कोलकाता:प्रसिद्ध बंगाली साहित्यकार समरेश मजुमदार का सोमवार शाम एक प्राइवेट हॉस्पिटल में निधन हो गया, उनके निधन की खबर से बंगाल में शोक की लहर दौड़ गई. 'कालबेला' के लेखक ने 79 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली. उन्होंने 'कालबेला' के साथ ही 'उत्तराधिकार', 'सातखान', 'कालपुरुष' समेत अन्य कई कालातीत उपन्यासों की रचना की.
बता दें कि उन्हें सांस लेने में तकलीफ के चलते कोलकाता के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उन्होंने सोमवार शाम साढ़े पांच बजे अंतिम सांस ली. वह लंबे समय से फेफड़ों से जुड़ी समस्या से जूझ रहे थे. उन्हें वेंटिलेशन सपोर्ट पर रखा गया था. लेकिन, सोमवार शाम तमाम कोशिशों के बावजूद लेखक को बचाया नहीं जा सका. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी लेखक के निधन पर शोक व्यक्त किया है.
बंगाल की सीएम ने शोक व्यक्त कर कहा 'प्रख्यात लेखक समरेश मजूमदार के निधन से मुझे गहरा दुख हुआ है, उनका आज कोलकाता में निधन हो गया. वह 79 वर्ष के थे. बंगाली साहित्य के सबसे प्रखर वक्ता समरेश मजूमदार अपनी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं. 'भागो', 'कालबेला', 'कालपुरुष' ,'गर्भधारिणी', 'लाशया', 'अर्जुन सांबरी', 'सतकहान' आदि उनकी फेमस रचनाएं हैं.
समरेश मजूमदार को 2018 में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 'बंगविभूषण' से सम्मानित किया गया था, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, आनंद पुरस्कार, बीएफजेए पुरस्कार सहित कई सम्मान मिले हैं. दिवंगत लेखक का जन्म 10 मार्च, 1944 को जलपाईगुड़ी में हुआ था और उन्होंने अपना अधिकांश बचपन जलपाईगुड़ी के डूआर्स में बिताया. जलपाईगुड़ी जिला स्कूल से पढ़ाई करने के बाद लेखक ने बंगाली साहित्य में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से ग्रेजुएशन किया, उनकी पहली कहानी 1967 में 'दौर' में देश पत्रिका में प्रकाशित हुई थी. 2018 में उन्हें साहित्य में योगदान के लिए बंगबिभूषण से सम्मानित किया गया था. उन्होंने 'कोलकाता में नवकुमार' कहानी के लिए बंकिम पुरस्कार जीता था. 1984 में, समरेश मजूमदार को कालबेला के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.
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