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तिहाड़ जेल से बाहर आईं नताशा और देवांगना ने बताई दर्द भरी आपबीती

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Published : Jun 20, 2021, 5:09 PM IST

कोरोना काल में तिहाड़ जेल में अजीब सी बेचैनी थी. ऐसा लगा कि न तो हमारी आवाज़ बाहर जा रही है और न ही हम कुछ सुन पा रहे हैं...मानों कब्र में आ पहुंचे हों. इस दर्द को बयां किया है करीब एक साल तक तिहाड़ जेल में अपनी जिंदगी बिताने वाली नताशा नरवाल और देवांगना कलीता ने. सुनिए ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने तिहाड़ जेल में गुजरी जिंदगी पर और क्या कुछ कहा.

natasha narwal and devangana kalita
natasha narwal and devangana kalita

नई दिल्ली : साल 2020 में दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में UAPA (अनलॉफुल एक्टिविटिज़ प्रिवेंशन एक्ट) में तिहाड़ जेल में बंद रही JNU की स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा नरवाल और देवांगना कलिता ने ईटीवी भारत, दिल्ली के स्टेट हेड विशाल सूर्यकांत से हुई बातचीत में तिहाड़ में बीती अपनी जिंदगी के एक साल को कुछ यूं बयां किया.

दिल्ली में 24 फरवरी 2020 को हुई हिंसा के ठीक पहले 22-23 फरवरी को जाफराबाद में CAA और NRC का विरोध करने महिलाओं के साथ आंदोलन में उतरी नताशा, देवागंना और आसिफ इक़बाल के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने UAPA लगाया और तिहाड़ भेज दिया था. एक साल से ज्यादा का वक्त गुजरने के बाद पहले दिल्ली हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट के दखल से इन तीनों को जमानत मिली है.

नताशा ने बताया तिहाड़ में कैसे कटा वक्त

जेल में बिताए दिनों के हाल बयान किए

ईटीवी भारत से खास चर्चा में नताशा नरवाल और देवांगना कलिता ने कोरोना काल में जेल में बिताए दिनों के हाल बयान किए. नताशा के मुताबिक, तिहाड़ जैसी ओवर क्राउडेड जगह पर सोशल डिस्टेंसिंग रखना, कोरोना से अपना बचाव करना लगभग नामुकिन था. आप जितना कोशिश कर लें, लेकिन एक दूसरे से काफी नजदीक ही होना होता है. हमारे बिस्तर साथ थे. जेल में हेल्थ केयर की सुविधा उस रूप में कभी नहीं हो पाती. जेल में साथ रहे कुछ लोगों की इस दौरान हुई मौत के बाद लगा कि शायद हम यहीं से दुनिया से चले जाएंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि हुआ क्या था. हमारे साथ के कुछ लोगों की मौतें भी हुईं.

कोरोना काल में तिहाड़ जेल में ऐसे गुजरा वक्त

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इन स्थितियों से हम घबरा चुके थे. इसीलिए बेसिक प्रोटोकॉल, टेस्टिंग किट, वैक्सीन प्रायोरिटी और जेल रिफॉर्म्स को लेकर हमने याचिका दायर की और तब वैक्सीनेशन शुरू हो पाया. JNU स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा नरवाल और देवांगना कलिता ने इस बातचीत के दौरान जेल में बंद विचाराधीन कैदियों का मामला भी उठाया. कोरोना काल में जेल में बंद विचाराधीन कैदियों के भी नागरिक हक़ हैं और अगर अदालतें खुल नहीं रही हैं, सुनवाई नहीं हो पा रही है, ऐसे में कैदियों की स्थितियों पर गौर करना चाहिए. जेलों में महिला कैदी भी हैं. इनमें से कुछ के बच्चे जेल के अंदर ही उनके साथ हैं, कुछ बाहर हैं. ऐसे में, इन मुद्दों पर सरकार और अदालतों को गौर करना चाहिए. अगर बेसिक चीजें नहीं दे सकते तो फिर जेल में रखना क्यों ज़रूरी है.

देवांगना कलीता से सुनिए तिहाड़ में कैसे गुजरा साल

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