नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार मरीजों, जिन्हें मलेरिया निरोधी दवाएं - हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन तथा एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन मिला कर दी जा रही हैं, उनके इलाज के दिशा-निर्देशों में किसी प्रकार के बदलाव का निर्देश देने से इनकार कर दिया. न्यायालय ने कहा कि वह इसका विशेषज्ञ नहीं है.
न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने गैर सरकारी संगठन पीपुल फॉर बेटर ट्रीटमेंट की याचिका पर वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से सुनवाई करते हुए कहा कि कोरोना के उपचार के लिए अभी तक कोई दवा नहीं है और डॉक्टर अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं.
पीठ ने कहा कि उपचार के निर्देशों के बारे में निर्णय लेना डाक्टरों का काम है. अदालतें इसकी विशेषज्ञ नहीं हैं और वह यह निर्णय नहीं ले सकतीं कि किस तरह का उपचार किया जाना चाहिए.
पीठ ने इस संगठन के अध्यक्ष एवं ओहायो स्थित भारतीय मूल के चिकित्सक कुणाल साहा से कहा कि वह अपनी याचिका भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के पास प्रतिवेदन के रूप में ले जाएं जो उनके सुझावों पर विचार कर सकती है.