कुल्लू :भूख लगने पर मोबाइल पर एक क्लिक में आपका मनपसंद खाना घर पहुंच जाता है. कहीं जाना हो तो एक क्लिक पर कैब आपके दरवाजे पर पहुंच जाती है. लेकिन दुनिया में हर किसी के पास इतनी सहूलियतें नहीं है. हिमाचल प्रदेश में आई भीषण आपदा के बाद जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट तो रही है लेकिन यहां जिंदगी जीने के लिए जरूरी सामान जुटाना फिलहाल सबसे बड़ी जद्दोजहद है. इन दिनों मीडिया और सोशल मीडिया में पाकिस्तान की महंगाई के चर्चे हैं. लेकिन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में भी इन दिनों रोजमर्रा के सामान की कीमत घर पहुंचते पहुंचते लगभग दोगुना हो जाता है. यहां आपदा का साइडइफेक्ट या यूं कहें आफ्टर इफेक्ट महंगाई के रूप में सामने आ रहा है.
1000 रुपये की आटे की बोरी 800 रुपये ढुलाई-कंगाली में आटा गीला होने की कहावत आपने सुनी होगी, लेकिन कुल्लू जिले के कई गांव इस कहावत को साक्षात झेल रहे हैं. पहले आसमान से बरसी आफत में कईयों का सबकुछ बह गया और अब जिंदा रहना ही सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. ऐसा नहीं है कि हिमाचल प्रदेश में महंगाई बढ़ गई है. दरअसल महंगाई की ये मार आपदा की वजह से पड़ रही है. भारी बारिश और लैंड स्लाइड के कारण सड़कें टूट गई हैं, नदियों पर बने पुल बह गए हैं. जिसके कारण आटा, दाल, चावल जैसी चीजें लाने के लिए कई किलोमीटर का सफर करना पड़ता है. इतनी दूर से सामान जुटाने के लिए घोड़े और खच्चरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. 1000 रुपये की आटे या चावल की बोरी को घर तक पहुंचाने के लिए 600 से 800 रुपये देने पड़ रहे हैं.
सामान की ढुलाई पड़ रही महंगी-कुल्लू जिले की मणिकर्ण और सैंज घाटी पर इस बार कुदरत की ऐसी मार पड़ी कि सैलाब का पानी को निकल गया है लेकिन इसके निशान अब जिंदगी की राह मुश्किल कर रहे हैं. मणिकर्ण से बरशैणी सड़क मार्ग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुआ है. 20 किलोमीटर का यह सड़क मार्ग छोटे वाहनों की आवाजाही के लिए शुरू कर दिया गया है लेकिन बड़े वाहनों के लिए फिलहाल इंतजार करना होगा. यही वजह है कि बरशैणी पंचायत और आस-पास के रहने वाले लोगों को राशन लेने के लिए मणिकर्ण का रुख करना पड़ रहा है. ऐसे में लोगों को या तो छोटे वाहनों में सामान ढोना पड़ रहा है या फिर उन्हें घोड़े खच्चर की मदद लेनी पड़ रही है. जिसका अतिरिक्त किराया कंगाली में आटा गीला कर रहा है. सैंज और मणिकर्ण की करीब 6 पंचायतों के 30 से ज्यादा गांव की इन दिनों यही सबसे बड़ी परेशानी है.
किराना दुकानों में सामान खत्म- आपदा के शुरुआती दौर में प्रशासन ने हैलीकॉप्टर के जरिये सैंज और मणिकर्ण जैसे इलाकों में गांव-गांव राशन भी पहुंचाया था लेकिन अब गांव में राशन खत्म हो गया है. गांव की दुकानों में भी राशन से लेकर अन्य सामान खत्म हो चुका है क्योंकि सड़के ठीक ना होने के चलते किराना की दुकान में सामान की सप्लाई नहीं पहुंच रही है. ऐसे में सबसे नजदीकी बाजार 25 से 30 किलोमीटर दूर है. बाजार से घर के लिए राशन लाने के लिए लोगों को घोड़े, खच्चरों का सहारा लेना पड़ रहा है. जिसके लिए अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं और जेब पर बोझ बढ़ता जा रहा है.
हर सामान का दाम लगभग डबल- आटे और चावल की बोरी अगर बाजार में 1000 रुपये की मिल रही है तो उसे घर तक पहुंचाने के लिए 600 से 800 रुपये देने पड़ रहे हैं. LPG सिलेंडर की सप्लाई भी सड़क ना होने के कारण ठप है ऐसे में बाजार से रसोई तक सिलेंडर पहुंचाने के लिए 600 रुपये देने पड़ेंगे. 20 रुपये की पानी की बोतल घर तक पहुंचते-पहुंचते 35 रुपये की पड़ रही है. कुल मिलाकर सामान की ढुलाई लोगों की आर्थिक सेहत बिगाड़ रही है. इन इलाकों में आपदा के बाद से बिजली भी नहीं है, लेकिन इन लोगों के लिए चुनौतियों का पहाड़ इससे भी ऊंचा है.