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'पाइका विद्रोह' को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम घोषित करने पर विचार कर रही सरकार - G. Kishan Reddy

केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी (Union Minister for Culture and Tourism G. Kishan Reddy) ने राज्यसभा में जानकारी दी है कि 'पाइका विद्रोह' को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में घोषित किए जाने के अनुरोध पर शिक्षा मंत्रालय विचार कर रहा है.

'पाइका विद्रोह'
'पाइका विद्रोह'

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Published : Aug 11, 2021, 8:20 PM IST

नई दिल्ली :केंद्रसरकार ने मंगलवार को कहा कि 'पाइका विद्रोह' को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में घोषित किए जाने के अनुरोध पर शिक्षा मंत्रालय विचार कर रहा है.

ओडिशा के राज्यसभा सांसद प्रसन्ना आचार्य द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी (Union Minister for Culture and Tourism G. Kishan Reddy) ने राज्यसभा में यह जानकारी दी.

बता दें कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 1817 में ओडिशा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ पाइका द्वारा ऐतिहासिक सशस्त्र विद्रोह 'पाइका विद्रोह' को स्वतंत्रता के पहले युद्ध के रूप में मान्यता देने का गृह मंत्रालय से अनुरोध किया था.

रेड्डी ने कहा कि 'पाइका विद्रोह' को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में घोषित किए जाने का अनुरोध संस्कृति मंत्रालय को प्राप्त हुआ था. इस मामले की जांच भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद, शिक्षा मंत्रालय के परामर्श से की गई थी और यह वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय के विचाराधीन है.

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उन्होंने कहा कि जहां तक भारत के जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ी स्मृतियों को संरक्षित करने का संबंध है, यह उल्लेख किया जाता है कि केंद्र ने ओडिशा सहित सभी राज्य सरकारों से अनुरोध किया है कि जिला स्तर पर डिजिटल संग्रह सृजित किया जाए ताकि जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों सहित स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ी स्मृतियों को संरक्षित किया जा सके और आजादी का अमृत महोत्सव के तहत भारत सरकार द्वारा विकसित किए जा रहे वेब पोर्टल पर अपलोड किया जा सके.

पाइका विद्रोह क्या है?

मूल रूप से पाइक, ओडिशा के गजपति शासकों के किसानों का असंगठित सैन्य दल था, जो युद्ध के समय राजा को सैन्य सेवाएं मुहैया कराते थे और शांतिकाल में खेती करते थे. खुर्दा के राजा के सेनापति बक्शी जगबंधु बिद्याधर की 1817 में पाइकों की खुद की सेना थी. खुर्दा के शासक परंपरागत रूप से जगन्नाथ मंदिर के संरक्षक थे और धरती पर उनके प्रतिनिधि के तौर पर शासन करते थे. वो ओडिशा के लोगों की राजनीतिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के प्रतीक थे.

ब्रिटिश राज ने 1803 में ओडिशा को भी अपने अधिकार में कर लिया था. उस समय ओडिशा के गजपति राजा मुकुंददेव द्वितीय अवयस्क थे और उनके संरक्षक जय राजगुरु द्वारा किए गए शुरुआती प्रतिरोध का क्रूरता पूर्वक दमन किया गया और जयगुरु के शरीर के जिंदा रहते हुए ही टुकड़े कर दिए गए. इन घटनाओं से लोगों में रोष व्‍याप्‍त था. उसके बाद ब्रिटिश राज ने जब राजस्व व्यवस्था में बदलाव करने का फैसला किया तो ये असंतोष बगावत में बदल गया.

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गजपति राजाओं के असंगठित सैन्य दल के वंशानुगत मुखिया बक्शी जगबंधु के नेतृत्व में पाइका विद्रोहियों ने आदिवासियों और समाज के अन्य वर्गों का सहयोग लेकर बगावत कर दी. पाइका विद्रोह 1817 में आरंभ हुआ और बहुत ही तेजी से फैल गया. हालांकि ब्रिटिश राज के विरुद्ध विद्रोह में पाइका लोगों ने अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन किसी भी मायने में यह विद्रोह एक वर्ग विशेष के लोगों के छोटे समूह का विद्रोह भर नहीं था.

विद्रोह से पहले तो अंग्रेज चकित रह गए, लेकिन बाद में उन्होंने आधिपत्य बनाए रखने की कोशिश की लेकिन उन्हें पाइका विद्रोहियों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. बाद में हुई कई लड़ाइयों में विद्रोहियों को विजय मिली, लेकिन तीन महीनों के अंदर ही अंग्रेज अंतत: उन्हें पराजित करने में सफल रहे. इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला जिसमें कई लोगों को जेल में डाला गया और अपनी जान भी गंवानी पड़ी.

बहुत बड़ी संख्या में लोगों को अत्याचारों का सामना करना पड़ा. कई विद्रोहियों ने 1819 तक गुरिल्ला युद्ध लड़ा, लेकिन अंत में उन्हें पकड़ कर मार दिया गया. बक्शी जगबंधु को अंतत: 1825 में गिरफ्तार कर लिया गया और कैद में रहते हुए ही 1829 में उनकी मृत्यु हो गई.

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