छिंदवाड़ा।77 साल उम्र के पार कर चुके मध्य प्रदेश सहित भारत की राजनीति का एक प्रमुख चेहरा कमलनाथ कानपुर में जन्मे लेकिन, उन्होंने अपना राजनीतिक वर्चस्व मध्य प्रदेश में कायम किया. कमलनाथ को कांग्रेस का संकटमोचक भी कहा जाता है. जानिए उनके सियासी सफर के बारे में.
कानपुर में जन्म, कोलकाता में पढ़ाई और एमपी में राजनीतिक विरासत: उत्तर प्रदेश की कानपुर में जन्में कमलनाथ की स्कूली शिक्षा देहरादून के दून स्कूल से हुई. इसके बाद उनके पिता व्यापार के सिलसिले में कोलकाता शिफ्ट हुए. वहां से कमलनाथ ने सेंट जेवियर कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया. इस दौरान उनकी नजदीकियां गांधी परिवार से बढ़ गई. दून में ही इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी और कमलनाथ स्कूली मित्र बन चुके थे और वहीं से कमलनाथ की राजनीति में शुरुआत हुई.
1980 में छिंदवाड़ा से पहली बार बने सांसद,कहलाए कांग्रेस के संकट मोचक: कमलनाथ छिंदवाड़ा लोकसभा से पहली बार 1980 में सांसद बने. इसके बाद वे लगातार 1984, 1989,1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 तक छिंदवाड़ा लोकसभा से 9 बार सांसद रहे. 1991 से 1994 तक कमलनाथ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री 1995 से 1996 में केंद्रीय कपड़ा मंत्री 2004 से 2008 तक केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री 2009 से 2011 तक केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री 2012 से 2014 तक शहरी विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री रहे.
हवाला कांड में आया नाम 1996 में नहीं मिला टिकट पत्नी जीती चुनाव: 1996 के चुनाव में कमलनाथ को कांग्रेस ने छिंदवाड़ा लोकसभा से टिकट नहीं दिया था. दरअसल कमलनाथ का नाम उस समय हवाला कांड में आया था. कांग्रेस पार्टी ने कमलनाथ की जगह इस बार उनकी पत्नी अलका नाथ को मैदान में लाया था, हालांकि अलका नाथ भी यहां पर चुनाव जीत गई थी. 1984 के सिख दंगों में भी कमलनाथ का नाम लगातार लिया जाता है. भाजपा हमेशा उन्हें इस मामले में घेरते नजर आती है.
1997 में सुंदरलाल पटवा से हार गए थे चुनाव:1996 में जब कमलनाथ की पत्नी अलका नाथ छिंदवाड़ा से सांसद बनी तो 1997 में कमलनाथ ने उन्हें लोकसभा से इस्तीफा दिलवा दिया. 1997 में छिंदवाड़ा में फिर से लोकसभा के उपचुनाव हुए. यहां पर इस बार भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को मैदान में लाया और यही वह एक चुनाव था जब कमलनाथ सुंदरलाल पटवा से चुनाव हार गए थे.
कमलनाथ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष 1968 में युवा कांग्रेस में शामिल हो गए थे कमलनाथ: छात्र जीवन से ही कमलनाथ ने राजनीति की शुरुआत कर दी थी. 1968 में कमलनाथ युवा कांग्रेस में शामिल हो गए थे और 1976 में उन्हें उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया था. 1970 से 81 तक कमलनाथ अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी रहे. 1979 में युवा कांग्रेस की ओर से कमलनाथ को महाराष्ट्र के पर्यवेक्षक का जिम्मा सौंपा गया. 2000 से लेकर 2018 तक कमलनाथ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे और वे फिलहाल मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं.
2018 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने 2020 में गिर गई सरकार:मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने के 6 महीने के बाद ही कमलनाथ कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हुए. 2018 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की और 17 दिसंबर 2018 को कमलनाथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए करीब 15 महीने तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित सिंधिया से तल्खी के चलते सिंधिया अपने समर्थक विधायकों को लेकर भाजपा में शामिल हो गए और कांग्रेस की सरकार गिर गई एक बार फिर कमलनाथ विपक्ष की भूमिका में आए और पिछले 3 सालों से लगातार कांग्रेस के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं.