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भारत ने रचा इतिहास, सफल रहा देसी नेविगेशन सिस्टम 'गगन' का टेस्ट

नेविगेशन की दुनिया में भारत ने गुरुवार को इतिहास रच दिया. राजस्थान के किशनगढ़ एयरपोर्ट पर पहली बार भारत में विकसित नेविगेशन सिस्टम 'गगन' की मदद से फ्लाइट ने लैंडिंग की. इस सफलता के बाद भारत एशिया-पैसिफिक रीजन में ऐसा कारनामा करने वाला पहला देश बन गया है.

Gagan to land a flight
Gagan to land a flight

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Published : Apr 28, 2022, 9:19 PM IST

नई दिल्ली :राजस्थान में अजमेर के पास किशनगढ़ हवाई अड्डे पर एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भारत में विकसित नेविगेशन सिस्टम 'गगन' (GPS Aided GEO Augmented Navigation) का परीक्षण किया. इस दौरान इंडिगो की एक फ्लाइट को 'गगन' की नेविगेशन के सहारे लैंडिंग कराई गई. अथॉरिटी के मुताबिक यह परीक्षण सफल रहा. इसके साथ ही भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला एशिया पैसिफिक क्षेत्र का पहला देश बन गया है. अधिकारियों ने कहा कि इंडिगो की फ्लाइट में गगन (GPS Aided GEO Augmented Navigation) आधारित लैंडिंग का इस्तेमाल किया गया था. यह भारतीय नागरिक उड्डयन के इतिहास में एयर नेविगेशन सर्विसेज (एएनएस) के क्षेत्र में एक बड़ा मील का पत्थर है.

गगन में वर्टिकल गाइडेंस के साथ लोकलाइज़र परफॉर्मेंस (LPV) एयरक्राफ्ट को गाइड करता है. इस कारण ग्राउंड बेस्ट नेविगेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत खत्म हो जाती है. यह सर्विस अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की ओर से लॉन्च किए गए GPS और GAGAN सैटेलाइट (GSAT-8, GSAT-10 और GSAT-15) की उपलब्धता पर निर्भर करती है. गगन एक भारतीय उपग्रह आधारित सिस्टम (SBAS) है, जिसे एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो की ओर से संयुक्त रूप से विकसित किया गया है. गगन सिस्टम को भारत के सिविल एविएशन रेगुलेटर डीजीसीए ने 2015 में एप्रोच विद वर्टिकल गाइडेंस (APV 1) और एन-रूट ऑपरेशन के लिए सर्टिफाइ किया था.

अभी तक पूरी दुनिया में स्पेस आधारित नेविगेशन के चार सिस्टम मौजूद हैं. भारत के पास अब गगन है जबकि अमेरिका के पास नेविगेशन के लिए डब्ल्यूएएएस सिस्टम (WAAS system) है. यूरोप के पास ईजीएनओएस (EGNOS) और जापान के पास एमएसएएस (MSAS) सिस्टम है. गगन भारत और पड़ोसी देशों के लिए विकसित इस तरह की पहला सिस्टम है. एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुसार, परीक्षण के दौरान किशनगढ़ हवाई अड्डे पर इंडिगो ने अपने एटीआर विमान को गगन नेविगेशन के जरिये 250 फीट के एलपीवी मिनिमा के साथ उड़ाया, जो सफल रहा. डीजीसीए की अंतिम मंजूरी के बाद यह सिस्टम अन्य एयलाइंस के लिए उपलब्ध होगी.

गगन से क्या होंगे फायदे : गगन नेविगेशन का फायदा उन क्षेत्रीय एयरपोर्ट पर मिलेगा, जो आकार में छोटे हैं. इसकी मदद से उन एयरपोर्ट पर विमानों की लैंडिंग आसान हो जाएगी, जहां महंगे इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम नहीं हैं. खराब मौसम और विजिबिलिटी कम होने पर 250 फीट तक की ऊंचाई में भी पायलट को नेविगेशन का सपोर्ट मिलेगा. इस कारण लैंडिंग के दौरान बेहतर सुरक्षा मिलेगी. ईंधन की खपत में कमी आएगी और फ्लाइट में देरी, डायवर्जन और कैंसिलेशन की नौबत भी नहीं आएगी.
गगन के जरिये एक मैसेज सर्विस (GMS) भी शुरू होगी, जो लोगों को मौसम का पूर्वानुमान बताएगा और खतरों की चेतावनी देगा. इसरो की ओर से डिवेलप नेविगेशन सिस्टम का फायदा न सिर्फ एविएशन सेक्टर को मिलेगा, बल्कि मछुआरों और किसानों को भी लाभ मिलेगा. भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत और बचाव कार्य में भी गगन मदद करेगा. रेलवे, सर्वेक्षण, कृषि, विद्युत क्षेत्र, खनन आदि क्षेत्र में भी गगन की सेवा ली जाएगी.
वर्तमान में, इंडिगो के पास 35, स्पाइसजेट के पास 21, एयर इंडिया के पास 15 और गो फर्स्ट के पास 4 एयरक्राफ्ट हैं. इसके अलावा एयर एशिया के पास भी एक एयरक्राफ्ट है. ये सभी विमान कंपनिया एलपीवी सिस्टम पर आधारित गगन का उपयोग कर सकते हैं. अधिकारियों के मुताबिक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने फ्लाइट संचालन के लिए 22 सिस्टम डिवेलप किए है, डीजीसीए की अनुमति के बाद यह सभी लागू हो जाएगी.

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