नई दिल्ली:राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और प्रधानमंत्री मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' के आव्हान को उचित दिशा में उठाया गया कदम और नीतिगत बदलाव बताया है. बुधवार को एक वेबिनार के माध्यम से अपने संबोधन के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि भारत के विश्वगुरु होने की दिशा में इन नीतियों का बहुत अच्छा योगदान रहने की प्रबल संभावना है.
मोहन भागवत ने आगे कहा कि विश्व मानता है कि सब देश अपनी हस्ती मिटा कर एक बाजार के एक मॉडल को अपनाएँ लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है. आत्मनिर्भर राष्ट्रों के परस्पर सद्भावनापूर्वक सहयोग करते हुए ग्लोबल मार्केट नहीं बल्कि ग्लोबल फैमिली की तरह संभव हो सकता है
कोरोना महामारी का उदाहरण देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि इस काल में हर देश को अपनी अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ी है, सिर्फ भारत ही ऐसा देश है जिसने अपनी दवाइयाँ अन्य देशों को भेजी हैं बाकी देशों के पास भेजने के लिए कुछ नहीं था. विश्व की तुलना में भारत की अर्थनीति को बेहतर बताते हुए भागवत ने कहा कि दुनिया में तमाम तरह के आर्थिक उतार चढ़ाव देखने को मिले लेकिन उनका प्रभाव भारत पर सबसे कम हुआ. उसी तरह कोरोना महामारी का भी असर भारत में कम है, यहाँ के लोग सावधान और अनुशाषित हैं लेकिन उनके भीतर इसका भय बाकी देशों की तुलना में कम है. यह सारी बातें आत्मनिर्भरता की आत्मा से ही आती हैं.
कार्यक्रम के दौरान 'आत्मनिर्भर भारत' पर लिखी गई एक किताब का विमोचन करते हुए आरएसएस प्रमुख ने किताब में सुझाए गए विचारों की भी सराहना की. मोहन भागवत ने कहा कि देश में जो आर्थिक नीति स्वतंत्रता के बाद बननी चाहिए थी वह नहीं बनी. हमारे यहाँ अर्थशास्त्र का विचार करते समय वास्तविक समृद्धि का विचार करते हैं, यह नहीं हुआ इसलिये हम पिछड़ गए. मौजूदा नीतियों की सराहना करते हुए भागवत ने कहा कि यह अच्छा है कि अब शुरू हो गया है और उस दिशा में हम कदम बढ़ा रहे हैं. लेकिन इसको करने वाले लोग सिर्फ सरकार में बैठे लोग नहीं होते हैं बल्कि जनता भी होती है.