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जानिए कब है सुहागिनों का कठिन व्रत करवा चौथ, कब निकलेगा चांद, कैसे करना है पूजन

करवाचौथ (Karva Chauth 2023) में अब कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं. सुहागिनों ने इस खास और कठिन व्रत की तैयारियां शुरू कर दी है. बाजारों में भी रौनक बढ़ गई है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 24, 2023, 8:05 PM IST

वाराणसी : सनातन धर्म के पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा करके व्रत रखने का विशेष महत्व है. इन्हीं में से एक करवा चौथ का व्रत भी है. सुहागिनों में इस व्रत को लेकर काफी क्रेज रहता है. कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ (करक चतुर्थी) का व्रत रखा जाता है. करवा चौथ का व्रत रख महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. करवा चौथ कब पड़ेगा, चांद के दीदार कब होंगे, पूजन कैसे किया जाएगा, इन सभी बिंदुओं पर ज्योतिषविद ने जानकारियां दीं.

एक नवंबर को है करवा चौथ :ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि मंगलवार 31 अक्टूबर को रात्रि 9 बजकर 31 मिनट पर लगेगी. यह अगले दिन बुधवार, 1 नवम्बर को रात्रि 9 बजकर 20 मिनट तक रहेगी. चन्द्रोदय रात्रि 8 बजकर 05 मिनट पर होगा. फलस्वरूप बुधवार, 1 नवम्बर को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा.

पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं महिलाएं.

व्रत रखने की यह है विधि :ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि सुहागिनें प्रातः काल अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर अपने देवी-देवता की आराधना के पश्चात् अखण्ड सौभाग्य, यश-मान, प्रतिष्ठा, सुख-समृद्धि, खुशहाली एवं पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ के व्रत का संकल्प लेती हैं. यह व्रत निराहार व निराजल रहते हुए किया जाता है. सौभाग्यवती महिलाएं कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन सुख-समृद्धि व अखण्ड सौभाग्य के लिए व्रत-उपवास रखकर देवाधिदेव भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान श्रीगणेश एवं श्रीकार्तिकेय जी की पूजा- अर्चना करती हैं. करवा चौथ से सम्बन्धित वामनपुराण में वर्णित व्रत कथा का श्रवण करने का भी विधान है.

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चन्द्रमा को चलनी से देख उतारती हैं आरती :ज्योतिषविद ने बताया कि व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं नव-परिधान व आभूषण धारण करके पूजा-अर्चना करती हैं. पूजा क्रम में करवा जो कि सोना, चांदी, पीतल या मिट्टी का होना चाहिए, लोहे या एल्युमीनियम धातु का नहीं होना चाहिए. करवा में जल भरकर सौभाग्य व श्रृंगार की समस्त वस्तुएं थाली में सजाकर रखी जाती हैं. व्रती महिलाएं अपने पारिवारिक परम्परा व धार्मिक विधि-विधान के अनुसार रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात् चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी पूजा-अर्चना करती हैं. इसके बाद चन्द्रमा को चलनी से देखकर उनकी आरती उतारती हैं. घर-परिवार में उपस्थित सास- श्वसुर, जेठ एवं अन्य श्रेष्ठजनों को उपहार देकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं. सुहाग की समस्त वस्तुएं अन्य सुहागिन महिलाओं को देकर उनका चरण स्पर्श करती हैं.

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