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जान ना पहचान बन जाता था किसी का भी बेलर, अब जाना पड़ा जेल

लोहरदगा में कोर्ट ने बेलर को जेल भेज दिया है. साथ ही उसपर 10-10 हजार का जुर्माना भी लगाया है. बेल की गारंटी लेने के बाद अदालत में ट्रायल के दौरान ना आरोपी को कोर्ट में उपस्थित कर पाया और ना ही खुद कोर्ट के समक्ष आया. जिसके बाद अदालत के निर्देश पर पुलिस ने उसे कोर्ट में उपस्थित किया. पेशी के बाद उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है.

Court sent jail to Bailor
Court sent jail to Bailor

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Published : Jul 5, 2022, 9:15 PM IST

लोहरदगा: किसी का भी बेलर बन जाना कभी-कभी काफी महंगा पड़ जाता है. ना जान ना पहचान, फिर भी किसी का बेलर बन गए, ऐसा करना कभी जेल जाने का कारण भी बनता है. लोहरदगा में कुछ इसी तरह का मामला सामने आया है. जहां दो अलग-अलग मामलों में दो आरोपियों के ट्रायल में उपस्थित होने को लेकर अदालत नहीं पहुंचने पर अदालत ने बेलर को जेल भेज दिया.

अदालत ने पुलिस को कहा, कहां है बेलरः जिला के बगड़ू थाना क्षेत्र के हिसरी गांव निवासी लुकमान अंसारी ने जीआर संख्या 178/18 में आरोपी जाहिद अंसारी और शिकायत वाद संख्या 545/19 में आरोपी अनिकेत कुमार मिस्त्री का बेलर बना था. दोनों ही मामलों में आरोपी अदालत में ट्रायल के दौरान उपस्थित नहीं हो रहे थे. जिसके बाद अदालत ने कहा था कि बेलर दोनों आरोपियों को अदालत में हाजिर करें, पर ना तो आरोपी हाजिर हुए और ना ही बेलर उन्हें अदालत ला पा रहा था. जिसके बाद अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि बेलर को ही अदालत में प्रस्तुत किया जाए. साथ ही उसने दोनों मामलों में 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लिया जाए. अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि बेलर को गिरफ्तार कर अदालत में हाजिर करें. पुलिस ने लुकमान अंसारी को गिरफ्तार कर अदालत में हाजिर किया. जहां पर उसे 10-10 हजार रुपये दोनों मामलों में जुर्माना भरने को कहा गया, पर उसने जुर्माना नहीं भरा. जिसके बाद अदालत ने लुकमान अंसारी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया.


लोहरदगा में जमानतदार को दो ऐसे लोगों का जमानत दिलवाना महंगा पड़ गया जो जमानत लेने के बाद अदालत में हाजिर ही नहीं हुए. अदालत ने जमानतदार को इसके लिए जुर्माना भरने को कहा, परंतु जमानतदार भी जुर्माना भरने से इनकार कर गया. जिसके बाद अदालत ने जमानतदार को ही जेल भेज दिया है.

जमानती कौन होता है? फौजदारी मुकदमे में आरोपी को अदालत से जब जमानत मिलती है तब आमतौर पर उसे कहा जाता है कि वह व्यक्तिगत मुचलके के साथ-साथ उतनी ही रकम का जमानती पेश करे. तब वह किसी दोस्त, रिश्तेदार या फिर पहचान वाले को जमानती के तौर पर पेश करता है.


क्या है जिम्मेदारी? जमानती जो भी बनता है उसकी जिममेदारी काफी बढ़ जाती है. जमानती का सिर्फ बेल बॉन्ड भरने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसकी जिम्मेदारी है कि जमानत पर छूटने के बाद आरोपी अगर अदालत में पेश न हो रहा हो तो उसे पेश करे. क्रिमिनल केस में किसी आरोपी को जब जमानत देने के साथ अदालत यह शर्त लगाती है कि वह व्यक्तिगत बॉन्ड के अलावा जमानती भी पेश करे. इस दौरान आरोपी की ओर से अदालत के सामने जमानतनामा पेश किया जाता है. उस जमानतनामे में आरोपी का डिटेल भरा जाता है साथ ही जमानत की राशि का विवरण होता है. बाकी के हिस्से में जिसे उसने जमानती बनाया है, उसके डिटेल होते हैं. जिसमें जमानती का नाम, पता होता है, साथ ही वह किसका जमानती बना है और कितनी जमानत राशि है इसका विवरण दिया जाता है.

आसान नहीं जमानती बननाः जमानती को एक हलफनामा देना होता है और उसमें यह बताना होता है कि वह आरोपी को कैसे जानता है. अगर रिश्तेदार है तो इस बात का जिक्र करना होता है या फिर दोस्त है तो यह भी बताना होता है. साथ ही जमानती को हलफनामे में अपने बारे में डिटेल देना होता है साथ ही अपने पते का जिक्र करना होता है और यह बताना होता है कि उसका आरोपी पर कंट्रोल है और वह अदालत के निर्देश के मुताबिक आरोपी को अदालत के सामने पेश करवाएगा. साथ ही जितनी जमानत राशि का ऑर्डर होता है, उसके हिसाब से फिक्स डिपॉजिट या प्रॉपर्टी के कागजात या फिर पे स्लिप जमा करने होते हैं. इस दौरान कई बार अदालत जमानती से मौखिक तौर पर सवाल करती है कि वह कैसे आरोपी को जानता है, किस पते पर रहता है. इस तरह से सवाल का सही जवाब देने के बाद अदालत बेल बॉन्ड स्वीकार करता है.

जमानती के जोखिमः जमानती को अदालत मौका देती है कि वह आरोपी को अगली तारीख पर पेश करे. अगर जमानती आरोपी को अदालत के सामने पेश करने में असमर्थ हो जाता है तब अदालत उसके द्वारा दी गई फिक्स डिपॉजिट अथवा प्रॉपर्टी के कागज या पे स्लिप के आधार पर जमानत की रकम जब्त कर लेती है. अगर जमानत राशि किसी कारण जब्त नहीं होती तो कोर्ट जमानती को कारण बताओ नोटिस जारी करती है और फिर भी रिकवरी न हो तो जमानती को सिविल इम्प्रिजंमेंट में भेजा जा सकता है. सीआरपीसी की धारा-446 के तहत अधिकतम 6 माह तक के सिविल इम्प्रिजंमेंट का प्रावधान है. एक बार जमानत की रकम जब्त होने के बाद आरोपी की जमानत रद्द हो जाती है और उसके नाम गैर जमानती वॉरंट जारी होता है और तब भी जब पेशी नहीं होती तो उसे भगोड़ा घोषित करने की कार्रवाई शुरू की जाती है.

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