नई दिल्लीःमहाशिवरात्रि का पर्व इस साल 18 मार्च को मनाया जाएगा. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के साथ शिव परिवार की भी पूजा की जाती है. यह पर्व भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह की वर्षगांठ के रूप में भी मनाया जाता है. भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार से जप-तप-व्रत करते हैं. इस दिन विधि पूर्वक भगवान शिव की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस दिन महाशिवरात्रि के व्रत का भी विशेष पुण्य माना गया है. आइए जानते हैं महाशिवरात्रि व्रत की कथा क्या है.
महाशिवरात्रि की कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है. कथा के मुताबिक, पुरातन काल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी हुआ करता था. शिकारी चित्रभानु एक साहूकार का कर्जदार था. एक दिन साहूकार ने कर्ज न दे पाने पर शिकारी को शिवमठ में बंदी बना दिया. संयोग से जिस दिन बंदी बनाया उस दिन महाशिवरात्रि थी. साहूकार ने महाशिवरात्रि के ही दिन अपने घर में पूजा का आयोजन किया. पूजा के बाद कथा का पाठ किया गया. शिकारी भी पूजा और कथा में बताई गई बातों को ध्यान से सुनता रहा. कुछ देर बाद कथा समाप्त हुई तो शिकारी ने साहूकार से ऋण चुकाने का वादा किया. साहूकार ने शिकारी को मठ से बाहर निकाला, इसके बाद शिकारी ने कहा कि अगर साहूकार उसे जाने देता है तो अगले ही दिन वह ऋण चुका देगा. इस वचन पर साहूकार ने शिकार को मुक्त कर दिया.
शिकार की तलाश में जंगल में बिताई रात
इसके बाद शिकारी जंगल में शिकार के लिए निकल गया. लेकिन शिकार की खोज में उसे रात हो गई. इसके बाद शिकारी ने जंगल में ही रात बिताई. शिकारी एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात बीतने लगा. बेलपत्र के पेड़ नीचे एक शिवलिंग था, जो बेलपत्रों से ढक चुका था. लेकिन इस बात से शिकारी अज्ञान था. आराम करने के लिए उसने बेलपत्र की कुछ सखाएं तोड़ीं, इस प्रक्रिया में कुछ बेलपत्र की पत्तियां शिवलिंग पर गिर पड़ी. शिकारी भूखा प्यास उसी स्थान पर बैठा रहा. इस प्रकार से शिकारी का व्रत हो गया. तभी अचानक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने के लिए आई.
शिकारी ने हिरणी के शिकार के लिए धनुष पर जैसे ही तीर चढ़ाया तभी हिरणी बोली कि मैं गर्भ से हूं. शीघ्र ही बच्चे को जन्म दूंगी. ऐसे में तुम एक साथ दो जीवों की हत्या कर दोगे, जो उचित नहीं होगा. मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब तुम मेर शिकार कर लेना. हिरणी की बात मानकर शिकारी ने तीर वापिस ले लिया. इसके बाद शिकारी ने जैसे ही धनुष पेड़ की टहनी पर रखा तो फिर बेल पत्र टूटकर शिवलिंग पर गिर गए. इस प्रकार शिकारी से अनजाने में ही प्रथम प्रहर की पूजा पूरी हुई. कुछ देर बाद एक ओर हिरणी शिकारी के पास से गुजरी. हिरणी को देख शिकारी ने तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ा कर निशाना लगा दिया. लेकिन तभी हिरणी ने शिकारी से निवेदन किया कि मैं अपने प्रिय को खोज रही हूं. मैं अपने पति से मिलकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी. इस बात पर शिकारी ने इस हिरणी को भी जाने दिया.