नई दिल्ली: दिल्ली समेत देशभर में इन दिनों फ्री रेवड़ी को लेकर काफी चर्चाएं हो रही है. चर्चा शुरू इस तरह हुई कि पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में बिना किसी राज्य और सरकार का नाम लिए कहा कि सत्ता हासिल करने के लिए कुछ लोग और पार्टियां इतनी महत्वकांक्षी हो गई हैं कि वह मुफ्त में पेट्रोल और डीजल देने का भी ऐलान कर सकती हैं. यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. इशारों-इशारों में ही उन्होंने यहां तक कह दिया कि फ्री रेवड़ी कल्चर और वेलफेयर में काफी फर्क होता है. हमें ऐसी घोषणा करने वाले राजनीतिक दल के नेताओं से सावधान रहने की जरूरत है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बात पर अन्य राजनीतिक दल व नेताओं ने तो काफी देर से अपनी प्रतिक्रियाएं दीं. लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री व आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के संयोजक अरविंद केजरीवाल (Delhi CM Arvind Kejriwal) ने तुरंत वीडियो संदेश जारी कर फ्री रेवड़ी (फ्री-बी) तथा दिल्ली सरकार द्वारा प्रदत्त मुफ्त सेवाओं को लेकर अपनी मंशा बता दी. उसके बाद से लेकर आज तक मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री व पार्टी के तमाम नेता किसी न किसी प्लेटफार्म पर रोजाना आम आदमी पार्टी सरकार से मिली मुफ्त योजनाओं को लेकर सफाई देते नजर आ रहे हैं.
फ्री रेवड़ी पर कैसे शुरू हुई चर्चा ?
फ्री रेवड़ी और वेलफेयर में फर्क करना क्या आसान है? दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने के खिलाफ गुहार लगाई गई थी. अर्जी में यह भी कहा गया कि उपहार बांटना या वादा करने को रिश्वत घोषित किया जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में दूसरी तरफ यह भी दलील दी जा रही है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और सरकार की तरफ से चलाई जा रही वेलफेयर स्कीम को मुफ्त उपहार की कैटेगरी में नहीं रख सकते हैं. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अर्जी में कहा है कि राजनीतिक पार्टियों के इस तरह के वादे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करते हैं. मुफ्त में चीजों को उपलब्ध कराना और इसके जरिए मतदाताओं को लुभाने का प्रयास करना एक तरह की रिश्वत है.
क्या होती है जनकल्याणकारी योजना ?
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के बाद आम आदमी पार्टी की तरफ से कहा गया है कि सरकार जिन लोगों के कल्याण के लिए स्कीम चलाती है उसे मुफ्त उपहार नहीं कह सकते हैं. संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांत हैं. इसके तहत राज्य सामाजिक और वेलफेयर प्रोग्राम चलाते हैं, ताकि देश में सामाजिक संतुलन कायम हो और हर तबके को बुनियादी सुविधाएं मिल सके. इनमें गरीब कामगारों को कम कीमत पर फ्री भोजन के लिए कैंटीन की सुविधाएं देना, वेलफेयर स्कीम है. इसी तरह रैन बसेरा की व्यवस्था, कम कीमत या मुफ्त पानी, बेसिक स्वास्थ्य सेवा, 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा, जो भोजन की व्यवस्था नहीं कर सकते उसे मुफ्त राशन, मिड-डे-मील, महिलाओं को फ्री ट्रांसपोर्टेशन आदि भी वेलफेयर स्कीम में शामिल है. आम आदमी पार्टी के वकील कपिल सिब्बल ने यह भी कहा है कि मिड-डे-मील, गरीबों को राशन और फ्री बिजली आदि सुविधाएं वेलफेयर के काम में है. इस तरह के कामों का इस प्रकार रोक नहीं लगाई जा सकती है.
फ्री रेवड़ी, वेलफेयर अलग तो मुफ्त उपहारों की क्या है कैटेगरी ?
उपाध्याय कहते हैं कि अगर कोई राजनीतिक दल लैपटॉप, कंप्यूटर या मोबाइल फोन देने का वादा करते हैं यह सब मुफ्त की श्रेणी में आएगा. सीधे नगद देना भी मुफ्त उपहार ही है. इनके अलावा दी जाने वाली सभी चीजें मुफ्त की श्रेणी में आएंगी. मुफ्त में बिजली दिए जाने को वेलफेयर स्कीम नहीं कह सकते हैं. गरीबों को मुफ्त बिजली मिलना एक हद तक सही है, क्योंकि उनकी बुनियादी जरूरत हो सकती है. लेकिन संपन्न लोगों को भी मुफ्त में बिजली उपलब्ध करवाने से सरकार के रेवेन्यू पर बोझ बढ़ता है. यही बात और पानी मुफ्त परिवहन सेवा, मुफ्त वाईफाई सेवा आदि पर भी लागू होता है.
फ्री चावल, टीवी, लैपटॉप नहीं तो दिल्ली सरकार क्या बांट रही है फ्री?
राजनीति में आने के बाद वर्ष 2013 में आम आदमी पार्टी ने जब चुनाव लड़ा तब दिल्ली वालों को बिजली बिल हाफ और पानी बिल माफ का जमकर प्रचार किया. पार्टी पहली बार में ही सरकार बनाने में सफल रही. उसके बाद 2014 में फिर चुनाव लड़ने के दौरान मुफ्त योजनाओं की झड़ी लगा दी. नतीजा 70 में से 67 सीटें पार्टी जीतीं. 2020 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव से पहले यहां सरकार ने फ्री चावल, टीवी, लैपटॉप या स्मार्टफोन नहीं बांटा. बल्कि 200 यूनिट तक फ्री बिजली, पानी, वाईफाई, बुजुर्गों को मुफ्त तीर्थयात्रा, सर्जरी, महिलाओं को मुफ्त बस में सफर जैसी कई चीजों को फ्री कर दिया. ये योजनाएं अब भी चल रही हैं और लोग इन सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं. अब दिल्ली की देखा-देखी अन्य राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दल मुफ्त योजनाओं का वादा कर रहे हैं. दिल्ली सरकार की फ्री-योजनाओं से सबक लेकर दूसरी राज्य सरकारें अब इस पर अमल करने लगी हैं.
दिल्ली सरकार के खजाने पर इसका कितना पड़ेगा असर?
फ्री बिजली- दिल्ली सरकार की जारी अपने रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक 2020-21 में उन्होंने बिजली बिल की सब्सिडी पर 1900 करोड़ रुपये खर्च किया. दिल्ली में कितने परिवार हैं, जिनका बिजली बिल शून्य आता है. इसके आंकड़े हर महीने बदलते रहते हैं, लेकिन मार्च महीने के आंकड़े के मुताबिक लगभग 46 लाख लोगों का बिल शून्य आया था.
फ्री पानी- 2020-21 के दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस योजना पर 800 करोड़ रुपये खर्च किए. उनके मुताबिक 20 हजार लीटर तक के पानी के इस्तेमाल पर जीरो बिल के बाद भी दिल्ली जल बोर्ड का राजस्व में इजाफा हुआ है. करीब 14 लाख लोगों को इस मुफ्त योजना का फायदा पहुंचा है.