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सियाचिन का बाना टॉप पोस्ट : इंसान के लिए क्रूरतम प्राकृतिक इलाका

सियाचिन में सोमवार को हुए हिमस्खलन में गश्त कर रहे भारतीय सेना के आठ जवानों ने अपनी जान गंवा दी. आइये जानते हैं सियाचिन बार्डर पर बाना टॉप पोस्ट की कहानी, उसकी अहमियत और सियाचिन में आए विनाशकारी हिमस्खलन और उनके संभावित कारण.

सियाचिन के पहाड़

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Published : Nov 21, 2019, 4:04 PM IST

Updated : Nov 21, 2019, 7:42 PM IST

नई दिल्ली : सियाचिन में बाना टॉप पोस्ट के पास दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध का मैदान इंसान के लिए क्रूरतम प्राकृतिक इलाकों में एक है. यहां इंसान की गलतियां प्रकृति माफ नहीं करतीं. यह ध्रुवीय इलाकों के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा ग्लेसियर है. यह कम ऑक्सीजन वाला ऐसा मृत्यु क्षेत्र है, जहां नियंत्रण रखने की कीमत संसाधनो का बड़ा खर्च और इंसान की जान है.

20 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है पोस्ट
इसी पोस्ट के आसपास समूद्री तल से करीब 20,000 फीट की उचांई पर, ठंड के कारण जमा मोटी बर्फ और उसके ऊपर हुई बर्फबारी की वजह से एक बर्फीली चट्टान टूट कर पेट्रोलिंग कर रही भारतीय सेना की एक टीम पर आ गिरी. सोमवार को हुए इस हिमस्खलन में इलाके की नियमित गश्त कर रहे भारतीय सेना के आठ जवान बर्फ के नीचे दब गये.

सियाचिन के पहाड़ों के बीच स्थित बाना पोस्ट पर भले ही एक घास तक नहीं उगती, लेकिन यहां और इसके आस पास से सॉल्टोरो रिज और सियाचिन ग्लेशियर तक नजर रखी जा सकती है. यही वजह है कि बाना पोस्ट सामरिक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. साथ ही इसकी अहमियत इसलिए भी है कि यह देश का सबसे बड़ा ताजा पानी का श्रोत है.

उल्लेखनीय है कि 21000 फीट ऊंची बाना पोस्ट को सूबेदार मेजर और कैप्टन बाना सिंह के वीरतापूर्ण कारनामों के लिए गर्व से याद किया जाता है, जिन्होंने 26 जून 1987 को 15000 फीट की ऊंचाई पर, एक छोटी टीम का नेतृत्व करते हुए खूनी जंग के बाद पोस्ट को पाकिस्तान के कब्जे से वापस ले लिया था.

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एक आपातकालीन बचाव में प्रशिक्षित पेशेवर, खोजी कुत्ते, ऊंचाई पर इस्तेमाल होने वाले उपकरण, सैन्य हेलीकॉप्टर होने और बेतरीन प्रयास के बावजूद सब व्यर्थ हो गया. जब तक बर्फ के नीचे दबे जवानों को बाहर निकाल कर उन्हे चिकित्सा उपचार दिया गया, तब तक हाड़ जमा देने वाली ठंड और अत्यधिक उचांई के खतरे ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था. सेना के चार जवान और दो सिविलियन पोर्टर अपनी जान गंवा चुके थे.

सिंगापुर के दौरे पर गये रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत से बात की. उन्होंने ट्वीट कर इस घटना पर अपनी संवेदना भी व्यक्त की. उन्होंने ट्वीट में लिखा - 'सियाचिन में हिमस्खलन के कारण सैनिकों और पोर्टरों के निधन से गहरा दुख हुआ. मैं उनके साहस और राष्ट्र की सेवा को सलाम करता हूं. उनके परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना.'

पढ़ें : सियाचिन में हिमस्खलन, सेना के चार जवानों समेत छह की मौत

वैसे हिमालय के दुर्गम स्थानों पर हिमस्खलन व उसमें सैन्य जवानों की जान जाने की यह पहली घटना नहीं थी. फरवरी, 2016 में सियाचिन में हुए हिमस्खलन में भारतीय सेना की मद्रास रेजिमेंट की 19 बटालियन के 10 जवान दब गये थे. जिनमें सिर्फ लांस नायक हनुमंथप्पा को 30 फीट गहरी बर्फ से निकाला गया. जो चमत्कारिक तौर पर पांच दिन तक 30 फीट बर्फ के नीचे जिंदा बचे रहे, बाद में उन्हें हेलीकाप्टर से रेस्क्यू कर दिल्ली लाया गया, जहां वो दिल्ली के अस्पताल में इलाज के दौरान जिंदगी की जंग हार गए. इसके ठीक एक महीने पहले चार अन्य जवानों ने सियाचिन में हिमस्खलन के दौरान अपनी जान गंवा दी थी.

34 वर्षों में 869 भारतीय जवान हो चुके हैं हिमस्खलन के शिकार
पिछले 34 सालों (1984 से 2018) में 869 भारतीय सैनिकों ने सियाचिन में युद्ध के अलावा कई दूसरी वजहों से अपनी जान गंवायी है.

7 अप्रैल 2012 को क्षेत्र के सबसे विनाशकारी हिमस्खलन में सियाचिन के पास लगभग 135 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो गयी थी.

यह माना जा रहा है कि हिमालय के ऊपरी इलाकों में हिमस्खलन की घटनाएं बीते तीन दशकों में काफी बढ़ गयी हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते तापमान की वजह से बर्फों में आसानी से दरार आ जा रही है इसकी वजह से खासतौर पर बर्फबारी के दौरान हिमस्खलन की घटनाएं काफी बढ़ जाती हैं.

Last Updated : Nov 21, 2019, 7:42 PM IST

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