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भारत में लोकतंत्र की जड़ें चौथी शताब्दी में मिल सकती हैं : प्रधान

'इंडिया : द मदर ऑफ डेमोक्रेसी' नामक पुस्तक का विमोचन करते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Union Minister for Education Dharmendra Pradhan) ने कहा कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें चौथी शताब्दी में मिल सकती हैं और तंजाबूर के शिलालेख इसके जीवंत प्रमाण हैं.

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Published : Nov 24, 2022, 7:45 PM IST

Updated : Nov 24, 2022, 10:52 PM IST

Union Minister for Education Dharmendra Pradhan
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान

नई दिल्ली : केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान (Union Minister for Education Dharmendra Pradhan) ने गुरुवार को कहा कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें चौथी शताब्दी में मिल सकती हैं और तंजाबूर के शिलालेख इसके जीवंत प्रमाण हैं. भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के अध्यक्ष रघुवेन्द्र तंवर तथा सदस्य सचिव उमेश अशोक की पुस्तक 'इंडिया : द मदर ऑफ डेमोक्रेसी' का विमोचन करते हुए प्रधान ने यह बात कही.

शिक्षा मंत्री ने कहा कि पश्चिमी दुनिया की बातों से इतर लोकतंत्र के मूल स्रोत में से एक भारतीय सभ्यता का सार है. उन्होंने कहा कि कलिंग और लिच्छवी शासन के दौर के सामाजिक प्रणाली के साक्ष्य भारत के लोकतांत्रिक डीएनए के बारे में विस्तार से बताते हैं. उन्होंने कहा कि भारत बुद्ध और गांधी की भूमि है और इसके मूल्य हमेशा वैश्विक बेहतरी के लिए हैं. केंद्रीय मंत्री ने ऐतिहासिक तथ्यों और कथाओं को खारिज करते हुए रेखांकित किया कि भारत में न केवल सबसे पुराना लोकतंत्र है, बल्कि लोकतंत्र की जननी भी है. पश्चिमी दुनिया द्वारा और विचारधारा के एक निश्चित समूह द्वारा स्थापित आख्यानों को खारिज करते हुए, प्रधान ने अपने भाषण के दौरान कहा कि 'यह न तो यूरोप था और न ही यूनानियों या एथेंस ने दुनिया को एक लोकतांत्रिक व्यवस्था दी थी. यह भारत था जिसने एक लोकतांत्रिक व्यवस्था दी थी. जो पिछले 3000 वर्षों के हमारे सभ्यतागत और सांस्कृतिक लोकाचार का हिस्सा रहा है.'

केंद्रीय मंत्री प्रधान ने कहा कि कि भारत में अन्य आख्यानों और संस्कृतियों को खारिज किए बिना स्वीकार करने की संस्कृति है. उन्होंने कहा, 'उर्दू और फ़ारसी कैसे आए और आत्मसात हो गए. यह हमारे सांस्कृतिक लोकाचार का प्रतिनिधित्व करता है. आप किसी अन्य भाषा या संस्कृति को मानते और स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन अंत में हम सभी भारतीय हैं.' इस पुस्तक के लिए उत्कृष्ट योगदान के लिए भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) और विभिन्न विद्वानों के प्रयासों की सराहना करते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'एक समाज जो अपनी सभ्यता के कौशल पर गर्व नहीं करता है, वह सोच नहीं सकता और बड़ा हासिल नहीं कर सकता है.'

उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यतागत लोकाचार पश्चिमी दुनिया द्वारा निर्धारित कथा के विपरीत लोकतंत्र के मूल स्रोतों में से एक है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की जड़ें भारत में चौथी शताब्दी से ही खोजी जा सकती हैं. तंजावुर (तमिलनाडु) के पत्थर के शिलालेख एक हैं उसी का जीवंत प्रमाण हैं. कार्यक्रम में आईसीएचआर के अध्यक्ष प्रोफेसर रघुवेंद्र तंवर, प्रोफेसर उमेश कुमार कदम (ICHR) और दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू के विभिन्न विद्वानों के अलावा अन्य लोग उपस्थित थे.

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(एक्सट्रा इनपुट-भाषा)

Last Updated : Nov 24, 2022, 10:52 PM IST

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