नई दिल्ली: नोटा, यानि नॉन ऑफ द अबव. यह विकल्प एक तरफ वोटरों के लिए उत्सुकता जगाए रखता है, वहीं उम्मीदवार इससे लगातार परेशान हो रहे हैं. कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है, जिस पर उम्मीदवार को यकीन करना मुश्किल हो जाता है. वे हारते तो बहुत कम मतों से हैं, लेकिन नोटा में मतो की संख्या उससे कई गुणा ज्यादा होता है.
पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए नोटा पीड़ित किसानों, बेरोजगार युवाओं और असंतुष्ट जनता को नोटा पर बटन दबाने के लिए मजबूर कर सकता है. इस बारे में जब सेवानिवृत्त अधिकारी कमलकांत जायसवाल से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि मैं खुद नोटा का इस्तेमाल कर चुका हूं.
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