वाराणसी: शारदा और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य रहे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के देह त्यागने के बाद उनके शिष्य स्वामी कॉल मुकेश 9 सरस्वती को शारदा पीठ और उनके अन्य शिष्य स्वामी सदानंद सरस्वती को द्वारिका पीठ का शंकराचार्य नियुक्त किया गया. उनके अभिषेक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद इस पर रोक लगाई गई.
शुक्रवार को काशी विद्वत परिषद के महामंत्री कमलाकांत त्रिपाठी की तरफ से शंकराचार्य की नियुक्ति को सही मानते हुए उनके समर्थन की (Shankaracharya appointment Controversy in Varanasi) घोषणा की गई. लेकिन, शाम होने तक पूरा मामला ही पलट गया. इस पूरे प्रकरण में काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर वशिष्ट त्रिपाठी और महामंत्री प्रो. राम नारायण द्विवेदी ने पूरे मामले में ऐसा दावा करने वाले महामंत्री कमलाकांत त्रिपाठी को ही फर्जी करार दे दिया. उनका कहना था कि वह महामंत्री के पद पर नहीं है. इस तरह की घोषणा करने वाले वे कौन होते हैं. काशी विद्वत परिषद न्यायालय के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता और ऐसा कोई समर्थन विद्वत परिषद की तरफ से नहीं किया गया है.
शुक्रवार को काशी विद्वत परिषद (Controversy in Kashi Vidvat Parishad) के महामंत्री प्रो. कमलाकांत त्रिपाठी और भारत धर्म महामण्डल, काशी विद्वत परिषद के सदस्य पण्डित परमेश्वर दत्त शुक्ल ने संयुक्त बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि पूज्य ब्रहलीन शंकराचार्य ज्योतिष और द्वारका शारदा पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने अपने जीवन काल में ही वसीयत लिख दी थी. उसमें लिखा था कि ज्योतिष पीठाधीश्वर पूज्य शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरान्द सरस्वती जी महाराज और द्वारका पीठाधीश्वर पूज्य शंकराचार्य स्वामी सदानन्द महाराज होंगे. इसके साथ ही यह भी कहा गया कि पट्टाभिषेक सभी विद्वानों के समक्ष ब्रम्लीन होने के बाद समाधी से पूर्व ही हो चुका है. अब जो लोग इस पद पर अंगुली उठा रहे है. उन्हे आदि शंकराचार्य द्वारा मठामन्यामन पुस्तक के विषय में जानकारी नहीं है. सैकड़ो शंकराचार्य स्वयंभू बना दिये गए. अब दोबारा कुछ लोग शंकराचार्य पद् को विवादित कर काशी विद्वत परिषद और भारत धर्म मण्डल को विदादित करना चाहते है. हम सभी विद्वत जन स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य पद् पर स्वीकार करते है.