नई दिल्ली:जेनेरिक दवा के संबंध में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के नियमों पर बड़े विवाद के बीच एक सर्वे से पता चला है कि केवल 7 प्रतिशत नागरिक डॉक्टरों के जेनरिक दवाओं के नाम लिखने से सहमत हैं (Generic Medicine Survey).
समुदाय आधारित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक है, ये भले ही सस्ती हों फिर भी कई लोग अधिक महंगी ब्रांडेड दवाएं या डॉक्टरों द्वारा लिखी गई जेनेरिक ब्रांडेड दवाएं खरीदते हैं.
सर्वेक्षण में बताया गया है, 'जेनेरिक दवा के उपयोग पर 20,706 प्रतिक्रियाओं में से सर्वेक्षण में शामिल केवल 7 प्रतिशत नागरिकों ने एनएमसी के नए विनियमन कि डॉक्टरों को दवाएं लिखते समय केवल सॉल्ट या जेनेरिक दवा का नाम देना चाहिए. जबकि इस प्रश्न के शेष उत्तरदाताओं में से 60 प्रतिशत ने कहा कि वे चाहते हैं कि उनके डॉक्टर ब्रांडेड दवाओं के नाम लिखें.'
जबकि 22 प्रतिशत ने इस बात का समर्थन किया कि डॉक्टरों को सॉल्ट का नाम बताना चाहिए और उदाहरण के तौर पर किसी ब्रांडेड दवा का नाम बताना चाहिए. सर्वेक्षण में कहा गया है कि 7 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि डॉक्टर केवल ब्रांडेड दवा लिखें और इसके अलावा, 4 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
सर्वेक्षण में पाया गया है कि 85 प्रतिशत नागरिकों ने एनएमसी दिशानिर्देशों का समर्थन किया है जो डॉक्टरों और उनके परिवार के सदस्यों को किसी भी प्रकार के कमीशन या और लाभ प्राप्त करने से प्रतिबंधित करते हैं.