हैदराबाद: चीन यरलुंग त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना बना रहा है. जिस क्षेत्र में यह बांध बनाया जाना है वह उन जगहों में से है, जहां बहुत कम लोग गए हैं. इसका उल्लेख तिब्बती बौद्धों की मान्यताओं और किंवदंतियों में रहस्यमई जगह के रूप में किया गया है. वे इसे 'बेयूल पेमाको' या छिपा हुआ स्वर्ग कहते हैं.
प्राचीन शिकारियों के रास्ते, आदिवासी किंवदंतियों और गुप्तकालीन प्राचीन तिब्बती ग्रंथों में दी गई जानकारी की मदद से 1998 में पहली बार ईएन बेकर ने त्संगपो क्षेत्र में यात्रा की थी. अमेरिकी नागरिक बेकर मानवविज्ञानी, बौद्ध धर्म के विद्वान और खोजकर्ता हैं. ईएन ने अपनी यात्रा के दौरान 108 झरनों की खोज की है, जिसके बारे में अब तक किसी को जानकारी नहीं थी.
चीन द्वारा यरलुंग त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी पर 'ग्रेट बेंड' क्षेत्र में बांध बनाने को लेकर बेकर ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कहा कि यरलुंग त्संगपो-ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की परियोजना से क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत नुकसान होगा. इसके अलावा यह परियोजना निचले इलाके में रहने वाले लोगों के जीवन को भी प्रभावित करेगी.
उन्होंने कहा कि 'चीन को पानी की जरूरत है, लेकिन मैं नहीं चाहता कि यह परियोजना शुरू हो.'
ईएन बेकर की त्संगपो की यात्रा को नेशनल ज्योग्राफिक ने प्रायोजित किया था. 1998 की यात्रा के बाद बेकर ने अपने अनुभव को अपनी किताब 'द हार्ट ऑफ द वर्ल्ड: ए जर्नी टू द लास्ट सीक्रेट प्लेस' में कलमबद्ध किया. इस किताब की प्रस्तावना दलाई लामा ने लिखी है.