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जानिए क्या है ये PLA, जिसे मणिपुर हमले का जिम्मेदार माना जा रहा है

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में शनिवार को उग्रवादियों के एक समूह ने असम राइफल्स के काफिले पर घात लगाकर हमला किया. हमले में सीओ समेत असम राइफल्स के पांच जवान शहीद हो गए. वहीं असम राइफल्स की ओर से जारी बयान में कहा गया कि इस हमले के पीछे पीआरईपीएके समूह के होने का शक है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

मणिपुर
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Published : Nov 13, 2021, 8:13 PM IST

Updated : Nov 14, 2021, 7:44 AM IST

हैदराबाद : मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में शनिवार को उग्रवादियों के एक समूह ने असम राइफल्स के काफिले पर घात लगाकर हमला किया. हमले में सीओ समेत असम राइफल्स के पांच जवान शहीद हो गए. इस हमले में उनके परिवार के दो सदस्यों की भी मौत हो गई. वहीं असम राइफल्स की ओर से जारी बयान में कहा गया कि इस हमले के पीछे पीएलए समूह का हाथ होने का शक है. आइए जानते हैं पीएलए के बारे में.

पीएलए का उद्देश्य
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की स्थापना 25 सितंबर, 1978 को एन. बिशेश्वर सिंह के नेतृत्व में की गई थी. पीएलए का लक्ष्य पूरे पूर्वोत्तर को कवर करते हुए एक क्रांतिकारी मोर्चा तैयार करना है. यह कहें तो मणिपुर को भारत से अलग करने के लिए मैते, नागा और कुकी सहित सभी जातीय समूहों को एकजुट करना है. हालांकि, पीएल एक मेती संगठन है और खुद को एक ट्रांस-आदिवासी संगठन होने का दावा करता है. इसके अलावा पीएलए गैर-मीतियों का भी नेतृत्व करने की कोशिश में लगा रहता है.

नेतृत्व और संरचना
1989 में PLA ने रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (RPF) नामक एक राजनीतिक निकाय का गठन किया था. उस समय आरपीएफ बांग्लादेश में निर्वासित सरकार चलाती है. इरेंगबाम चौरेन आरपीएफ के 'अध्यक्ष' थे. अपने पुनरोद्धार प्रयासों के हिस्से के रूप में पीएलए को एक अनुशासित सेना की तर्ज पर पुनर्गठित किया गया था.

उग्रवादी विंग में अब चार डिवीजन शामिल हैं

1. मणिपुर की घाटी के सदर हिल पश्चिम क्षेत्र

2. पूर्वी घाटी में सदर पहाड़ी क्षेत्र

3. मणिपुर में संपूर्ण पहाड़ी क्षेत्र

4. संपूर्ण इंफाल क्षेत्र

प्रत्येक डिवीजन में अपने रैंकों में एक कमांडर, लेफ्टिनेंट, सार्जेंट और लांस कॉर्पोरल होते हैं. पीएलए के कार्यकर्ता अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं. यह समूह कथित तौर पर बड़े पैमाने पर जबरन वसूली के कार्यों में भी शामिल रहा है.

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पीएलए के कहां-कहां से जुड़े हैं तार
पीएलए के रंगरूटों को अस्सी के दशक के दौरान उत्तरी म्यांमार में सोमरा ट्रैक्ट से परे, चल्लम में अपने मुख्यालय में तत्कालीन यूनाइटेड नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) द्वारा गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित किया गया था. पीएलए के पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के साथ भी संपर्क होने की खबर है. पीएलए के साथ आईएसआई के बीच गठजोड़ की बात जनवरी 1991 में आरपीएफ (पीएलए की राजनीतिक शाखा) के वित्त सचिव बीरेन सिंह उर्फ ​​जर्मन से बरामद एक दस्तावेज के बाद सामने आई थी. पीएलए की बांग्लादेश में निर्वासित सरकार है जहां पीएलए ने सिलहट जिले में कई ठिकाने स्थापित किए हैं. वहीं वर्तमान में म्यांमार में दो शिविर और बांग्लादेश में पांच शिविर मौजूद हैं. बताया जाता है कि इन शिविरों में करीब 1,000 रंगरूटों ने हथियारों का प्रशिक्षण प्राप्त किया है.

पीएलए से जुड़ी प्रमुख घटनाएं

  • सुरक्षा बलों ने थौबल जिले के टेकचम में एक पीएलए शिविर पर छापा मारते हुए लगभग सभी शीर्ष नेतृत्व को मार डालने के साथ ही 6 जुलाई, 1981 को बिशेश्वर को गिरफ्तार कर लिया था.
  • 26 अक्टूबर 1981 को PLA, PREPAK और KCP को गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया था. तभी से इनके खिलाफ आतंकवाद रोधी अभियान जारी है.
  • 13 अप्रैल, 1982 को इम्फाल के पास कदम्पोकपी में एक मुठभेड़ में नए पीएलए नेता थौंडम कुंजाबिहारी और आठ अन्य कार्यकर्ता मारे गए थे.
  • पीएलए के उग्रवादियों ने 8 अप्रैल, 1989 को इंफाल के पास एक भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी वंदना मलिक को घात लगाकर मार डाला था. महत्वपूर्ण बात यह है कि पीएलए ने खुद को पुनर्गठित किया और उसी वर्ष रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (RPF) नामक एक राजनीतिक विंग का गठन किया.
  • लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए, पीएलए ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एक सशस्त्र अभियान शुरू किया.
Last Updated : Nov 14, 2021, 7:44 AM IST

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