नई दिल्ली :मानव तस्करी (human trafficking) से निपटने वाले सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के नोडल अधिकारियों की हालिया बैठक में यह पाया गया कि जागरूकता और प्रशिक्षण अभियान की कमी है. कई बार अधिकारी आईपीसी की प्रासंगिक धाराओं को देखते हुए मामले दर्ज करने में विफल होते हैं, जिससे इस पर रोक नहीं लग पा रही है. अतिरिक्त सचिव (महिला सुरक्षा) श्यामल मिश्रा की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को पत्र भेजकर मानव तस्करी से निपटने वाले अधिकारियों को जागरूक करने को कहा गया है.
गृह मंत्रालय ने कहा, 'राज्यों को विशेष प्रभाव बनाने और उन्हें समय-समय पर पर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधन सामग्री आदि प्रदान करने की आवश्यकता है. यदि राज्यों को किसी विशिष्ट प्रशिक्षण की आवश्यकता है, तो इसे ब्यूरो और पुलिस अनुसंधान विकास द्वारा किया जा सकता है.' एमएचए ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मानव तस्करी रोकने के लिए आपसी सहयोग और समन्वय को और मजबूत करना चाहिए. संचार के अंतर-राज्यीय चैनल स्थापित करना आवश्यक है.
एमएचए ने राज्यों के डीजीपी को भेजे अपने पत्र के माध्यम से कानून लागू करने वाली एजेंसियों को धारा 366 ए (नाबालिग लड़कियों की खरीद), धारा 366-बी (विदेश से लड़कियों का आयात), धारा 372 (वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों की बिक्री) और मानव तस्करी में शामिल लोगों के खिलाफ धारा 373 (वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों को खरीदना) के तहत कार्रवाई करने के लिए कहा है.
केंद्र सरकार का मानती है कि मानव तस्करी एक गंभीर अपराध है और ऐसे अपराध को रोकने और उसका मुकाबला करने के लिए किए जा रहे प्रयासों को अत्यधिक महत्व देती है. एमएचए ने कहा, मानव तस्करी एक अत्यधिक संगठित अपराध है जिसमें अक्सर अंतरराज्यीय गिरोह शामिल होते हैं. गृह मंत्रालय ने दोहराया है कि वह मानव तस्करी से संबंधित व्यापक मुद्दों पर न्यायिक अधिकारियों और कानून लागू करने वाली एजेंसियों और प्रमुख हितधारकों को संवेदनशील बनाने के लिए न्यायिक बोलचाल और राज्य स्तरीय सम्मेलनों के आयोजन में समर्थन करता है. गृह मंत्रालय न्यायिक बोलचाल और राज्यस्तरीय सम्मेलन आयोजित करने के लिए 2 लाख रुपये की सहायता भी प्रदान करता है.