लाहौल स्पीति: हिमाचल प्रदेश का लाहौल स्पीति जिला साल में 6 महीने बर्फ की चादर ओढ़े रहता है. वैसे तो यहां के लोग ज्यादातर कृषि और उससे संबंधित कामों पर ही निर्भर रहते हैं, लेकिन नवंबर-दिसंबर में शुरू होने वाली बर्फबारी से पहले कई लोग पहाड़ों से नीचे उतर आते हैं, तो कुछ कुल्लू शिफ्ट हो जाते हैं. जिनके पास कोई विकल्प नहीं होता वो लाहौल और स्पीति में रुक जाते हैं. जहां इन 6 महीने खेती-बाड़ी तो छोड़िये लगभग हर काम ठप हो जाता है, क्योंकि इस बर्फिस्तान में किसी फसल का उगना लगभग नामुमकिन है, लेकिन एक पौधा धीरे-धीरे हिमाचल के इस जनजातीय जिले की किस्मत बदल रहा है. इस पौधे की खासियत शरीर के साथ-साथ जेब की सेहत को भी तंदुरुस्त रखती है. सीबकथोर्न (Sea buckthorn) या छरमा की खेती यहां के किसानों को मालामाल कर रही है.
औषधीय गुणों से भरपूर है छरमा- सीबकथोर्न या छरमा एक फलदार पौधा है. जिसका फल (बेरी), फूल, पत्तियां, तना और जड़ भी काफी फायदेमंद माना जाता है. कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी रहे डॉ. पंकज सूद ने बताया कि "औषधीय गुणों से भरपूर इसके फल में ओमेगा-7 फैटी एसिड पाया जाता है. इसकी पत्तियों में ओमेगा फैटी एसिड 3, 6, 7 और 9 पाए जाते हैं. ये पौधा एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन सी, ई के साथ-साथ अमीनो एसिड समेत कई तत्वों से भरपूर है. जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. आयुर्वेद चिकित्सक डॉक्टर मनीष सूद का कहना है कि सीबकथोर्न का फल पोषक तत्वों से भरपूर है जो दिल की सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. सीबकथोर्न से बने उत्पाद पेट से जुड़ी बीमारी से लेकर पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत ही कारगर साबित होते हैं.
सीबकथोर्न कैसे कर रहा किसानों को मालामाल- दरअसल दो दशक पहले तक इस पौधे से जुड़ी ज्यादातर जानकारी लोगों को नहीं थी. लाहौल स्पीति के लोग जंगल में पहले से प्राकृतिक रूप से उगने वाले सीबकथोर्न की खेती करते थे लेकिन इसकी किस्म अच्छी ना होने के कारण उत्पादन बहुत कम होता था. लेकिन अब उन्हें हाइब्रिड पौधे उपलब्ध करवाए गए हैं. हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (IHBT) और चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने लाहौल-स्पीति के किसानों को रूस से मंगवाए हाइब्रिड सीबकथोर्न (छरमा) के पौधे उपलब्ध करवाए हैं.
सीबकथोर्न के फल से लेकर पत्तियों और जड़ का इस्तेमाल दवाओं से लेकर सप्लीमेंट समेत अन्य उत्पादों में किया जाता है. इसके अलावा जूस, जैम, बिस्किट से लेकर ग्रीन टी जैसे कई प्रोडक्ट तैयार किए जाते हैं. इस पौधे का हर भाग औषधीय गुणों से भरपूर है. ये पौधा माइनस डिग्री तापमान पर भी जीवित रह सकता है. माइनस 40 से 45 डिग्री तापमान में भी फलने फूलने की इसकी खासियत इसे लाहौल के लोगों के लिए आय का बड़ा जरिया बनाती है.
लाहौल के मयाड़ घाटी की रहने वाली रिगजिन ने बताया कि वो 6 सहायता समूह की महिलाओं के साथ मिलकर सीबकथोर्न की खेती और उत्पाद बनाने का काम कर रही है. केयर हिमालय नाम की संस्था के द्वारा उन्हें सीबकथोर्न के फलों और पत्तियों को प्रोसेस करने के लिए मशीन उपलब्ध करवाई गई है और पैकेजिंग का कार्य भी वे सभी महिलाएं मिलकर करती हैं. ऐसे में इस कंपनी को सीबकथोर्न से तैयार उत्पादों को बेचा जाता है. जिससे इन लोगों की अच्छी खासी कमाई भी हो रही है. इसके अलावा अन्य लोगों को भी इसके प्रति जागरुक किया जा रहा है.
लाहौल स्पीति के किसानों का कहना है कि लाहौल घाटी में 6 महीने ही कृषि कार्य होते हैं. ऐसे में सीबकथोर्न की खेती से उन्हें अतिरिक्त आर्थिक लाभ पहुंच रहा है क्योंकि भारी बर्फबारी के बीच भी सीबकथोर्न के पौधों को कोई नुकसान नहीं होता है और उन्हें सीबकथोर्न के फल व पत्तियों से अतिरिक्त आय हो रही है।