नई दिल्ली : क्या भारत अमेरिकी प्रतिबंधों के डर से निवेश में देरी के लिए ईरान की रेलवे परियोजना से बाहर कर दिया गया है? विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को चाबहार बंदरगाह और चाबहार-जाहेदान रेल परियोजना पर मीडिया रिपोर्टों को महज अटकलबाजी बताया है.
भारत और ईरान ने चार साल पहले चाबहार बंदरगाह से ज़ाहेदान तक 628 किलोमीटर रेल लाइन के निर्माण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. यह रेल लाइन अफगानिस्तान में जरंज तक विस्तारित होगा. ईरानी सरकार ने पिछले सप्ताह पटरी बिछाने का कार्य शुरू कर दिया है. कहा जा रहा है कि ईरान अब खुद इस रेल लाइन का निर्माण करेगा.
अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने रिपोर्ट किया था कि ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों के डर के कारण से निवेश करने में अनिच्छा के कारण भारत को चाबहार-जाहेदान रेल परियोजना से हटाया गया.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने गुरुवार को कहा कि जहां तक प्रस्तावित रेलवे लाइन का सवाल है, इस परियोजना की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए भारत सरकार द्वारा इरकॉन को नियुक्त किया गया था. यह सीडीटीआईसी के साथ काम कर रहा था, सीडीटीआईसी एक ईरानी कंपनी है. उन्होंने कहा कि इरकॉन (IRCON) ने साइट निरीक्षण और व्यावहारिकता रिपोर्ट की समीक्षा पूरी कर ली है.
हालांकि, मीडिया रिपोर्ट को स्पष्ट रूप से नकारे बिना विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने संकेत दिए कि अफगानिस्तान के रास्त मध्य एशिया तक पहुंच के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस रेल परियोजना में शामिल होने के लिए भारत के लिए अभी भी दरवाजे खुले हो सकते हैं.
अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि परियोजना के अन्य प्रासंगिक पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई, जिसमें ईरान के सामने मौजूद वित्तीय चुनौतियों का ध्यान रखना था. दिसंबर 2019 में तेहरान में 19वीं भारत-ईरान संयुक्त आयोग की बैठक में इन मुद्दों की विस्तार से समीक्षा की गई. ईरानी पक्ष को उत्कृष्ट तकनीकी और वित्तीय मुद्दों को अंतिम रूप देने के लिए एक अधिकृत संस्था को नामित करना था, जो अभी भी प्रतीक्षित है.
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साल 2016 में हुए समझौता के तहत, भारत सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी इरकॉन ने लगभग 1.6 बिलियन डॉलर की अनुमानित इस परियोजना के लिए सभी सेवाएं और धन उपलब्ध कराने का संकल्प लिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तेहरान यात्रा के दौरान ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ चाबहार समझौते पर हस्ताक्षर करने के दौरान इस बात पर सहमति व्यक्त की गई थी कि पाकिस्तान की वजह से काबुल के साथ सड़क मार्ग से व्यापार करने में भारत की अक्षमता को देखते हुए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी पर अधिक ध्यान दिया जाएगा.
वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा से विशेष चर्चा में द हिंदू की संपादक (विदेश मामले) सुहासिनी हैदर ने कहा, 'चाबहार को भारत के लिए एक बड़े भू-रणनीतिक द्वार के रूप में स्थापित किया गया था, इसका एक कारण यह था कि भारत पड़ोसी देश पाकिस्तान द्वारा पैदा की जाने वाली समस्याओं से दूर जा सकेगा, जिसने भारत व अफगानिस्तान और भारत व मध्य एशिया के बीच व्यापार को लगातार रोका या बाधित किया है. भारत के लिए पाकिस्तान की समस्या के निजात पाने के लिए चाबहार रेल परियोजना अच्छा कदम था. यह रेल लाइन अफगानिस्तान तक जाती है, और फिर यह विशेष रेल लाइन तुर्कमेनिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक जाएगी. यदि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा नहीं चलाया जा सकता है, तो यह करने का एक और तरीका है.'