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सीएए से क्या, मुस्लिम महिलाएं पहले बुर्के से मांगें आजादी : तारिक फतेह

सीएए विरोधी प्रदर्शनों में मुस्लिम महिलाओं के भाग लेने पर तारिक फतेह ने कहा कि अगर उनको (मुस्लिम महिलाओं) आजादी चाहिए होती तो वे पहले बुर्के से आजादी मांगतीं, वह सीएए से आजादी क्या मांग रही हैं. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने हमें हिंदुस्तान में पनाह दी, हमें उनके प्रति कृतज्ञ रहना होगा. जानें उन्होंने और क्या कुछ कहा...

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पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक व मशहूर विचारक तारिक फतेह

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Published : Jan 26, 2020, 1:09 PM IST

Updated : Feb 25, 2020, 4:20 PM IST

लखनऊ : पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक व मशहूर विचारक तारिक फतेह ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध करने वाले 'अलगाववादी मानसिकता' से ग्रसित हैं.

सीएए विरोधी प्रदर्शनों में मुस्लिम महिलाओं के भाग लेने पर उन्होंने कहा कि अगर उनको आजादी चाहिए होती तो वह पहले बुर्के से आजादी मांगतीं, वह सीएए से आजादी क्या मांग रही हैं.

तारिक फतेह ने एक ऐजेंसी से साक्षात्कार में कहा कि जहां तक सीएए के विरोध का मसला है. यह सिलसिला पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ है, क्योंकि कुछ ऐसे राजनेता हैं.

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जिनका पश्चिम बंगाल में अच्छा खासा दखल है, जो बांग्लादेश या तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से यहां आकर बसे हैं और जिनके जेहन में है कि पश्चिम बंगाल को मुस्लिम बहुसंख्यक बनाएं या मुस्लिम वोट प्रतिशत में इजाफा करें, वह ही विरोध कर रहे हैं और कुछ पार्टियां उनका समर्थन कर रही हैं.

उन्होंने कहा, 'वे भारतीयों की तरह नहीं, बल्कि मुस्लिम भारतीय की सोच रखते हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि अगर वहां के मुस्लिम यहां नहीं आए तो उनका प्लान कामयाब नहीं हो पाएगा. यह सारा झगड़ा मुस्लिम नेशनलिज्म का है. यह उनका अलगाववादी दृष्टिकोण दर्शाता है. सीएए के विरोध का और कोई ठोस कारण नहीं है.'

तारिक फतेह ने कहा, 'एनआरसी जब आएगा, तब देखा जाएगा. जहां तक सीएए की बात है, तो जो हमने असम से सीखा उसका क्रियान्वयन होना चाहिए. सरकार अपने कदम पर खुलकर बोले कि यह सही है. बांग्लादेश, ईरान, पाकिस्तान हर जगह ऐसा कानून है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि अगर सरकार डेटा सही करना चाहती है तो परेशानी क्या है.'

सीएए विरोधी प्रदर्शनों में मुस्लिम महिलाओं के भाग लेने पर उन्होंने कहा कि अगर उनको आजादी चाहिए होती तो वे पहले बुर्के से आजादी मांगतीं, वह सीएए से आजादी क्या मांग रही हैं.

यह तो नहीं हो सकता कि उनके शौहर उनको बुर्के में बंद रखें और प्रदर्शनस्थल पर जाने की इजाजत दे दें. इतनी हिम्मत है तो खुद बैठें वहां पर, बच्चों और बीवियों को क्यों बैठाया हुआ है. यह चाइल्ड एब्यूज है, बच्चों का शोषण है.

लेखक के तौर पर उन्होंने इस कानून को लागू होने की बात पर कहा, 'मुझे कुछ दिनों पूर्व दिल्ली में काबुल के एक सिख मिले, जिनके सामने पहचान का संकट था. तो यह तो सिर्फ उन लोगों के लिए है जो 2015 से पहले आए थे, लोगों को इसे समझना चाहिए.'

सीएए के विरोध में शिक्षण संस्थानों को निशाना बनाए जाने पर उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी में सियासत तो होती है, ये अच्छी बात है कि बच्चे अपनी बात रख रहे हैं. लेकिन उन्हें सही दिशा देने की जरूरत है.

राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के बारे में फतेह ने कहा, 'मुझे ऐसा लगता है कि मुस्लिमों को डर है कि अगर बंगाल में विस्थापित हिंदुओं को नागरिकता मिल गई तो उन्होंने मेहनत करके जो अपनी जगह बनाई है, वह छिन जाएगी, बंगाल में उनकी संख्या कम हो जाएगी.

यही पूरे मुद्दे की जड़ है. कोई चीज ऐसी नहीं है, जिससे किसी को नुकसान हो. रही बात एनआरसी की तो वह तो अभी बना ही नहीं है. यह तो आगे की बात है, लेकिन पूरा मामला मुस्लिम राष्ट्रीयता का ही है.'

तीन तलाक के मुद्दे पर तारिक फतेह ने कहा कि कुछ लोगों की मानसकिता है कि उनकी कई बेगमें हों, पहली को तलाक दें, इसका रास्ता है ट्रिपल तलाक.
इसका सेक्युलरिज्म से कोई लेना-देना नहीं है. अगर सेक्युलरिज्म की बात की जाए तो देश में मुस्लिम फैमली बोर्ड नहीं होना चाहिए, पर्सनल लॉ बोर्ड भी हटना चाहिए, समान नागरिक संहिता होनी चाहिए.

ये तो नहीं हो सकता कि सीएए में सेक्युलरिज्म की बात करें और ट्रिपल तलाक का बहिष्कार भी करें. हलाला की इजाजत हो, ये नहीं हो सकता. दोनों बातें नहीं हो सकतीं. बहुविवाह पर पाबंदी लगनी चाहिए.

अयोध्या आने के सवाल पर उन्होंने कहा, 'मैं तो पहली बार आया हूं यहां. मेरे लिए यह हज की तरह था. फैसला तो हो गया. जिन लोगों ने हमें हिंदुस्तान में पनाह दी, हमें उनके प्रति कृतज्ञ रहना होगा.

यहां पांच हजार साल पुरानी सभ्यता है, मुसलमान बाद में यहां आए, बाहर से आए.बाहर से आकर आप यहां अपना राज तो नहीं चला सकते हैं. यह ठीक उसी तरह है, जैसे अमरिका में जाकर सोवियत यूनियन का राज नहीं चलाया जा सकता.'

Last Updated : Feb 25, 2020, 4:20 PM IST

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