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गुजरात : 'विराट' के संग्रहालय बनने की उम्मीदें क्षीण पड़ने लगीं

'विराट' को भारतीय नौसेना में 1987 में शामिल किया गया था और यह 2017 तक सेवा किया. रिटायर होने के बाद इसे मुंबई की एक कंपनी ने संग्रहालय में बदलने की इच्छा जताई थी, लेकिन रक्षा मंत्रालय से इस संबंध में कंपनी को अब तक अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) नहीं मिला है.

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विराट के संग्रहालय बनने की उम्मीदें

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Published : Oct 25, 2020, 4:13 PM IST

अहमदाबाद : सेवा से बाहर हो चुके युद्धपोत विराट के संग्रहालय बनने की उम्मीदें क्षीण पड़ने लगी हैं, क्योंकि इसे तोड़ने के लिए खरीदने वाली कंपनी ने करीब तीन सप्ताह की प्रतीक्षा के बाद पोत को गुजरात के अलंग स्थित अपने कबाड़ (स्क्रैप) यार्ड की ओर ले जाना शुरू कर दिया है.

मुंबई की निजी कंपनी इनवीटेक मरीन कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड ने पिछले महीने विराट को संग्रहालय में बदलने की इच्छा जताई थी, लेकिन रक्षा मंत्रालय से इस संबंध में कंपनी को अब तक अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) नहीं मिला है.

भारतीय नौसेना में 1987 में किया गया था शामिल
इस युद्धपोत को भारतीय नौसेना में 1987 में शामिल किया गया था और यह 2017 तक सेवा में रहा. इस साल जुलाई में जहाज को तोड़ने का काम करने वाली अलंग की कंपनी श्रीराम ग्रुप ने इसे 38.54 करोड़ रुपये में खरीदा था.

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कंपनी के अध्यक्ष मुकेश पटेल का कहना है कि हमने विराट को अपने यार्ड की तरफ ले जाना शुरू कर दिया है. यह समुद्र में 3,000 फीट की दूरी पर था, जिसे अब निकट लाया गया है. अब भी यह 1,500 फीट की दूरी पर है. उन्होंने बताया कि इसे और नजदीक खींचने का काम अगले उच्च ज्वार के समय किया जाएगा. उन्होंने बताया कि इसे खरीदकर संग्रहालय में तब्दील करने की इच्छा जताने वाली कंपनी अब भी रक्षा मंत्रालय से एनओसी नहीं हासिल कर पाई है और वे अभी उस पर काम कर रहे हैं.

2014 में विक्रांत को मुंबई में तोड़ा गया था
पटेल ने कहा कि कंपनी ने हमसे पूछा कि क्या इस जहाज को नुकसान से बचाया जा सकता है, तो हमने जवाब दिया कि नवीनतम तकनीक से यह संभव है, लेकिन यह मुश्किल भरा काम है और महंगा भी है. विराट दुनिया का सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाला जहाज है और भारत में यह दूसरा ऐसा जहाज है, जिसे नष्ट किया जाएगा. इससे पहले 2014 में विक्रांत को मुंबई में तोड़ा गया था. यह जहाज पहले ब्रिटेन की नौसेना में नवंबर 1959 से अप्रैल 1984 तक सेवा में था. बाद में इसकी मरम्मत व मजबूती प्रदान कर इसे भारतीय नौसेना में 1987 में शामिल किया गया.

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