नैनीताल: नैनीताल हाईकोर्ट (nainital high court) ने कोविड-19 की संभावित तीसरी लहर से मुकाबला करने के लिए राज्य सरकार के ढुलमुल रवैये पर बुधवार को फटकार लगाई और कहा कि सरकार अदालत को मूर्ख बनाना बंद करे और जमीनी सच्चाई बताए.
उच्च न्यायालय ने कड़े शब्दों में सरकार से कहा, 'मुख्य न्यायाधीश को ये ना बताएं कि उत्तराखंड में राम राज्य है और हम स्वर्ग में रहते हैं. सरकार को वायरस के डेल्टा प्रकार से निपटने के लिए तैयारियां करनी चाहिए जो कि विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी अन्य प्रकार से अधिक तेजी से फैलता है.'
अदालत ने कहा, 'हमें मूर्ख बनाना छोड़िये और सच्चाई बताइये. मुख्य न्यायाधीश को यह मत बताइये कि उत्तराखंड में रामराज्य है और हम स्वर्ग में रह रहे हैं. हमें जमीनी हकीकत के बारे में बताइये.
उत्तराखंड सरकार द्वारा कोविड-19 से मुकाबले के लिए किए जा रहे उपायों के संबंध में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी (health secretary amit negi) को फटकार लगाते हुए मुख्य न्यायाधीश आर एस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि कोविड का डेल्टा प्लस प्रकार पीछे बैठ कर सरकार को तैयारी करने का मौका नहीं देगा. कोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
इसके साथ ही अदालत ने स्वास्थ्य सचिव को निर्देश दिया कि बच्चों के संदर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए एहतियाती कदमों के बारे में हलफनामा दायर करे. मामले पर अगली सुनवाई सात जुलाई को होगी जब सरकार को चारधाम यात्रा पर लिए गए निर्णय के बारे में अदालत को अवगत कराना होगा.
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बता दें कि पिछली सुनवाई के आदेश के क्रम में बुधवार 23 जून को स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने अपना जवाब कोर्ट में पेश किया था. जिस पर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की. कोर्ट ने कहा कि पेश किया गया शपथ पत्र तर्कहीन है. राज्य सरकार द्वारा कोरोना काल में हुई मौतों की डेथ ऑडिट रिपोर्ट भी भ्रमित करने वाली है. क्योंकि अधिकांश मृत्यु या तो हृदय गति रुकने से हुई हैं, या अन्य कारणों से. कोर्ट ने कहा कि कोरोना (corona) की दूसरी लहर के दौरान कितने लोगों की मौत हुई है, इसकी भी सरकार ने कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी है.
कोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा कराई गई डेथ ऑडिट रिपोर्ट में बड़ी गड़बड़ी है, जिसे कोर्ट स्वीकार नहीं करती है. लिहाजा स्वास्थ्य सचिव पूरे मामले पर अपना विस्तृत जवाब दोबारा पेश करें.
वहीं उत्तराखंड में अब तक ब्लैक फंगस की दवा उपलब्ध न होने और कोरोना की तीसरी लहर के लिए उचित व्यवस्था ना होने के मामले पर मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने नाराजगी व्यक्त की. कोर्ट ने मुख्य सचिव ओम प्रकाश को फटकार लगाते हुए सभी व्यवस्था दुरुस्त करने को कहा है. कोर्ट ने प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव से पूछा है कि उत्तराखंड के सभी जिला अस्पतालों में कितने चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं? कितने वेंटिलेटर हैं? कितना स्टाफ है? पीएचसी और सीएचसी में ब्लैक फंगस और तीसरी लहर के लिए क्या व्यवस्था की गई है? सभी पीएचसी और सीएचसी में कितनी एंबुलेंस की व्यवस्था की गई है?
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इसके अलावा कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि अब तक छोटे बच्चों के लिए कितने वॉर्ड तैयार किए गए हैं? हाईकोर्ट द्वारा बनाई गई हाई पावर कमेटी ने जो संस्तुति थी, उनका पालन किया जा रहा है या नहीं? अगर तीसरी लहर के दौरान डॉक्टरों की उत्तराखंड में कमी होती है तो सुरक्षा बल और सेना आदि के डॉक्टरों की सेवा लेने पर भी राज्य सरकार अभी से विचार करे.
वहीं कोर्ट ने प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव और अपर सचिव पर्यटन को अगली सुनवाई के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा हाईकोर्ट में पेश होकर अपना जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने उत्तराखंड में 1 जुलाई से शुरू होने जा रही चारधाम यात्रा के मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उत्तराखंड सरकार 1 जुलाई से प्रदेश में चारधाम यात्रा शुरू करवाने जा रही है. चारधाम यात्रा में देश-विदेश से लाखों की संख्या में भक्त आएंगे, लेकिन राज्य सरकार की व्यवस्थाओं को देखकर नहीं लगता की उत्तराखंड चारधाम जैसी बड़ी यात्रा के लिए तैयार है.
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लिहाजा राज्य सरकार कैबिनेट के माध्यम से चारधाम यात्रा (char dham yatra) को स्थगित करने पर विचार करे और यात्रा को लेकर जवाब कोर्ट में पेश करे. अन्यथा उत्तराखंड में एक बार फिर से हरिद्वार कुंभ की जैसी अवस्थाएं देखने को मिलेंगी और हो सकता है कि इस बार कोरोना की स्थिति पहले से ज्यादा भयावह हो. क्योंकि एक तरफ कोरोना की तीसरी लहर है तो दूसरी तरफ डेल्टा वेरिएंट लिहाजा राज्य सरकार को बच्चों की स्थिति को गंभीरता से लेते हुए इस तरफ ध्यान देना होगा.