वाराणसी: सनातन धर्म के लोगों के लिए दीपावली पर्व प्रमुख त्योहारों में से एक है, लेकिन इस दीपावली के त्योहार में सबसे महत्वपूर्ण है सही मुहूर्त और लग्न में भगवान की पूजा और आराधना. माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आराधना के लिए क्या है इस बार मुहूर्त और क्या है दीपावली के पूजन के साथ महानिशा काल में श्री काली पूजन का विधान, आप भी जानिए.
जहां रहती है स्वच्छता और रोशनी वहां विराजते हैं भगवान
दीपावली का त्योहार रोशनी का पर्व है, ऐसा माना जाता है कि स्वच्छता और दीपों से सजे प्रतिष्ठान और घरों में माता लक्ष्मी के साथ कुबेर इंद्र आदि देवताओं का आगमन दीपावली की रात को होता है. कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को दीपावली का त्योहार पूरे विश्व में धूमधाम के साथ मनाया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि दीपावली के पर्व पर सबसे महत्वपूर्ण होता है मुहूर्त. क्योंकि शुभ मुहूर्त के साथ स्थिर लग्न में देवी लक्ष्मी की आराधना धन-धान्य और सुख वैभव सब कुछ देती हैं.
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि लक्ष्मी चंचल मानी जाती हैं और चंचल स्वभाव की वजह से लक्ष्मी कभी भी स्थिर नहीं होती हैं. यही वजह है कि दीपावली के दिन स्थिर लग्न में पूजन करने का विशेष विधान बताया गया था, कि लक्ष्मी स्थिर रहें और पूजा करने वालों का घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहे इसलिए इस बार के शुभ लग्न की यदि बात की जाए तो दीपावली का शुभ मुहूर्त यानी स्थिर लग्न चार नवंबर को लगभग दो घंटे के लिए ही मिल रहा है.
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इस बारे में ज्योतिषाचार्य और काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि चार नवंबर की सायं काल 6:12 से लेकर रात्रि 8:08 तक वृषभ लग्न का स्थिर मुहूर्त है. इस दौरान माता लक्ष्मी और गणेश की पूजा करना सबसे उत्तम माना जा रहा है यह स्थिर लग्न का पहला मुहूर्त है, यदि इस दौरान किसी कारणवश आप पूजन नहीं कर पाते हैं तो फिर रात्रि में सिंह लग्न का दूसरा स्थिर मुहूर्त मिल रहा है. यह मुहूर्त रात्रि 12:40 से रात्रि 2:54 तक मान्य रहेगा. इस दौरान भी लक्ष्मी पूजन करना विशेष फलदाई माना जा रहा है. वहीं अगर अमावस्या तिथि की बात की जाए तो चार नवंबर की भोर में 5:32 से अमावस्या तिथि लग रही है. जिसका मान पांच नवंबर की भोर में 3:32 तक रहेगा, यानी 4 नवंबर को पूरा दिन अमावस्या तिथि मान्य होगी.