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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बढ़ सकता है परमाणु खतरा : रिपोर्ट

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर जारी की गई एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि परमाणु हथियारों से संबंधित अनुप्रयोगों को विकसित या तैनात करने से पहले ही रणनीतिक संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है और सैन्य एआई समय से पहले अपनाने से परमाणु जोखिम बढ़ सकता है.

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Published : Jun 23, 2020, 11:04 AM IST

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

हैदराबाद : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में हालिया प्रगति, विशेष रूप से मशीन चलाने की स्वायत्तता और परमाणु हथियारों से संबंधित क्षमताओं की एक विस्तृत श्रृंखला में प्रारंभिक चेतावनी से लेकर कमान व नियंत्रण और हथियार वितरण तक नई और विविध संभावनाओं को खोल सकता है. इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में किया गया है.

मशीन चलाना और स्वायत्तता कोई नई बात नहीं है, लेकिन इन क्षेत्रों में हाल के घटनाक्रमों ने स्वचालित प्रणालियों के विकास को और सक्षम किया है. यह उन जटिल समस्याओं को भी हल कर सकते हैं, जिसमें पहले इंसानों के हस्तक्षेप की जरूरत होती थी.

अब अहम सवाल यह है कि कब, कैसे और किसके द्वारा एआई में हुए विकास को परमाणु-संबंधी उद्देश्यों के लिए अपनाया जाएगा. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआईपीआरआई) के वरिष्ठ शोधकर्ता और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक डॉ विंसेंट बोलनिन कहते हैं कि इस स्तर पर इन सवालों के जवाब केवल काल्पनिक हो सकते हैं, लेकिन परमाणु-सशस्त्र राज्य अपने परमाणु बलों में एआई की वर्तमान और भविष्य की भूमिका के बारे में पारदर्शी नहीं रहे हैं.

रिसर्च से पता चलता है कि सभी परमाणु-सशस्त्र राज्यों ने एआई की सैन्य खोज को प्राथमिकता दी है और कई विश्व नेता इस क्षेत्र में कार्यरत हैं.

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यह परमाणु हथियारों से संबंधित अनुप्रयोगों को विकसित या तैनात करने से पहले ही रणनीतिक संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है और सैन्य एआई समय से पहले अपनाने से परमाणु जोखिम बढ़ सकता है.

लेखकों का तर्क है कि यह परमाणु-सशस्त्र राज्यों के लिए विशेष रूप से सैन्य उद्देश्यों के लिए एआई प्रौद्योगिकी को अपनाने और विशेष रूप से परमाणु-संबंधित उद्देश्यों के लिए जल्दबाजी होगी.

सीआईपीआरआई के सीनियर फेलो ऑन आर्ममेंट में एंड डिसआर्मामेंट सहयोगी डॉ लॉरा सालमान का कहना है कि एआई के समय से पहले हासिल करने से जोखिम बढ़ सकता है और परमाणु हथियार और संबंधित क्षमताएं विफल हो सकती हैं.

इसके अलावा इनका दुरुपयोग भी किया जा सकता है, जो आकस्मिक या अनजाने में हुए संघर्ष को परमाणु संघर्ष में बदल सकता है. हालांकि, यह संभावना नहीं है कि एआई प्रौद्योगिकियां- जोकि हासिल की जा सकती हैं- परमाणु हथियार के उपयोग के लिए निशाना होंगी.

उन्होंने कहा कि हमें क्षेत्रीय रुझान, भू-राजनीतिक तनाव और गलत व्याख्या किए गए संकेतों को भी समझना होगा कि एआई प्रौद्योगिकियां परमाणु स्तर पर किसी संकट को बढ़ाने में कैसे योगदान दे सकती हैं.

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राष्ट्रीय एआई विकास पर पारदर्शिता और विश्वास-निर्माण के उपाय इस तरह के जोखिमों को कम करने में मदद करेंगे. भविष्य के परमाणु जोखिम में कमी के प्रयासों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चुनौतियों को संबोधित किया जाना चाहिए.

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रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, परमाणु क्षेत्र में एआई की चुनौतियों को भविष्य के परमाणु जोखिम में कमी की चर्चाओं में प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

सीआईपीआरआई के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ पेट्र टॉपिकानकोव का कहना है कि यह महत्वपूर्ण है कि हम उस खतरे को कम करें, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रणनीतिक स्थिरता और परमाणु के लिए जोखिम है. हालांकि एआई से संबंधित जोखिमों पर अभी भी अटकलें हैं.

परमाणु हथियार संपन्न राज्यों और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा समुदाय के लिए यह जल्दबजी नहीं है कि वह उन जोखिमों को कम करें, जो परमाणु हथियार प्रणालियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लागू करने से शांति और स्थिरता कायम करेंगे.

रिपोर्ट में परमाणु-सशस्त्र राज्यों के लिए कई उपायों का प्रस्ताव है, जैसे कि मौलिक एआई सुरक्षा और सुरक्षा समस्याओं को हल करने में सहयोग करना, संयुक्त रूप से हथियारों के नियंत्रण के लिए एआई के उपयोग की खोज करना और परमाणु बलों में एआई के उपयोग के लिए ठोस सीमाओं पर सहमत होना.

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