नई दिल्ली : म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के साथ भारत के पड़ोस में हाल ही में हुए दो अन्य असंबंधित घटनाक्रमों ने संकेत दिया है कि निकट भविष्य में भारतीय विदेश नीति और रणनीति के सामने आने वाली चुनौतियां काफी अकाट्य होंगी.
ये घटनाक्रम मॉरीशस और श्रीलंका में हुए हैं. भारत के लिए रणनीतिक पहुंच और चीन के सामने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए दोनों देश भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं. ऐसे समय में, जब पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन के बीच पिछले नौ महीने से सैन्य गतिरोध बना हुआ है.
म्यांमार में जून्टा द्वारा किए गए सैन्य तख्तापलट ने मॉरीशस और श्रीलंका के साथ मिलकर देश में लोकतांत्रिक आंदोलन के लिए भारतीय प्रयास को धक्का लगा है. यह उस क्षेत्र में भारतीय विदेश नीति और रणनीति के लिए एक झटका है, जहां भारत ने धन के अलावा बहुत समय और श्रम का निवेश किया है.
मॉरीशस
चीन ने हाल ही में मॉरीशस के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) लागू किया है, जिस पर दोनों देशों ने जनवरी 2021 में हस्ताक्षर किए थे.
यह किसी अफ्रीकी देश के साथ चीन का पहला एफटीए है, जो उस क्षेत्र में स्थित है, जिस पर भारत अपनी मजबूत रणनीतिक पकड़ मानता है. चीन के इस कदम से भविष्य अफ्रीका में उसके लिए व्यापारिक द्वार खुलेंगे.
दूसरी ओर, मॉरीशस के साथ भारत के प्रस्तावित एफटीए को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है. जिसे भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौता (सीईसीपीए) कहा जा रहा है.
मॉरीशस में भारतीय सबसे बड़ा जातीय समूह है और सीईसीपीए का उद्देश्य ऐतिहासिक संबंधों को बढ़ाना है, ताकि वस्तु और सेवाओं के व्यापार के क्षेत्र में दोनों देश परस्पर लाभान्वित हो सकें.