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चीन ने त्संगपो-ब्रह्मपुत्र पर बनाया बांध, तो दुनिया खो देगी अमूल्य धरोहर

जन्म से ही मानव की उपस्थिति ने उसके आस-पास पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है. लेकिन आज हमारी धरती पर शायद ही कोई जगह ऐसी होगी जहां हमने कदम नहीं रखा होगा. विकास की इस दौड़ में अनगिनत प्रजातियां विलुप्त हो गईं और जो बची हैं, वह विलुप्त होने की कगार पर हैं. चीन ने हाल ही में एक बांध परियोजना की घोषणा की है, जो त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी होगा. दुनिया का यह सबसे बड़ा बांध उस क्षेत्र में स्थित होगा जो मानवों के प्रकोप से बचा हुआ है. हालांकि, यह बांध उसके अस्तित्व के लिए खतरे की तरह होगा. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

Yarlung Tsangpo Brahmaputra river
डिजाइन फोटो

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Published : Dec 2, 2020, 7:23 PM IST

हैदराबाद: चीन यरलुंग त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना बना रहा है. जिस क्षेत्र में यह बांध बनाया जाना है वह उन जगहों में से है, जहां बहुत कम लोग गए हैं. इसका उल्लेख तिब्बती बौद्धों की मान्यताओं और किंवदंतियों में रहस्यमई जगह के रूप में किया गया है. वे इसे 'बेयूल पेमाको' या छिपा हुआ स्वर्ग कहते हैं.

प्राचीन शिकारियों के रास्ते, आदिवासी किंवदंतियों और गुप्तकालीन प्राचीन तिब्बती ग्रंथों में दी गई जानकारी की मदद से 1998 में पहली बार ईएन बेकर ने त्संगपो क्षेत्र में यात्रा की थी. अमेरिकी नागरिक बेकर मानवविज्ञानी, बौद्ध धर्म के विद्वान और खोजकर्ता हैं. ईएन ने अपनी यात्रा के दौरान 108 झरनों की खोज की है, जिसके बारे में अब तक किसी को जानकारी नहीं थी.

चीन द्वारा यरलुंग त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी पर 'ग्रेट बेंड' क्षेत्र में बांध बनाने को लेकर बेकर ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कहा कि यरलुंग त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की परियोजना से क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत नुकसान होगा. इसके अलावा यह परियोजना निचले इलाके में रहने वाले लोगों के जीवन को भी प्रभावित करेगी.

उन्होंने कहा कि 'चीन को पानी की जरूरत है, लेकिन मैं नहीं चाहता कि यह परियोजना शुरू हो.'

ईएन बेकर की त्संगपो की यात्रा को नेशनल ज्योग्राफिक ने प्रायोजित किया था. 1998 की यात्रा के बाद बेकर ने अपने अनुभव को अपनी किताब 'द हार्ट ऑफ द वर्ल्ड: ए जर्नी टू द लास्ट सीक्रेट प्लेस' में कलमबद्ध किया. इस किताब की प्रस्तावना दलाई लामा ने लिखी है.

पढ़ें-भारत-बांग्लादेश के सहयोग के बिना त्संगपो बांध नहीं बना सकता चीन

ऐसा माना जाता है कि इस जगह तक पहुंचने के मार्ग को आठवीं शताब्दी में पद्मसमभाव ने अपने शिष्य येशे से त्सोग्याल से मौखिक रूस से साझा किया था. बौद्ध लोगों का मानना है कि त्संगपो पौराणिक स्वर्ग शंभाला का द्वार है. हिंदू धर्म में इसे सिद्धाश्रम और इसाई धर्म में ईडेन करते हैं.

ग्रेट बेंड पर त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी 180 डिग्री मुड़ जाती है. इसके बाद यह नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश कर जाती है. इस सफर में यह नदी हमारी दुनिया की कुछ सबसे ऊंची चोटियों ग्याला पेरी (7293 मीटर) और नाम्चा बारवा (7780 मीटर) से नीचे उतरती है.

अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने से पहले यह नदी 30 किलोमीटर के सफर के दौरान करीब 2000 मीटर नीचे उतरती है. इस क्षेत्र में कुछ घाटियां इतनी गहरी और दुर्गम हैं कि रिमोट सेंसिंग सैटेलाइटों को भी इनका पता लगाने में मुश्किल होती है.

बेकर ने अपनी किताब में लिखा कि त्संगपो की कुछ घाटियां अमेरिका में स्थित ग्रैंड कैनियन से तीन गुना गहरी हैं. इस क्षेत्र में पहाड़ और घने जंगल मिलते हैं, जिसमें अनेकों जनजातियां रहती हैं. इसके अलावा यहां पर उपोष्णकटिबंधीय और आर्कटिक जैसा मौसम देखने को मिलता है. इस क्षेत्र में लगातार बारिश होती रहती है. सांप, जंगली जानवर, बिच्छू बूटी और जोंक आम हैं.

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