हैदराबाद :सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), भारत के चार सीमा गश्ती बलों और गृह मंत्रालय के नियंत्रण में सात केंद्रीय पुलिस बलों (सीपीएफ) में से एक है. हालांकि देश की सीमाओं की रक्षा करना बीएसएफ का प्राथमिक कार्य है. सरहद पर दुश्मन आंख दिखा रहा हो, भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो, आपदा के समय निपटना हो, घरेलू शांति को खतरा हो, सभी से निपटने में बीएसएफ के हमारे जवान सक्षम हैं. बीएसएफ दुनिया का सबसे बड़ा सीमा सुरक्षा बल है. बीएसएफ जवान संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के शांति अभियानों में भी भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं.
एक दिसंबर, 1965 को हुआ गठन
भारत की सीमाओं की सुरक्षा के लिए एक दिसंबर, 1965 को एक विशेष बल सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का गठन किया गया. दरअसल, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कई दिक्कतें आई थीं. जिसके बाद इसका गठन किया गया. बीएसएफ के निर्माण से पहले, भारत-पाक सीमा पर 1947 से 1965 तक सुरक्षा और पहरे की जिम्मेदारी राज्य पुलिस के जवानों पर थी. इस दौरान कई समस्याएं आईं. सबसे बड़ी दिक्कत कई राज्यों की पुलिस में तालमेल को लेकर रही.
पुलिस बलों ने संघीय सरकार से स्वतंत्र कार्य किया और अन्य राज्यों के साथ कम संचार बनाए रखा. पुलिस के ये जवान विषम हालात में काम करने के लिए पूरी तरह ट्रेंड भी नहीं थे. हथियार, उपकरण और संसाधन भी पर्याप्त नहीं थे. सेना या किसी केंद्रीय पुलिस बल के साथ बहुत कम या कोई समन्वय नहीं था. उनके पास मजबूत खुफिया आधारभूत संरचना की भी कमी थी. इसी वजह से देश की सरहदों की रक्षा के लिए अलग बल का गठन किया गया.
159 बटालियन हैं बीएसएफ की
बीएसएफ में एक महानिदेशक होता है, जिसके दिशानिर्देश में 159 बटालियन के करीब 220,000 जवान होते हैं. कई निदेशालयों जैसे ऑपरेशन, खुफिया विभाग, आईटी, प्रशिक्षण, प्रशासन से जुड़े कर्तव्यों काे अंजाम दिया जाता है. बीएसएफ भी भारत की उन कुछ सेनाओं में से एक है, जिसके पास समुद्री और विमानन क्षमताएं हैं. हालांकि बीएसएफ को सीमा सुरक्षा एजेंसी माना जाता है, लेकिन इसके वर्तमान कर्तव्य इस भूमिका से बहुत आगे निकल जाते हैं. घरेलू सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के क्षेत्र में भी इसकी अहम भूमिका रहती है.
सरहद की रक्षा
बीएसएफ के सीमा सुरक्षा कर्तव्यों को दो क्षेत्रों में विभाजित किया गया है. पश्चिमी क्षेत्र भारत-पाकिस्तान सीमा, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के राज्यों के साथ 2,290 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा और जम्मू-कश्मीर में 237 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा है. पूर्वी क्षेत्र भी कम चुनौतीभरा नहीं है. आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगाना, तस्करी से अवैध आव्रजन, घुसपैठ जैसी समस्याओं से भी इन्हें निपटना होता है.