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कोरोना मरीजों के शव परीक्षण के लिए इन्वेसिव टेक्निक से बचें : आईसीएमआर - corona virus havoc

कोरोना वायरस के संक्रमण से होने वाली मौत के मामले में आईसीएमआर ने बड़ी बात कही है. परिषद ने अपने मसौदे में कहा है कि इस तरह के मौत के मामले में फॉरेंसिक शव परीक्षण के लिए 'इन्वेसिव टेक्निक’ को नहीं अपनाया जाना चाहिए. जानें, इस पूरे मामले में परिषद ने क्या कहा.....

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

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Published : May 12, 2020, 3:25 PM IST

Updated : May 12, 2020, 4:44 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना वायरस के संक्रमण से हुई मौत के मामलों में फॉरेंसिक शव परीक्षण के लिए 'इन्वेसिव टेक्निक’ को नहीं अपनाया जाना चाहिए. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का कहना है कि डॉक्टरों एवं शवगृह के अन्य कर्मचारियों के लिये अंग से निकलने वाले तरल पदार्थ और स्राव से स्वास्थ्य जोखिमों का खतरा रहता है.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने अपने मसौदा दस्तावेज में यह बात कही है . परिषद का कहना है कि 'भारत में कोविड-19 से मौत के मामले में मेडिको-लीगल शव परीक्षण के लिए मानक दिशा-निर्देश के अंतिम मसौदे’ के अनुसार, कोरोना वायरस संक्रमण के कारण अस्पताल एवं चिकित्सीय देखभाल में होने वाली मौत गैर-एमएलसी (नॉन-मेडिको लीगल केस) मामला है और इसमें पोस्टमॉर्टम की आवश्यकता नहीं है और उपचार कर रहे डॉक्टरों द्वारा मौत का जरूरी प्रमाण पत्र दिया जा रहा है.

इन्वेसिव टेक्निक को नहीं अपनाए

कोविड -19 से संदिग्ध मौत के कुछ मामलों जिनमें लोगों को अस्पतालों में मृत लाया जाता है, उन्हें आपातकालीन चिकित्सक एमएलसी (मेडिको-लीगल केस) बता देते हैं और शव को शवगृह भेज दिया जाता है जिसके बारे में पुलिस को सूचना भेजी जाती है. ऐसे मामलों में मौत के कारणों का पता लगाने के लिये पोस्टमॉर्टम की आवश्यकता हो सकती है.

मसौदा दिशा-निर्देश में कहा गया है कि ऐसे मामलों में फॉरेंसिक शव परीक्षण से छूट दी जा सकती है.

इसमें कहा गया है कि कुछ मामले आत्महत्या, हत्या एवं हादसों के होते हैं, जो कोरोना वायरस संक्रमण के संदिग्ध एवं संक्रमित मामले हो सकते हैं. जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद, अगर किसी अपराध का संदेह नहीं है तो पुलिस के पास यह शक्ति है कि वह एमएलसी केस होने के बावजूद मेडिको लीगल शव परीक्षण से छूट दे सकती है.

अनावश्यक शव परीक्षण रोका जाए

मसौदा में कहा गया है, 'जांच करने वाले पुलिस अधिकारी को ऐसी महामारी की स्थिति के दौरान अनावश्यक शव परीक्षण को रोकने के लिये सक्रिय होकर कदम उठाने चाहिए.'

सर्जिकल प्रक्रिया से बचा जाए

फॉरेंसिक शव परीक्षण के दौरान हड्डियों एवं ऊतकों के विच्छेदन से एरोसोल का निर्माण होगा जिससे संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है. बाहरी परीक्षणों, विभिन्न तस्वीरों एवं मौखिक शव परीक्षण के आधार पर.... किसी भी इन्वेसिव सर्जिकल प्रक्रिया से बचते हुए पोस्टमॉर्टम किया जाना चाहिये और कोशिश होनी चाहिये कि उस दौरान वहां मौजूद डॉक्टर एवं अन्य कर्मचारी मृत व्यक्ति के शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में नहीं आएं.

अंतिम रिपोर्ट तक शव को ना हटाएं

आईसीएमआर के मसौदा दिशा-निर्देश के अनुसार अगर कोविड-19 जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा है तो अंतिम रिपोर्ट आने तक शव को शवगृह से नहीं हटाया जाना चाहिये तथा औपचारिकताओं के बाद शव जिला प्रशासन को सौंपा जाना चाहिये.

इसमें कहा गया है, 'किसी भी समय शव के पास दो से अधिक रिश्तेदारों को मौजूद होना चाहिये और उन्हें शव से एक मीटर की दूरी पर अवश्य रखनी चाहिए.'

सावधानी बरतना आवश्यक

इसमें कहा गया है, 'प्लास्टिक बैग के जरिये रिश्तेदारों से शव की शिनाख्त कराई जानी चाहिए और ऐसा कानून लागू करने वाली एजेंसियों की उपस्थिति में किया जाना चाहिए.'

इसमें यह भी कहा गया है कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों की उपस्थिति में शव को अंत्येष्टि के लिये श्मशान ले जाना चाहिये, जहां पांच से अधिक रिश्तेदारों को मौजूद रहने की अनुमति नहीं दी जानी ​चाहिए.

Last Updated : May 12, 2020, 4:44 PM IST

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