हैदराबाद : इस साल मानसून कैसा रहेगा, निजी एजेंसी स्काईमेट ने एक पूर्वानुमान जारी किया है. इसके अनुसार इस बार 98 फीसदी तक मानसून सामान्य रहेगा. इसके अनुसार जून से लेकर सितंबर तक 98 फीसदी तक मानसून सामान्य रहेगा. इसमें पांच फीसदी तक बदलाव देखने को मिल सकता है.
स्काईमेट द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक इस साल राजस्थान में सबसे कम बारिश होगी. नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर और गुजरात में सामान्य से कम बारिश होने का अनुमान है. जबकि यूपी, मध्य प्रदेश और पंजाब में सामान्य से अधिक बारिश होने का अनुमान है.
इसी तरह से जुलाई-अगस्त महीने की बात करें तो केरल और कर्नाटक के आंतरिक हिस्सों में कम बारिश होने का अनुमान है. लेकिन स्काईमेट ने यह भी कहा है कि मानसून सेशन का पहला हाफ, दूसरे हाफ से बेहतर रहेगा.
अगर संभावनाओं की बात की जाए, तो दक्षिण-पश्चिम मानसून 2022 के सामान्य होने की 65 फीसदी संभावना है. 25 फीसदी कम बारिश होने की संभावना है और 10 फीसदी सामान्य से ऊपर बारिश होने की संभावना है. इस साल सूखा वर्ष होने की कोई संभावना नहीं है.
अलग-अलग महीनों के हिसाब से देखें ---
जून में LPA..लांग पीरियड एवरेज (166.9 मिमी) के मुकाबले 107 फीसदी बारिश हो सकती है. 70 फीसदी सामान्य बारिश का अनुमान है.
जुलाई में LPA (285.3 मिमी) के मुकाबले 100 फीसदी बारिश हो सकती है. 65 फीसदी संभावना सामान्य बारिश की है.
अगस्त में LPA (258.2 मिमी) के मुकाबले 95 फीसदी बारिश हो सकती है. 60 फीसदी सामान्य बारिश का अनुमान है.
सितंबर मेंLPA (107.2 मिमी) के मुकाबले 90 फीसदी बारिश हो सकती है. 70 फीसदी संभावना सामान्य से कम बारिश की है.
स्काईमेट के सीईओ योगेश पाटिल के अनुसार पिछले दो मानसून सीजन बैक-टू-बैक ला नीना घटनाओं से प्रभावित रहे हैं. इससे पहले, ला नीना सर्दियों में तेजी से सिकुड़ने लगी थी, लेकिन ट्रेड विंड के मजबूत होने के कारण इसकी वापसी ठप हो गई है. हालांकि यह अपने चरम को पार कर गया है. प्रशांत महासागर की ला नीना शीतलन दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत से पहले तक प्रबल होने की संभावना है. इसलिए, अल नीनो की घटना से इंकार किया जा सकता है, जो आमतौर पर मानसून को प्रभावित करता है. वैसे मानसून के व्यवहार से अचानक और तीव्र बारिश होने की उम्मीद है, जो असामान्य रूप से लंबे समय तक सूखे के बीच होती है.
प. एशिया में चलने वाली धूल से बढ़ेंगी मानसूनी बारिश - जलवायु परिवर्तन की वजह से पश्चिम एशिया में धूल भरी आंधियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, लेकिन संभव है कि इसके असर से भारत में मानसूनी बारिश में वृद्धि होगी. यह दावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन में किया है.
इस अध्ययन को हाल में क्लाइमेट ऐंड ऐटमॉस्फेरिक साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है. अध्ययन के मुताबिक, पश्चिम एशिया के रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल अरब सागर तक पहुंचती है और इससे दक्षिण एशिया में बारिश बढ़ सकती है, खासतौर पर तब जब भारतीय क्षेत्र में गंभीर सूखे के हालात हों. इससे पहले हुए अध्ययन के मुताबिक, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल से भारत में एक या दो हफ्ते के अल्पकालिक समय में बारिश की दर बढ़ जाती है.
अध्ययन के मुताबिक, यह संभव इसलिए होता है क्योंकि इस धूल की वजह से अरब सागर गर्म होता है जो भारतीय क्षेत्र में नमी वाली हवाओं को गति देने का ऊर्जा स्रोत है. अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि यह संबंध अल नीनो (समुद्री धारा) की वजह से सूखे के वर्षों के दौरान अब अधिक मजबूत है. अल नीनो और अल नीना प्रशांत महासागर की जलवायु परिपाटी है जो पूरी दुनिया के मौसम में बदलाव की क्षमता रखती है.
अनुसंधानकर्ताओं ने संकेत किया है कि इस धूल से होने वाली बारिश का प्रभाव पूरे दक्षिण एशियाई मानसून पर होता है और यहां तक सूखे की स्थिति में भी बारिश को बढ़ाने में यह धमनी की तरह काम करती है. आईआईटी, भुवनेश्वर में पृथ्वी समुद्र और जलवायु विज्ञान विद्यालय में सहायक प्राध्यापक वी विनोज ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय क्षेत्र बड़े पैमाने पर बारिश की कमी का सामना कर रहा है और मानसून की परिपाटी में भी बदलाव आया है.’’
विनोज ने कहा, ‘‘हालांकि, वैश्विक तापमान में वृद्धि और हवाओं के रुख में बदलाव से हम उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले सालों में पश्चिम एशिया में धूल भरी आंधियों का दौर बढ़ेगा. अनुकूल परिस्थितियों में इन धूल कणों का परिवहन अरब सागर तक हो सकता है और इससे भारतीय क्षेत्र में अल्पकालिक लेकिन भारी बारिश का दौर आ सकता है.’’