नई दिल्ली : रुपये में गिरावट के कारण अमरीका के लिए औसत अतिरिक्त लागत 1.5 से 2 लाख रुपए प्रति वर्ष बढ़ गई हैं. विदेशों में मंहगी हो रही पढाई का एक कारण इंग्लैंड, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख देशों के लिए ट्यूशन फीस में 10 से 20 प्रतिशत की वृद्धि है. साथ ही हवाई जहाज के किराए जैसी अन्य लागतों में भी हाल के दिनों में वृद्धि देखी गई है.
विदेशों में पढाई मंहगी होने के बावजूद अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में लाखों भारतीय छात्रों के वीजा स्वीकृत नहीं हुए हैं. छात्रों को स्टूडेंट वीजा मिलने में लंबी देरी हो रही है लेकिन जिन छात्रों का वीजा सौभाग्यवश स्वीकृत कर दिया गया है उन्हें रुपये में गिरावट के कारण महंगाई का सामना करना पड़ रहा है. विदेशों में भारतीय छात्रों को पी.जी. (हॉस्टल) और होमस्टे की कीमतों में वृद्धि के कारण रहने की जगह ढूंढने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. साथ ही महामारी के बाद इन देशों में बड़ी संख्या में लोगों के आने के कारण भी मंहगाई बढ़ी हैं.
यूके, अमरीका और कनाडा जैसे लोकप्रिय देशों में पढ़ाई का वीजा मिलने में होने वाली लंबी देरी का लाभ जर्मनी को मिलता दिख रहा है. इसमें भारतीय छात्रों का भी एक बड़ा हित है. हाल ही में आई जर्मन एकेडमिक एक्सचेंज सर्विस (डी.ए.ए.डी.) की एक रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी में पढ़ने जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 2017 में 17,570 से 2021 में बढ़कर 34,134 हो गई.
दरअसल जर्मन सरकार द्वारा शिक्षा पर सब्सिडी प्रदान की जाती है. यहां राज्य द्वारा वित्तपोषित विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों को ट्यूशन फीस नहीं देनी पड़ती है. यह बात जर्मनी के भारतीय छात्रों के लिए सबसे बड़े लाभों में से एक है. विदेशों में मंहगी हो रही पढाई के बीच भारतीय छात्रों के लिए यह एक राहत की बात है.
हालांकि जर्मनी जैसे देशों में भारतीय छात्रों को कम लागत पर विभिन्न पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं बावजूद इसके छात्र पढ़ाई के लिए अलग-अलग कारणों से अलग-अलग देशों का चुनाव करते हैं. कई बार बड़े लाभ मिलने के बावजूद छात्र अपनी वरीयता और पसंद को जल्दी नहीं बदलते हैं. विदेशों में पढ़ाई के लिए भारत के सबसे बड़े समुदाय आधारित प्लैटफॉर्म, यॉकेट के सह-संस्थापक सुमीत जैन ने बताया रुपये में गिरावट के कारण अमरीका के लिए औसत अतिरिक्त लागत 1.5 से 2 लाख रुपए प्रति वर्ष बढ़ गई हैं.