हैदराबाद :पिछले तीन दशक या उससे भी अधिक समय से हर चुनाव के दौरान जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी तत्व चुनावों के बहिष्कार का आह्वान करके इसका निर्णय ले रहे हैं. इस दौरान हर चुनाव में बाधा डालने के लिए आतंकवादियों की ओर से हिंसा का इस्तेमाल करना भी एक सामान्य रणनीति रही है. चुनावों में धांधली के आरोप असामान्य नहीं हैं. ऐसा होने के बावजूद संघर्ष से विदीर्ण जम्मू-कश्मीर में इस तरह किसी भी व्यवधान के बिना जिला विकास परिषद (डीडीसी) का चुनाव परिणाम आना नई उम्मीद की गुंजाइश दे रहा है. जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश किए जाने के बाद से पहली बार हो रहे डीडीसी चुनाव इसीलिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे.
लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया और एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में गठित किया गया. केंद्र शासित प्रदेश के हर जिले को 14 क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा गया था और प्रदेश के 20 जिलों के सभी 280 निर्वाचन क्षेत्रो में चुनाव का आयोजन हुआ. दो को छोड़कर सभी क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव परिणाम की घोषणा कर दी गई. ये चुनाव परिणाम कश्मीर के लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित कर रहे हैं.
घाटी क्षेत्र में मतदान प्रतिशत में बढ़ोत्तरी
कश्मीर घाटी क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत बढ़कर 34 प्रतिशत हो गया है, जो पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 15 प्रतिशत दर्ज किया गया था. जम्मू क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत कश्मीर क्षेत्र में जो मतदान का प्रतिशत था उसका दोगुना था. जम्मू क्षेत्र में मतदान प्रतिशत अधिक होना भाजपा की उम्मीद की मूल वजह थी. भाजपा को कुल मिलाकर 75 सीटें मिलीं. इनमें जम्मू में 72 और कश्मीर में तीन सीट है. बीजेपी डीडीसी चुनावों में अकेली पार्टी के रूप में इतनी अधिक सीटें जीतने वाली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. इन सीटों के साथ 20 जिला विकास परिषदों में से छह पर कब्जा जमाया.
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प्रगतिशील राजनीतिक प्रक्रिया को मिली गति
गुपकार गठबंधन में शामिल नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और पीपुल्स गठबंधन ने 112 सीटें जीतीं और यह गठबंधन कम से कम 12 जिलों में डीडीसी की कमान संभालने वाला है. अलग से चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस 26 क्षेत्रों चुनाव जीती, जबकि निर्दलीय उम्मीदवारों को 50 क्षेत्रों में जीत मिली. चुनावों के शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो जाने को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों को अब एक प्रगतिशील राजनीतिक प्रक्रिया को गति देने के लिए शांति के युग में प्रवेश करने का दृढ़ संकल्प लेना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 में लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि कश्मीर समस्या का समाधान न तो गाली से और न गोलियों से होगा. उन्होंने कहा था कि सभी कश्मीरियों को गले लगाकर इसका समाधान किया जाएगा.