बेंगलुरु : चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारने के एक पखवाड़े से भी कम समय में सूर्य के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए 'आदित्य-एल1' को रवाना करने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब अंतरिक्ष की समझ को और बढ़ाने के लिए अन्य परियोजना के साथ तैयार है. एक्पोसैट (एक्सर रे पोलारिमीटर सैटेलाइट) भारत का पहला समर्पित पोलारिमेट्री मिशन है जो कठिन परिस्थितियों मे भी चमकीले खगोलीय एक्सरे स्रोतों के विभिन्न आयामों का अध्ययन करेगा.
इसके लिए पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष यान भेजा जाएगा जिसमें दो वैज्ञानिक अध्ययन उपकरण (पेलोड) लगे होंगे. इसरो ने बताया कि प्राथमिक उपकरण 'पोलिक्स' (एक्सरे में पोलारिमीटर उपकरण) खगोलीय मूल के 8-30 केवी फोटॉन की मध्यम एक्स-रे ऊर्जा रेंज में पोलारिमेट्री मापदंडों (ध्रुवीकरण की डिग्री और कोण) को मापेगा. इसरो के अनुसार, 'एक्सस्पेक्ट' (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) पेलोड 0.8-15 केवी की ऊर्जा रेंज में स्पेक्ट्रोस्कोपिक (भौतिक विज्ञान की एक शाखा जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है) की जानकारी देगा.
इसरो के एक अधिकारी ने बेंगलुरु स्थित मुख्यालय में कहा, 'एक्सपोसैट प्रक्षेपण के लिए तैयार है.' इसने कहा कि ब्लैकहोल, न्यूट्रॉन तारे, सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक, पल्सर पवन निहारिका जैसे विभिन्न खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन तंत्र जटिल भौतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है और इसे समझना चुनौतीपूर्ण है. अंतरिक्ष एजेंसी के अधिकारियों का कहना है कि हालांकि विभिन्न अंतरिक्ष-आधारित वेधशालाओं द्वारा प्रचुर मात्रा में स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी प्रदान की जाती है, लेकिन ऐसे स्रोतों से उत्सर्जन की सटीक प्रकृति को समझना अभी भी खगोलविदों के लिए चुनौतीपूर्ण है.