हैदराबाद : भारतीय मौसम विभाग के एक कदम से पाकिस्तान बौखला गया है. पाक ने जम्मू कश्मीर के मौसम की जानकारी देने का निर्णय लिया है. पाक ने यह कदम तब उठाए हैं, जब भारतीय मौसम विभाग ने पीओके के प्रमुख शहरों के मौसम की जानकारी देनी शुरू की. भारत का कहना है कि क्योंकि पीओके भारत का अभिन्न हिस्सा है, लिहाजा उसने इसकी शुरुआत की. यह पहली बार नहीं है, जब पाक ने खिसिया कर इस तरह के कदम उठाए हैं. इससे पहले भी इस तरह के कई वाकए मौजूद हैं. आइए ऐसी ही घटनाओं पर एक नजर डालते हैं.
घटनाओं का क्रम
29.04.2020 : पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने गिलगित-बाल्टिस्तान के महाधिवक्ता को नोटिस जारी कर गिलगित-बाल्टिस्तान आदेश 2018 में संशोधन करने और कार्यवाहक सरकार स्थापित करने का निर्देश दिया.
04.05.2020 : भारत ने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह गिलगित-बाल्टिस्तान पर कब्जा करने की मंशा नहीं छोड़ेंगे, तो इसका परिणाम घातक होगा.
विदेश मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान की सरकार या उसकी न्यायपालिका के पास अवैध रूप से और जबरन कब्जे वाले क्षेत्रों पर कोई लोकस स्टैंड नहीं है. पाकिस्तान को तत्काल सभी क्षेत्रों को अवैध कब्जे से मुक्त करना चाहिए.
भारतीय मौसम विभाग ने गिलगित-बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद, और मीरपुर को जम्मू और कश्मीर उप विभाजन के अंतर्गत रखा.
10.05.2020 :देश के नेशनल रेडियो ब्रॉडकास्टर - रेडियो पाकिस्तान ने रविवार को जम्मू, पुलवामा, लद्दाख आदि विभिन्न स्थानों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान को लेकर ट्वीट किए.
गिलगित-बाल्टिस्तान ऑर्डर-2018 क्या है ?
पाकिस्तान ने 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान सशक्तीकरण और स्वशासन आदेश -2009 की शुरुआत करके गिलगित-बाल्टिस्तान की कानूनी स्थिति को बदल दिया था, जिसने इसका नाम उत्तरी क्षेत्रों से बदलकर गिलगित-बाल्टिस्तान कर दिया था.
इस व्यवस्था के तहत, स्व-शासन के लिए एक मुख्यमंत्री और राज्यपाल की नियुक्ति के साथ इसे प्रांत की तरह दर्जा दिया गया था. इस प्रकार, संवैधानिक रूप से यह अभी भी पाकिस्तान से बाहर है.
मई 2018 में, गिलगित-बाल्टिस्तान ऑर्डर -2018 पारित किया गया था, जो पहले के आदेश की जगह ले रहा था. इसे पाकिस्तान सरकार द्वारा विवादित क्षेत्र को अपने पांचवें प्रांत के रूप में शामिल करने की एक और कोशिश के रूप में देखा गया.
गिलगित-बाल्टिस्तान का इतिहास
यह जम्मू और कश्मीर के उत्तर-पश्चिमी कोने में उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र का एक हिस्सा है.
जम्मू-कश्मीर का बना हिस्सा (1846)
जातीय रूप से, गिलगित बाल्टिस्तान को भारत की तुलना में मध्य एशिया की जनजातियों के करीब माना जा सकता है.
1842 में, डोगरा कमांडर वसीरलाखपत द्वारा की गई विजय के कारण, इस क्षेत्र पर सिखों और डोगरों का शासन होने लगा.
1846 के एंग्लो-सिख युद्ध में सिखों की हार के बाद, गिलगित-बाल्टिस्तान को जम्मू और कश्मीर की रियासत का हिस्सा बनाया गया था, हालांकि यह अभी भी डोगरा शासन के अधीन रहा.
गिलगित बाल्टिस्तान में ब्रिटिश शासन- 1935
1935 में, ब्रिटिश ने भारत की उत्तरी सीमाओं में अपने रणनीतिक स्थान के कारण गिलगित बाल्टिस्तान के क्षेत्र को पट्टे पर दिया था.
एक बार जब भारत ने 1947 में स्वतंत्रता हासिल कर ली, तो अंग्रेजों ने इस क्षेत्र को वापस जम्मू-कश्मीर के महाराजा को सौंप दिया.
महाराजा हरि सिंह ने ब्रिगेडियर घनसार सिंह को गिलगित-बाल्टिस्तान का गवर्नर नियुक्त किया और गिलगित स्काउट के अधिकारियों मेजर डब्ल्यू ए ब्राउन और कप्तान ए एस मैथिसन को भी प्रभारी बनाया गया.
जब विभाजन के बाद, देश की रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया, तो जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत को स्वीकार किया. इसके तुरंत बाद गिलगित-बाल्टिस्तान के स्थानीय लोगों ने विद्रोह कर दिया और मेजर ब्राउन ने ब्रिगेडियर घनसारा सिंह को कैद कर लिया.
दो नवंबर, 1947 को उन्होंने अपने मुख्यालय में पाकिस्तानी झंडा फहराया और घोषणा की कि गिलगित पाकिस्तान में शामिल हो रहा है. पाकिस्तानी सेना और आदिवासियों ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और इसका इस्तेमाल आस-पास के क्षेत्रों में हमले करने के लिए एक आधार के रूप में किया.
गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान प्रशासन- 1947
16 नवंबर, 1947 को गिलगित बाल्टिस्तान पाकिस्तानी सरकार के वास्तविक नियंत्रण में आ गया था, हालांकि इसके प्रशासन की प्रकृति समय के साथ ढीली और परिवर्तनशील रही है. आजाद कश्मीर के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र गिलगित बाल्टिस्तान को एक अलग संविधान नहीं मिला, कारणवश पाकिस्तान वहां मनमाने ढंग से शासन करने लगा.
1975 में, जब पाकिस्तान में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री थे, तो 1999 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत प्रशासन में एक परिवर्तन किया गया, जिसमें सलाहकार परिषद का नाम बदलकर उत्तरी विधान परिषद रखा गया था.