पटना :बिहार अपने सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक इतिहास के लिए जाना जाता है. बिहार की धरती कई आंदोलनों का गवाह बन चुकी है. 1912 में बंगाल विभाजन के साथ बिहार नाम का राज्य अस्तित्व में आया और 1935 में उड़ीसा (अब ओडिशा) बिहार से अलग हो गया. विभाजन का सिलसिला यहीं नहीं थमा और 2000 में झारखंड राज्य को भी इससे अलग कर दिया गया.
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र था बिहार
हम अगर इतिहास की बात करें तो बिहार का नाम बौद्ध विहार के बिहार शब्द से हुआ. कालांतर में जो बिहार के नाम से जाना जाने लगा. बिहार को मगध के नाम से भी जाना जाता था. बिहार की राजधानी पटना का पहले पाटलिपुत्र नाम था.
बिहार अंतरराष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र हुआ करता था. नालंदा में जहां अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की पहचान पूरे विश्व में थी. वहीं, भागलपुर स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए लोग देश विदेश से आते थे.
बिहार की भूमि पर जन्मे महारथी
महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर का रिश्ता भी बिहार से रहा है. दोनों ने धार्मिक आंदोलनों के लिए बिहार को कर्मभूमि बनाया. इस पावन भूमि पर सम्राट जरासंध, सम्राट अशोक, अजातशत्रु और बिंबिसार जैसे शासकों ने जन्म लिया.
कोरोना के चलते समारोह रद्द
बिहारी अस्मिता को जगाए रखने के लिए बिहार में नीतीश कुमार के कार्यकाल में बिहार दिवस मनाने की परिपाटी की शुरुआत की गई और 22 मार्च को नीतीश सरकार ने बिहार दिवस मनाने का फैसला लिया. 3 दिनों तक समारोह का आयोजन होता था. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते दूसरी बार समारोह का आयोजन नहीं किया जा सका है.
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गौरवशाली अतीत के पथ पर बिहार
बिहार को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की कवायद जारी है. नालंदा में जहां करोड़ों की लागत से अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है. वहीं, विक्रमशिला विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की कोशिशें शुरू हो गई है.