नई दिल्ली:सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) ने गुरुवार को कर्मचारियों की "जबरन सेवानिवृत्ति" की नीति अपनाने के लिए केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की है. इस मामले पर ईटीवी भारत से बात करते हुए सीटू महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद तपन सेन ने कहा कि पूरे ट्रेड यूनियन आंदोलन ने सरकार की इस घोर पहल का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि यह बड़ी आउटसोर्सिंग के लिए एक चाल है.
जबरन सेवानिवृत्ति पर सरकार को घेरा
पूर्व राज्यसभा सांसद तपन सेन ने कहा कि यह केवल केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों तक सीमित नहीं है. विभिन्न राज्य सरकार (विशेष रूप से भाजपा शासित राज्य) भी एक ही नीति अपना रहे हैं. केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र में जिनकी सेवा की स्थिति अलग-अलग परिभाषित की जाती है. सेन ने कहा कि मंत्रालय प्रबंधन को निर्देश दे रहा है कि कर्मचारियों की सेवा शर्त में इस प्रावधान को शामिल किया जाए ताकि प्रबंधन लोगों को जबरन सेवानिवृत्त कर सके. सेन ने कहा कि यह बहुत ही अत्याचारी कदम है और इसकी कोई जरूरत भी नहीं है.
दो साल से खाली पड़े पदों को किया जा रहा खत्म
हमला बोलते हुए सीटू महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद तपन सेन ने कहा कि केंद्र, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्रों में कई रिक्तियां हैं, जो विभागों के काम को प्रभावित करती हैं. उन्होंने आगे कहा कि यहां तक कि रेलवे में भी विशेष रूप से सुरक्षा से संबंधित क्षेत्रों में भारी रिक्तियां हैं और इसके साथ ही रेलवे ने उन रिक्तियों को समाप्त करने का निर्णय लिया है जो दो साल से खाली पड़ींं हैं. उन्होंने कहा कि सरकार की कोशिश है कि सरकारी विभागों में भी बड़ी आउटसोर्सिंग के लिए एक आधार बनाया जाए. उन्होंने कहा कि "मुख्य रूप से सरकारी विभागों का भी पिछले दरवाजे के माध्यम से निजीकरण किया जा रहा है और उस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार ने निराधार तरीके से भयानक सेवानिवृत्ति के नृशंस उपाय के माध्यम से सरकारी तैनाती को कम करने की पहल की है.