नई दिल्ली :भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे और विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने रणनीति और सेना से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए दो दिवसीय यात्रा पर म्यांमार गए हैं. दोनों ने रविवार सुबह म्यांमार की राजधानी नेपीडॉ (Naypyitaw) के लिए उड़ान भरी.
इस बीच पूर्वोत्तर विद्रोहियों की एक संयुक्त टीम ने अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग में असम राइफल्स के सैनिकों के लिए पानी ले जाने वाले ट्रक पर घात लगाकर हमला किया.
इस हमले में एक सैनिक की जान चली गई, जबकि एक अन्य गंभीर रूप से घायल हो गया. यह हमला दो शक्तिशाली संगठनों द्वारा अपने इरादे से अवगत कराना और अपनी उपस्थिति महसूस कराने के लिए किया गया. इसमें परेश बरुआ की अगुवाई वाला गुट यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा-इंडिपेंडेंट) और खापलांग गुट नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-के) शामिल हैं.
जनवरी-फरवरी 2019 के बाद से, म्यांमार के सगाइंग के तागा में उनके मुख्य ऑपरेशनल बेस में तात्माडॉ (Tatmadaw) या म्यांमार सेना द्वारा किए गए हमले के बाद पूर्वोत्तर विद्रोही बैकफुट पर रहे हैं.
विद्रोहियों द्वारा रविवार को क्लासिक गुरिल्ला पैटर्न में हमला किया गया. पहले आईईडी विस्फोट किया गया. इसके बाद स्वचालित बंदूकों से लगातार फायरिंग की गई.
पश्चिमी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की सीमा रेखा और पूर्वी क्षेत्र में मैकमोहन रेखा में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच बढ़ते तनाव से विद्रोहियों के हौसले बुलंद हैं. भारत-म्यांमार विचार-विमर्श के नवीनतम दौर के बीच इस हमले का तात्कालिक कारण हो सकता है.
इस हमले ने सशस्त्र एआर सैनिकों के साथ पानी के टैंकर जैसे नरम निशाने से पूर्वोत्तर विद्रोहियों के दृष्टिकोण का खुलासा किया है. यह महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला और अन्य रसद की भेद्यता के लिए एक रूपक हो सकता है.
भारत-चीन सीमा पर सैनिकों की अभूतपूर्व तैनाती और जमावड़े के बीच, भारतीय सेना को न केवल एलएसी के साथ, बल्कि मैकमोहन रेखा पर भी जवानों को तैनात करना होगा, जिसका पूर्वोत्तर के विद्रोही फायदा उठाना चाहेंगे.
हालांकि, विद्रोही हमला कर भागने की गुरिल्ला रणनीति का ही सहारा लेंगे, लेकिन रविवार का हमला अप्रत्याशित स्थितियों में आश्चर्यजनक हमलों की शुरुआत है. आने वाले दिनों में इस तरह के हमले बढ़ सकते हैं.
पूर्वोत्तर के विद्रोही समूहों में से अधिकांश 60,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं, जो अरुणाचल प्रदेश के उत्तर से मणिपुर के दक्षिण में लगभग 1,300 किमी की लंबाई में फैला है. म्यांमार में चिंदविन नदी तक लगभग 50 किमी चौड़ा क्षेत्र भी इसमें आता है.
हालांकि, जनवरी 2019 में 'तात्माडॉ' के हमले के बाद विद्रोहियों के चीन-म्यांमार सीमा की ओर विस्थापित होने की बात सामने आई है. यह क्षेत्र काफी हद तक म्यांमार के कब्जे वाले क्षेत्र में नहीं आता है.
यह वही क्षेत्र है, जहां असम, मणिपुर और नागालैंड के लगभग 50 विद्रोही समूह रहते हैं और हमले करने बाद वह यहां के घने जंगल मार्गों के माध्यम से झरझरा सीमा पार कर म्यांमार के अपने ठिकानों पर आसानी से वापस चले जाते हैं.
यह भी पढ़ें- पूर्वोत्तर में युवाओं को उग्रवाद की ओर धकेल रही बेरोजगारी
यह क्षेत्र कई समूहों में विभाजित घातक गुरिल्ला फाइटर का ठिकाना होने के साथ यहां खतरनाक कीड़े और जंगली पौधे पाए जाते हैं, जिसे छूने पर गहरे चकत्ते हो सकते हैं.
पूर्वोत्तर के विद्रोहियों के अलावा, यह बिना कानून वाला क्षेत्र म्यांमार के कई उग्रवादी समूहों का भी ठिकाना है, जो म्यांमार के खिलाफ लड़ रहे हैं. इनमें मंदारिन बोलने वाले 'वा' लोग और काचिन्स शामिल हैं. चीन द्वारा समर्थित मानी जाने वाली अराकानी सेना इस 'वाइल्ड ईस्ट' क्षेत्र के दक्षिण में चीनी निर्मित हथियारों से लैस एक शक्तिशाली बल के रूप में उभर रही है.