नई दिल्ली :राष्ट्रीय टीवी पर शुक्रवार की सुबह अचानक हुई घोषणा में नरेंद्र मोदी सरकार ने आंदोलनकारी किसानों की प्रमुख मांग को मान (Main demand of farmers) लिया. जिसे किसानों की जीत (Farmers' victory) के रूप में देखा जा रहा है, जो साल भर से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं.
सभी तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के निर्णय की घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने अपील की (PM Modi's appeal) है कि मैं उन सभी किसानों से अपील करता हूं जो विरोध का हिस्सा हैं, अपने प्रियजनों, अपने खेतों और परिवार को वापस लौट जाएं और आगे बढ़कर एक नई शुरुआत करें.
पीएम का बयान विरोध से निपटने में सरकार की विफलता की एक मौन स्वीकृति हो सकती है कि किसानों के साथ वेटिंग गेम खेलने का सरकारी हथकंडा वाकई एक बड़ी भूल रही. धैर्य हर किसान के चरित्र में निहित है. जब वे मानसून की प्रतीक्षा करते हैं, खेतों की बुवाई की प्रतीक्षा करते हैं तो यह धैर्य का खेल है जो किसान हमेशा खेलता है.
लेकिन आंदोलनकारियों की शुरुआती प्रतिक्रियाओं से क्या पता चलता है, किसान स्पष्ट रूप से यह महसूस करने के मूड में नहीं हैं कि सरकार अच्छी तरह से उनकी मांगें मान रही है. इसलिए वे उन पांच चीजों पर जोर देंगे जो आगे के रास्ते में उनके एजेंडे में सबसे ऊपर होंगी.
इस गति को आगे बढ़ाने के इरादे से किसानों ने कहा है कि 22 नवंबर को लखनऊ में रैली, आंदोलन के एक वर्ष के उपलक्ष्य में 26 नवंबर को जनसभा और 29 नवंबर को संसद में ट्रैक्टर रैली होगी. जाहिर है इससे सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं होने वाली है.
सबसे पहले किसान 26 नवंबर 2020 को शुरू हुए राष्ट्रीय राजधानी के पास अपना धरना जारी रखेंगे. वे उन कानूनों के वास्तविक निरसन की प्रतीक्षा करेंगे, जिसके लिए प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है. जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में अमलीजामा पहनाया जाएगा.
भारत के कृषि क्षेत्र को प्रभावित करने वाली पुरातन प्रथाओं में सुधार के उद्देश्य से तीन कानून- किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, और आवश्यक वस्तुएं (संशोधन) अधिनियम को सरकार द्वारा ऐसे कानूनों के रूप में आगे बढ़ाया गया जो भारतीय कृषि को उसके बंधनों से मुक्त कर देते.