इस मुद्दे पर चर्चा करने से पहले, जम्मू-कश्मीर के अधिवास के परिपेक्ष्य की ओर ध्यान आकर्षित किया जाना चाहिए. पांच अगस्त, 2019 तक, जब नई दिल्ली ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला किया, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया हुआ था और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित किया, कौन जम्मू-कश्मीर का अधिवासी है और कौन नहीं यह निर्धारित करने का संवैधानिक अधिकार सिर्फ जम्मू-कश्मीर विधानसभा को पास सौंपा गया. इसी प्रसंग में, सिर्फ तय किए गए अधिवासी ही राज्य में नौकरी के लिए आवेदन दे सकते थे (केंद्रीय सिविल सेवा के अलावा) या अचल संपत्ति खरीद सकते थे.
वास्तव में, जम्मू-कश्मीर के अधिवास का मुद्दा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 से भी पहले का है. 1927 और 1932 में तत्कालीन, और राज्य के अंतिम शासक, महाराजा हरि सिंह द्वारा बनाए गए कानूनों ने नागरिकता और नागरिकों के परिचर लाभों को परिभाषित किया था. इन कानूनों को स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A में उचित रूप से अपनाया गया था.
सरकार के प्रारंभिक आदेश में जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए केवल अराजपत्रित पद आरक्षित थे, जिसके कारण सभी प्रमुख राजनीतिक दलों जैसे नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और यहां तक कि नए राजनीतिक दल 'अपनी पार्टी', जिसे व्यापक रूप से केंद्र सरकार के समर्थन प्राप्त है, समेत राजनीतिक दायरों में विरोध को दर्ज कराया गया. घाटी में विवाद का जवाब में, नई दिल्ली ने नियमों में संशोधन किया है. अब नियमों अंतिम रूप देते हुए, यह तय किया गया है कि केवल जम्मू-कश्मीर के अधिवासी केंद्र शासित प्रदेश में नौकरियों के लिए आवेदन करने में सक्षम होंगे. नियम यह भी निर्धारित करते हैं कि केंद्रशासित प्रदेश में बाहर के लोग, जो 15 वर्षों से जम्मू-कश्मीर के निवासी हैं, को अधिवासियों के रूप में गिना जाएगा और इसलिए वह भी नौकरियों के लिए आवेदन करने में सक्षम होंगे.
यहां तक कि इन संशोधित नियमों का कश्मीर घाटी के राजनीतिक वर्ग द्वारा विरोध किया जा रहा है. पीडीपी ने कहा कि 'हमारे युवाओं के भविष्य को सुरक्षित बनाने के साथ-साथ, भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकी पर हमले के बारे में फैली आशंका को संबोधित करना चाहिए. सांकेतिक रियायत, जिसमें पिछला दरवाजा नए अधिवासियों के लिए खुला छोड़ दिया गया है, वह सिर्फ जानलेवा महामारी के दौरान केंद्र सरकार द्वारा हड़बड़ी में पिछले नियमों के कलंक को कम करने की मात्र एक कोशिश है.'
राज्य और इसकी राजनीतिक और जातीय रचना पर पड़ने वाले स्थाई प्रभाव के अलावा, संशोधन से पहले वाले कानून के बारे में वर्त्तमान चिंताएं भी थीं. रिपोर्टों के अनुसार, केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में लगभग 84,000 नौकरी की रिक्तियां हैं और इन नियमों के नई अधिवासियों की भर्ती की प्रक्रिया के लिए प्रमुख निहितार्थ होंगे जो संशोधन के बाद कम गंभीर होंगे.