कोरबा : कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी (CPIM) की सर्वोच्च समिति पोलित ब्यूरो के सदस्य तपन सेन (CPM politburo member Tapan Sen) कोरबा प्रवास पर पहुंचे. यहां उन्होंने देश में वामपंथ की स्थिति और छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के सवालों पर जवाब दिया. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के नेताओं को अर्बन नक्सली भी कह दिया जाता था, तब भी वे इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे. वे सिर्फ अपना काम करने में विश्वास करते हैं. जहां विरोध के स्वर बुलंद होंगे, वहीं वामपंथ पैदा होगा.
तपन सेन से ETV भारत की खास बातचीत के प्रमुख अंश
सवाल- छत्तीसगढ़ में आप वामपंथ की क्या स्थिति देखते हैं?
जवाब- छत्तीसगढ़ देश का एक ऐसा प्रदेश है, जहां मजदूर आंदोलन संगठित है. यहां लगातार संघर्ष चल रहा, फिर चाहे वह कोयले के क्षेत्र में हो 'बालको' का मामला हो या अन्य क्षेत्र. यहां मजदूर आंदोलन काफी मुखरता से चल रहे हैं. वर्तमान में निजीकरण और पूंजीपति व्यवस्था के खिलाफ हम आंदोलन कर रहे हैं. वर्तमान सरकार आने वाली जनरेशन को भी बर्बाद कर देगी. जो 70 साल में बनाया गया है. वह सभी बर्बाद करने पर तुले हुए हैं और कहते हैं कि यह सब राष्ट्रवाद है. तो इस पूंजीपति व्यवस्था के खिलाफ हम, लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं.
सवाल- आप वेस्ट बंगाल से आते हैं वहां की सीएम ममता बनर्जी ने दिल्ली जाकर नेताओं से मुलाकात की है, कांग्रेस के बिना तीसरे मोर्चे की तैयारी चल रही है, आप क्या सोचते हैं?
जवाब-यह तो उन्हीं से पूछना चाहिए कि वह क्या सोचती हैं? आज की परिस्थिति में ममता बनर्जी की पार्टी केवल एक राज्य तक ही सीमित है. दूसरे राज्यों के कुछ MP कुछ MLA को खरीदकर अगर वह सोच रही हैं कि वह ऑल इंडिया पावर बन जाएंगी तो ऐसा कुछ होने वाला नहीं है. हम वामपंथी लोग संघर्ष कर रहे हैं, नीति के खिलाफ संघर्ष चल रहा है और इसी संघर्ष से तय होगा कि कौन उसके पक्ष में और कौन विपक्ष में? इसी से तय होगा कि आने वाले समय में मोदी को कौन शिकस्त दे सकता है. कुछ नेताओं के साथ लंच और डिनर मीटिंग करके कुछ बदलने वाला नहीं है.
सवाल- निकट भविष्य में यूपी में चुनाव है, इसके बाद लोकसभा चुनाव होंगे. ऐसे में आप मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को कहां देखते हैं?
जवाब-मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी एक नीति के खिलाफ संघर्ष में है. हमारा एक नीतिगत संघर्ष चल रहा है. अभी जो मोदी की नीति चल रही है. वह देश का सत्यानाश कर देगी. हमें इस सच को जनता के पास लेकर जाना है. जिस राज्य में जो राजनीतिक पार्टी का वर्चस्व है. उसी हिसाब से संतुलन बनेगा. लेकिन 2024 में क्या होने वाला है यह अभी से तय करना है. हम इसे मुनासिब नहीं समझते हैं. जिसके पास कोई काम नहीं है वह यह करे, हमारे पास और भी काम है.
सवाल- आपने कहा ममता बनर्जी सिर्फ एक राज्य तक सीमित हैं, वामपंथ की स्थिति भी कुछ ऐसे ही है. केवल केरला में ही आप की सरकार है. लोग वामपंथी विचारधारा से क्यों नहीं जुड़ पा रहे हैं?
जवाब- देखिए यह आपका नजरिया है, एक पार्टी कहां-कहां है. किस किस राज्य में वह सरकार बना रहे हैं. अगर इससे यह तय होता है तो यह तो सही बात नहीं है. यह ठीक नहीं है हमारी पार्टी की स्थिति पूरे देश में है. देश के हर राज्य में है. जहां मजदूर है मजदूर लड़ता है, वहां हमारे पार्टी की उपस्थिति है. जहां किसान है किसान लड़ रहा है. वहां हमारी ताकत है. इस देश में जहां भी यह दोनों उत्पादनकारी ताकत है. वहां हमारी स्थिति है. जहां संघर्ष देखोगे आप देखोगे कि वहां लाल झंडा है. कहां कितना संघर्ष हो रहा है, हम मानते हैं कि हमारी स्थिति को उसी के अनुसार नापा जाए.
सवाल- यदि हम इतिहास में देखें तो भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी भी वामपंथी विचारधारा रखते थे, वर्तमान परिवेश में आप ऐसा समझते हैं कि वामपंथ हाशिए पर है?
जवाब-वामपंथ ही एकमात्र विकल्प है. इसके अलावा और कोई भी अल्टरनेटिव है ही नहीं. आज जो बड़े-बड़े दल कह रहे हैं कि वह निजीकरण के खिलाफ हैं, एक समय वह निजीकरण के समर्थन में थे. राजनीतिक दल जो कभी निजीकरण के पक्ष में थे अब वह सभी इसके खिलाफ हैं. ऐसा क्यों हुआ, क्योंकि जनता के भीतर से यह आवाज उठने लगी. बैंकों की 2 दिन की इतनी सफल हड़ताल लंबे समय बाद हुई.
कृषि कानून जब लोकसभा में लाया गया. जब पहला ऑर्डिनेंस आया. तब सबसे पहला विरोध लाल झंडे वालों ने किया. उसके बाद विरोध शुरू हुआ. मजदूर कानून का विरोध भी हमने किया, लेकिन उसमें सबने विरोध किया था. आज आप देखो जो भी अपने आप को विरोधी मानते हैं, वह कृषि कानून के पक्ष में बात नहीं कर सकते. जो पक्ष में भी थे. जो मोदी की टोली में थे जैसे कि अकाली दल उन्हें भी बोलना पड़ रहा है कि नहीं हम कृषि कानून के खिलाफ हैं. तो यह परिस्थिति जनता ने बनाया है.
हम जमीनी स्तर पर संघर्ष करते हैं और जनता के पास जो संघर्ष का हथियार है हम इसमें विश्वास करते हैं.अभी जो मोटा-मोटी बात है, वो ये है कि कृषि कानून वापस करो, मजदूरों का आंदोलन, बेरोजगारी की बात ये सारे स्लोगन किसी ने कभी नहीं दिया. यह वामपंथ ने दिया था. लेकिन अब अन्य लोग राजनैतिक दल इसे अपना रहे हैं. बाउंड्री तोड़ते हुए दूसरी पार्टियों को भी बोलना पड़ रहा है. मजबूरी में ही सही लेकिन अब लोग बोल रहे हैं. यही मजबूरी पैदा करते हुए संतुलन बदला जा सकता है. दूसरा कोई रास्ता नहीं है.