नई दिल्ली : डिलिमिटेशन- यानी परिसीमन. अगर आबादी के हिसाब से संसाधनों का वितरण किया गया, तो उत्तर भारत के राज्यों को दक्षिण के राज्यों के मुकाबले अधिक फायदा होगा. तमिलनाडु की सांसद और डीएमके नेता कनिमोझी ने इसका विरोध किया है. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा हुआ, तो यह दक्षिण के राज्यों के साथ भेदभाव होगा. उनके अनुसार क्योंकि दक्षिण के राज्यों ने परिवार नियोजन को गंभीरता से लागू किया, और आबादी पर नियंत्रण पाया, जबकि उत्तर भारत के राज्यों ने ऐसा नहीं किया, लिहाजा दंड उत्तर भारत के राज्यों को मिलना चाहिए, न कि दक्षिण भारत के राज्यों को.
क्या है डिलिमिटेशन- यानी परिसीमन- यानी आबादी का सही प्रतिनिधित्व. हमारा देश अल-अलग राज्यों में बंटा हुआ है. प्रत्येक राज्यों की अलग-अलग आबादी है. लोकसभा और विधानसभा में इनका सही प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना डिलिमिटेशन का काम होता है. दरअसल, आबादी के बढ़ने से इसका दायरा भी बदलता रहता है. इसलिए समय-समय पर परिसीमन का कार्य होता रहता है. बढ़ती जनसंख्या के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों का सही तरीके से विभाजन हो सके, परिसीमन प्रक्रिया इसे सुनिश्चित करती है.
परिसीमन को सुनिश्चित करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. आपको बता दें कि परिसीमन आयोग (डिलिमिटेशन कमीशन) अधिनियम 1952 में स्थापित किया गया था और केंद्र सरकार को आवश्यकतानुसार परिसीमन आयोग स्थापित करने का अधिकार है. इसका मुख्य उद्देश्य रहा है- प्रत्येक मतदाता के मत का समान वैल्यू. भौगोलिक क्षेत्रों का बंटवारा इस तरह से हो, ताकि किसी भी एक राजनीतिक पार्टी को लाभ न मिले.
क्या है आपत्ति - अगर इस समय डिलिमिटेशन किया गया, तो उत्तरी राज्यों को अधिक पैसों का आवंटन होगा. संसद में उनका प्रतिनिधित्व भी अधिक होगा. दक्षिण के राज्यों को दोनों मोर्चों पर नुकसान उठाना पड़ेगा. क्योंकि आबादी पर नियंत्रण लगाने की वजह से उनके यहां लोकसभा की सीटें कम हो जाएंगी. साथ ही आबादी कम होने से उन्हें संसाधन का हिस्सा भी कम मिलेगा.
हकीकत ये भी है कि द.भारत के राज्यों ने आबादी के साथ-साथ अपनी आर्थिक स्थिति भी मजबूत की है. उन्होंने अपने यहां गरीबी के स्तर को भी घटाया. लोगों की आमदनी बढ़ी. दक्षिण के तीन राज्यों कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु का संयुक्त जीडीपी पूर्व के 13 राज्यों से ज्यादा है. इसी तरह से इन राज्यों ने शिक्षा और स्वास्थ्य में भी उल्लेखनीय कार्य किया है.