नई दिल्ली: कोरोना वायरस के प्रकोप और वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन पटाखों की बिक्री और खरीद पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. उनका कहना है कि ग्रीन पटाखे भी वायु की गुणवत्ता के लिए खतरनाक हो सकते हैं और स्थिति को और भी बदतर बना सकते हैं.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सोमवार को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ चार राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है. एनजीटी ने पूछा है कि क्या सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के हित में 7-30 नवंबर तक पटाखों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए?
इस मामले में एनजीटी ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों और दिल्ली के पुलिस आयुक्त से जवाब मांगा है.
इस मामले पर ईटीवी भारत से बात करते हुए पर्यावरणविद् विमलेंदु झा ने कहा कि वास्तव में वायु गुणवत्ता सूचकांक को बढ़ाने में पटाखों के योगदान को देखा गया है. वर्तमान में, हम पहले से ही 'गंभीर' क्षेत्र में हैं. हम पहले से ही कोरोना महामारी से संघर्ष कर रहे हैं. इसको ध्यान में रखते हुए पटाखों पर प्रतिबंध लगाना बहुत महत्वपूर्ण कदम है.
उन्होंने कहा कि लोगों को लगता है कि वे सिर्फ एक ही दिन पटाखे जलाते हैं, लेकिन इसका असर लंबे समय तक बना रहता है.
ग्रीन पटाखों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'कागजों पर यह 'ग्रीन' लगता है, वास्तव में यह 'ग्रीन क्रैकर्स' नहीं हैं. यह मौजूदा पटाखों की तुलना में 30 प्रतिशत कम प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं. अंतर केवल इतना है कि सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे कम विषैले होते हैं.
बता दें कि ग्रीन पटाखे या तो बेरियम सॉल्स से बनाए जाते हैं या बेरियम की कम मात्रा के साथ निर्मित किए जाते हैं. यह पारंपरिक पटाखों की तुलना में 2.5 PM का 30-35 प्रतिशत तक कम उत्सर्जन करते हैं.
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर में एनालिस्ट सुनील दहिया ने कहा कि वायु प्रदूषण से कई तरह की बीमारियां होती हैं. पटाखे बेचने से बहुत ज्यादा नुकसान होगा. ग्रीन पटाखे भी हवा की गुणवत्ता के लिए जहरीले हैं और यह वर्तमान कोविड स्थिति को खराब कर सकता है.