हैदराबाद : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में हालिया प्रगति, विशेष रूप से मशीन चलाने की स्वायत्तता और परमाणु हथियारों से संबंधित क्षमताओं की एक विस्तृत श्रृंखला में प्रारंभिक चेतावनी से लेकर कमान व नियंत्रण और हथियार वितरण तक नई और विविध संभावनाओं को खोल सकता है. इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में किया गया है.
मशीन चलाना और स्वायत्तता कोई नई बात नहीं है, लेकिन इन क्षेत्रों में हाल के घटनाक्रमों ने स्वचालित प्रणालियों के विकास को और सक्षम किया है. यह उन जटिल समस्याओं को भी हल कर सकते हैं, जिसमें पहले इंसानों के हस्तक्षेप की जरूरत होती थी.
अब अहम सवाल यह है कि कब, कैसे और किसके द्वारा एआई में हुए विकास को परमाणु-संबंधी उद्देश्यों के लिए अपनाया जाएगा. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआईपीआरआई) के वरिष्ठ शोधकर्ता और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक डॉ विंसेंट बोलनिन कहते हैं कि इस स्तर पर इन सवालों के जवाब केवल काल्पनिक हो सकते हैं, लेकिन परमाणु-सशस्त्र राज्य अपने परमाणु बलों में एआई की वर्तमान और भविष्य की भूमिका के बारे में पारदर्शी नहीं रहे हैं.
रिसर्च से पता चलता है कि सभी परमाणु-सशस्त्र राज्यों ने एआई की सैन्य खोज को प्राथमिकता दी है और कई विश्व नेता इस क्षेत्र में कार्यरत हैं.
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यह परमाणु हथियारों से संबंधित अनुप्रयोगों को विकसित या तैनात करने से पहले ही रणनीतिक संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है और सैन्य एआई समय से पहले अपनाने से परमाणु जोखिम बढ़ सकता है.
लेखकों का तर्क है कि यह परमाणु-सशस्त्र राज्यों के लिए विशेष रूप से सैन्य उद्देश्यों के लिए एआई प्रौद्योगिकी को अपनाने और विशेष रूप से परमाणु-संबंधित उद्देश्यों के लिए जल्दबाजी होगी.
सीआईपीआरआई के सीनियर फेलो ऑन आर्ममेंट में एंड डिसआर्मामेंट सहयोगी डॉ लॉरा सालमान का कहना है कि एआई के समय से पहले हासिल करने से जोखिम बढ़ सकता है और परमाणु हथियार और संबंधित क्षमताएं विफल हो सकती हैं.