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नारदा स्टिंग टेप मामला: ममता पहुंची सुप्रीम कोर्ट, 25 को होगी सुनवाई

नारदा स्टिंग टेप मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट से झटका लगने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने सीबीआई द्वारा 17 मई को तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं की गिरफ्तारी के दिन अपनी और प्रदेश के कानून मंत्री मलय घटक की भूमिका को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा हलफनामा दायर करने की इजाजत नहीं दिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

नारद स्टिंग टेप मामला
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Published : Jun 22, 2021, 9:08 AM IST

Updated : Jun 22, 2021, 2:28 PM IST

नई दिल्ली :नारदा स्टिंग टेप मामले (narada sting case) में सीबीआई द्वारा 17 मई को तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं की गिरफ्तारी के दिन अपनी और प्रदेश के कानून मंत्री मलय घटक की भूमिका को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय (Calcutta High Court) द्वारा हलफनामा दायर करने की इजाजत नहीं दिए जाने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee) ने इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती (Challenge the order in the Supreme Court) दी है. अब इस मामले की सुनवाई 25 जून को होगी.

जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने नारदा घोटाला मामले में याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है.

बता दें कि न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता (Justice Hemant Gupta) और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस (Justice Aniruddha Bose) की पीठ मुख्यमंत्री, घटक और पश्चिम बंगाल द्वारा दायर अलग-अलग अपीलों पर मंगलवार को सुनवाई होनी है. इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह घटक द्वारा दायर याचिका पर 25 जून को सुनवाई करेगी.

न्यायालय ने 18 जून को उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह शीर्ष अदालत द्वारा आदेश के खिलाफ राज्य सरकार और घटक की याचिका पर विचार करने के एक दिन बाद मामले की सुनवाई करे.

नारदा स्टिंग टेप मामले की सुनवाई विशेष सीबीआई अदालत से उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने संबंधी सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने नौ जून को कहा था कि वह मामले में चार नेताओं की गिरफ्तारी के दिन बनर्जी और घटक की भूमिका को लेकर उनके द्वारा दायर हलफनामे पर विचार करने के बारे में बाद में फैसला करेगी.

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घटक और राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ताओं राकेश द्विवेदी और विकास सिंह ने कहा था कि उच्च न्यायालय के रिकॉर्ड में हलफनामों का लाया जाना जरूरी है क्योंकि वे 17 मई को संबंधित व्यक्तियों की भूमिका के बारे में हैं.

द्विवेदी ने कहा कि कानून मंत्री मंत्रिमंडल की बैठक में हिस्सा ले रहे थे और सुनवाई के वक्त अदालत परिसर में नहीं थे. उन्होंने कहा कि सीबीआई अधिकारी भी मौके पर नहीं थे क्योंकि एजेंसी के वकील डिजिटल रूप से अदालत से संवाद कर रहे थे.

यह आरोप लगाया गया था कि राज्य के सत्ताधारी दल के नेताओं ने मामले में 17 मई को चार नेताओं की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई को उसके विधिक दायित्वों के निर्वहन से रोकने में अहम भूमिका निभाई.

सिंह ने दलील दी कि नियमों के मुताबिक, हलफनामे दायर करने का अधिकार है और इतना ही नहीं सीबीआई ने तीन हलफनामे दायर किये हैं और अदालत की इजाजत नहीं ली थी.

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सॉलिसिटर जनरल ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि विलंब के आधार पर हलफनामों को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें उनकी जिरह पूरी होने के बाद दायर किया गया है.

नारदा स्टिंग टेप मामले की सुनवाई विशेष सीबीआई अदालत से उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का अनुरोध कर रही सीबीआई ने वहां अपनी याचिका में मुख्यमंत्री और कानून मंत्री को भी पक्ष बनाया है.

एजेंसी ने दावा किया था कि चार नेताओं की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री कोलकाता में सीबीआई कार्यालय में धरने पर बैठ गई थीं, जबकि 17 मई को विशेष सीबीआई अदालत में डिजिटल माध्यम से मामले की सुनवाई के दौरान घटक, बंशाल अदालत परिसर में मौजूद थे.

उच्च न्यायालय के 2017 के एक आदेश पर नारदा स्टिंग टेप मामले की जांच कर रही सीबीआई ने मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फरहाद हकीम, तृणमूल कांग्रेस के विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व महापौर सोवन चटर्जी को गिरफ्तार किया था.

(भाषा)

Last Updated : Jun 22, 2021, 2:28 PM IST

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