मनामा : विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बहरीन के भारतवंशियों से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बातचीत की और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने में बहुमूल्य योगदान के लिए उनकी सराहना की.
जयशंकर 24-25 नवंबर की दो दिवसीय बहरीन यात्रा पर हैं. विदेश मंत्री बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात और सेशल्स, तीन देशों की छह दिन की यात्रा पर हैं. पूरी दुनिया में डर का माहौल पैदा करने वाली कोरोना वायरस महामारी के समय यह यात्रा काफी महत्वपूर्ण है.
भारतवंशियों के साथ ऑनलाइन बातचीत के बाद जयशंकर ने ट्वीट किया, 'बहरीन में भारतीय समुदाय के लोगों से ऑनलाइन बातचीत कर अच्छा लगा. भारत के झंडे को बुलंद रखने के लिए उनका धन्यवाद. हमारे द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने में बहुमूल्य योगदान की सराहना करता हूं.'
जयशंकर बहरीन की राजधानी मनामा स्थित सदियों पुराने कृष्ण मंदिर भी गए.
यह भी पढ़ें :सीमापार से होने वाले आतंकवाद को भारत ने दुनिया के सामने लाया : जयशंकर
उन्होंने ट्वीट किया, 'मनामा में 200 साल पुराने मंदिर में दर्शन के साथ दिन की शुरुआत की. यह बहरीन के साथ हमारी पुरानी और प्रगाढ़ मित्रता का साक्ष्य है.'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल मंदिर के पुनर्विकास कार्यों के लिए 42 लाख डॉलर की लागत वाली परियोजना शुरू की थी.
जयशंकर ने मंगलवार को बहरीन में अपने समकक्ष अब्दुललतीफ बिन राशिद अल जयानी के साथ द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा की.
जयशंकर ने बहरीन के उपप्रधानमंत्री शेख अली बिन खलीफा अल खलीफा से भी मुलाकात की. उन्होंने बहरीन के प्रधानमंत्री खलीफा बिन सलमान अल खलीफा के 11 नवंबर को हुए निधन पर भारत सरकार और जनता की ओर से शोक भी व्यक्त किया. बहरीन में भारतीय दूतावास ने 13 नवंबर को शहजादे खलीफा के निधन पर एक शोक सभा का आयोजन किया था.
शहजादे खलीफा का 11 नवंबर को 84 साल की उम्र में अमेरिका में निधन हो गया था, जहां उनका उम्र संबंधी बीमारियों का इलाज चल रहा था. उन्हें 13 नवंबर को सुपुर्द-ए-खाक किया गया था. वह प्रधानमंत्री पद पर सबसे ज्यादा समय तक सेवा देने वाले दुनिया के चंद नेताओं में शामिल रहे.
जयशंकर ने ट्वीट किया कि बहरीन के उपप्रधानमंत्री शेख अली से मुलाकात की. उनके पिता शहजादे खलीफा का निधन होने पर उनके और उनके परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की.
शाह हम्माद बिन ईसा अल खलीफा के चाचा, शहजादे खलीफा ने 1970 में प्रधानमंत्री का औहदा संभाला था और अपने निधन तक इस पद पर काबिज़ रहे. वह 1971 में बहरीन के स्वतंत्र होने से एक साल पहले ही प्रधानमंत्री बन गए थे.