ मुश्किल, MP के इस गांव में टेढ़े हो रहे लोगों के शरीर
…मेरे गांव के अंदर शासन ना प्रशासन ने कुछ नहीं किया है, यहां पानी की वजह से पूरा गांव परेशान है. हमारी रीढ़ की हड्डी से लेकर कमर पैर टेढ़े हो रहे हैं, गांव के हर घर में मरीज है. मेरा चार साल का बच्चा अपने पैरों पर तक खड़ा नहीं हो पाता, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. ये भावुक कर देने वाले शब्द उन ग्रामीणों में से एक के हैं, जो बीते दो दशक से अजीब सी बीमारी का शिकार हैं. मध्य प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां बच्चे से लेकर बूढ़े तक बेनामी बीमारी से बैसाखियों के सहारे जी रहे हैं.. क्या है पूरा मामला जानिए ETV Bharat की इस खास रिपोर्टर के जरिए.
अजीब बीमारी की जद में ग्रामीण
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Published : Jun 1, 2023, 10:31 PM IST
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Updated : Jun 1, 2023, 10:58 PM IST
अजीब बीमारी की जद में ग्रामीण
भिंड।मध्यप्रदेश के भिंड जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ग्राम पंचायत रायतपुरा, इस पंचायत का एक गांव स्टेशन का पुरा बीते कई वर्षों से एक अनजान बीमारी से जूझ रहा है. बीमारी भी ऐसी की गांव का एक भी घर ऐसा नहीं जहां एक या दो लोग इसकी चपेट में ना हों. यहां लोगों के कमर के नीचे का हिस्सा खासकर पैरों में टेढ़ापन और विकलांगता की समस्या देखी जा रही है. बड़ी बात यह है की इस बीमारी के बारे में स्वास्थ्य विभाग भी अब तक कुछ पता नहीं लग सका है.
स्टेशन पुरा गांव
क्षेत्र में बसने के बाद शुरू हुई समस्या: रायतपुरा पंचायत का ये गांव करीब 3 दशक पहले बसना शुरू हुआ था. यहां लोगों ने रायपुर रेलवे स्टेशन के पास अपने घर बना लिए थे, धीरे-धीरे यहां पूरी बस्ती बन गई और इस माजरे को स्टेशन का पूरा नाम दे दिया गया. कुछ वर्षों बाद ही यहां रहने वाले कई ग्रामीणों में विकलांगता और हड्डी कमजोर होने की समस्या सामने आने लगी. ग्वालियर-भोपाल तक के डॉक्टरों को दिखा ऑपरेशन भी कराए लेकिन इनका ज्यादा फायदा नहीं मिला, डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनके साथ यह समस्या पानी की वजह से हो सकती है.
अजीब बीमारी की जद में गांव के बच्चे
हर घर का सहारा बनती बैसाखी:ग्रामीणों का भी मानना है कि उनके साथ हो रही समस्या इस क्षेत्र के भूजल यानी पानी की वजह से ही है. गांव के रहने वाले बुजुर्ग केदार सिंह का कहना है कि कि उनके गांव में पीने के पानी में कैल्शियम की कमी है. जिसकी वजह से सभी लोग प्रभावित हो रहे हैं. लोगों के पैर टेढ़े हो रहे हैं, कमर टेढ़ी हो रही है, बुजुर्गों में उम्र का होना माना जा सकता है लेकिन 19 साल के बच्चे भी अपंगता की ओर बढ़ रहे हैं. जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ रही है, वैसे ही उनकी हड्डियां कमज़ोर और टेढ़ी होती जा रही है. गांव में ही रहने वाले रामनिवास भी खुद धीरे-धीरे इस बीमारी की चपेट में आने लगे. उनका 4 साल का पोता भी इस बीमारी की चपेट में है. उस छोटे से बच्चे के हालात बहुत खराब है. छोटा मासूम न तो शारीरिक रूप से विकसित हुआ है और न ही मानसिक रूप से. इन हालातों से परेशान रामनिवास ETV भारत से बात करते करते भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि आज तक स्थानीय प्रशासन ने उनके गांव की समस्या को सुलझाने का प्रयास ही नहीं किया है. यहां पानी की वजह से सभी के शरीर की हड्डियां टेढ़ी हो रही है. हड्डियां इतनी नाज़ुक है कि हल्के झटके में भी टूट जाती है. लोग ऑपरेशन कराके भी ठीक नहीं होते, लेकिन कोई उनकी समस्या सुनने को तैयार नहीं है.
15 की उम्र तक शुरू हो जाती है समस्या:गांव के युवा देवेंद्र भी इसी अनजान बीमारी से पीड़ित है. उनके दोनों पैर लगभग टेढ़े होना शुरू हो चुके हैं. दो बार अपने पैरों का ऑपरेशन करा चुके हैं. बावजूद इस स्थिति में ज़्यादा सुधार नहीं आया है. देवेंद्र बताते हैं कि उनके साथ यह समस्या करीब साल पहले शुरू हुई थी तब वे 15 साल के थे. ग्वालियर में एक डॉक्टर से इलाज कराया तो उन्होंने बताया कि यह समस्या पानी में कैल्शियम न होने की वजह से है, जो पानी गांव के लोग पी रहे हैं, उसमें न ही मिनरल है न ही कैल्शियम.
ग्रामीणों को अजीब बीमारी
पेयजल जांच में नहीं मिली थी समस्या:इस संबंध में जब PHE विभाग के कार्यपालन यंत्री आर के सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि साल 2020 में भी इस तरह की शिकायत सामने आयी थी कि पानी की वजह से लोग विकलांग हो रहे हैं और समय स्टेशन का पुरा गांव पर आकर विभाग द्वारा पानी के सैंपल लिए गए थे, लेकिन उनकी जांच करने पर उसमें किसी तरह की कोई कमी नहीं पाई गई थी. एक बार फिर इस तरह की सूचना मिलने पर टीम अब दोबारा से सैंपल ले चुकी है और जल्द ही उसे भिंड के साथ-साथ टेस्टिंग के लिए भोपाल भी भेजा जा रहा है. जिससे कि यह स्पष्ट हो सके कि क्या वाक़ई उस पानी में किसी तरह की कमी है यह लोग किसी अन्य वजह से ही बीमार हो रहे हैं.
बोन बायोप्सी के जरिये बीमारी का लगायेंगे पता:ऐसा नहीं है कि इस समस्या से स्वास्थ्य विभाग अनजान है कि ग्रामीण बताते हैं कि करीब दो साल पहले भी इस संबंध में एक जांच दल गांव आया था और लोगों की जांच की थी. साथ ही पानी की समस्या की जांच करने के लिए भी पीएचई विभाग के अधिकारी पानी के सैम्पल लेकर गए थे. गोहद अनुभाग के BMO डॉक्टर आलोक शर्मा ने बताया कि यहां के लोगों की समस्या वाकई में चिंतनीय है. लोग इलाज कराने के बाद भी ठीक नहीं हो पा रहे हैं. कई ऐसे लोग हैं, जो बैसाखी के सहारे हैं, हालांकि इस बीमारी का पता लगाने के लिए जल्द ही बोन बायोप्सी की मदद लिए जाने पर विचार किया जा रहा है. जिससे यह पता चल सके की यह किस तरह की बीमारी है. डॉक्टर आलोक शर्मा ने बताया लोगों को इस बात की शंका है कि उनके क्षेत्र में उपलब्ध भूजल से ही उन्हें यह समस्या हो रही है, लेकिन पूर्व में जब पीएचई द्वारा इसकी जांच कराई गई थी, तब पानी में किसी तरह की कोई कमी नहीं मिली थी. अब एक बार फिर पीएचई विभाग द्वारा इस पानी के सैंपल लिए जा रहे हैं और जल्द ही इसकी जांच कराई जाएगी.
फ्लोरोसिस जैसे हैं लक्षण, अभी कहना मुश्किल: जिला स्वास्थ्य विभाग के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर यूपीएस कुशवाह से भी ETV भारत ने जब बात की तो उन्होंने बताया कि इस तरह की जानकारी सामने आयी है. इस पर स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह सजग होकर काम कर रहा है. डॉक्टरों की टीम वहां पहुंचाई है, ऐसा पूर्व में भी एक टीम भेजकर जांच कराई जा चुकी है. डॉक्टरों माना कि पानी की वजह से भी ऐसी स्थिति हो सकती है, लेकिन इसके अलावा जो लक्षण लोगों में देखे जा रहे हैं, वे फ्लोरोसिस या अन्य बीमारी भी हो सकती है, लेकिन अभी साफ कहना मुमकिन नहीं है.
हड्डियां कमज़ोर और टेढ़ी होती जा रही
जद्दोजहद बना जीवन: बहरहाल ये समस्या पानी में कैल्शियम की कमी से है या किसी अन्य वजह से लेकिन अब इन ग्रामीणों के लिए भी यह समस्या उनके जीवन की सबसे बड़ी मुश्किल बन चुकी है. यदि पानी में कमी है भी तब भी उनके पास पेयजल व्यवस्था के लिए कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में जब तक इस बात का पता नहीं चलता कि आखिर वे किस बीमारी के खिलाफ अपनी जंग लड़ रहे हैं. तब तक उनकी पीढ़ियां धीरे-धीरे इस अज्ञात बीमारी की चपेट में घिरते जा रहे हैं और इन ग्रामीणों के पास इन हालातों को देखने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है.