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गांधी नहीं होते, तो सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की शायद ही होती ऐसी भागीदारी

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज 10वीं कड़ी...

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Published : Aug 25, 2019, 7:01 AM IST

Updated : Sep 28, 2019, 4:33 AM IST

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इतिहासज्ञ रामचंद्र गुहा के शब्दों में गांधी ने महिलाओं के उत्थान और उनका उद्धार करने में अहम योगदान निभाया है. इसके लिए महिलाओं को सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में शामिल करना उनका सबसे अहम कदम माना जाता है. गांधी ने उन महिलाओं को आजादी के आंदोलनों में शामिल किया, जिनका जीवन आम तौर पर घर की रसोई में बीत जाया करता था.

इस बारे में महिला कार्यकर्ता रुचिरा गुप्ता कहती हैं कि आज हमारे देश समेत दुनिया भर में राजनीति मुख्य रूप से पुरूष के हाथों में है. वहीं इसके विपरीत गांधी जी ने अग्रंजों की सेना को 'महिलावाद' के हथियार से धूल चटाई थी.

हां, यह सच है. गांधी के लिए अहिंसक सत्याग्रह आंदोलनों के प्रेरक उनकी मां पुतली बाई और उनकी पत्नी कस्तूरबा बाई थीं. बापू हमेशा असहयोग आंदोलनों के लिए उनकी मां और पत्नी से मिले सबक को याद करते थे. उन्होंने बड़ी संख्या में दक्षिण अफ्रीका और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं को अहिंसक कार्यकर्ताओं के रूप में शामिल किया. गांधी ने कांग्रेस संगठन का रूपांतरण किया, जो लोगों को बड़े आंदोलनों के लिए सिर्फ याचिकाओं को प्रस्तुत करने तक सीमित थी. इस प्रक्रिया में उन्होंने बड़ी संख्या में महिलाओं को आंदोलनों में भाग लेने के प्रेरित और प्रोत्साहित किया.

महिलाओं के सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश करने के कारण दो बड़े बदलाव हुए. पहला ये कि महिलाएं सक्रिय हुईं और दूसरा महिला कार्यकर्ताओं के साथ काम करने के कारण पुरुषों की सोच में भी बदलाव आया. इस प्रकार उन्होंने महिलाओं को बराबरी का सम्मान देना सीखा.

बापू ने महिलाओं को दक्षिण अफ्रीका आश्रमों और अन्य आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद महिलाएं सबसे बड़ी खदान कर्मचारियों की हड़ताल में शामिल हुईं. भारत में गांधी का पहला आंदोलन चंपारण में हुआ था, जहां किसान आंदोलन में 25 प्रदर्शनकारियों में से 12 महिलाएं थीं. यहां शुरू हुए इस नए युग के संघर्ष ने नमक सत्याग्रह, दलित मुक्ति, भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों को और भी अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया.

1919 में गांधी के नेतृत्व में अहमदाबाद में कपड़ा उद्योग के मजदूरों ने हड़ताल की. वहीं अनसूया साराभाई ने 1921 के सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया, जहां महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया. इस दौरान विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, स्वदेशी आंदोलन आदि संघर्षों में महिलाओं की भूमिका उल्लेखनीय थी. बापू का मानना था कि जनसंख्या में 50% का भागीदार होने वाली महिलाएं, जब किसी भी आंदोलन में भाग लेंगी, तो वे जरूर सफल होगा. वह कहा करते थे कि जब कमजोर (अबला) एक मजबूत व्यक्ति (सबला) बन जाता है, तब एक असहाय व्यक्ति भी एक मजबूत व्यक्ति बनकर उभरता है.

महिलाओं ने उत्साहपूर्वक चरखा बुनाई, सूती कपड़े तैयार करने जैसे सामाजिक आंदोलनों में भाग लिया. बापू कहते थे कि महिलाएं चरखा बुनकर आर्थिक रूप से भी मजबूत हो सकती हैं. गांधी ने 1925 में सरोजिनी नायडू को कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यहां तक कि ब्रिटिश लेबर पार्टी, अमेरिकन डेमोक्रेटिक पार्टी जैसे प्रगतिशील दलों में भी उस वक्त महिलाएं नेता नहीं बन सकती थीं.

सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि जब उस वक्त 1919 के अधिनियम के तहत चुनाव हुए, तो गांधीजी ने महिलाओं को इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया. 1931 में गांधी जी की कोशिशों की वजह से कांग्रेस ने महिलाओं के लिए समान अधिकारों की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया. यह प्रस्ताव उनकी शिक्षा और पदनाम (ओहदा) सबसे परे था. अहम बात है कि उस वक्त यूरोप के कई देशों ने भी महिलाओं को वोट का अधिकार नहीं दिया था.

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गांधी जी ने स्वतंत्रता और सामाजिक आंदोलनों को समान प्राथमिकता दी और 1933 में हरिजन विकास यात्रा की शुरुआत की. इसका मुख्य उद्देश्य समाज में दलितों को समान अधिकार प्रदान कराना था, जिन्हें अछूत माना जाता था. इस दौरान महिलाएं उनके साथ खड़ी रहीं. आंध्रा सहित बापू की इस राष्ट्रीय यात्रा में महिलाओं ने अपने शरीर तक के गहने दान कर दिये थे.

दांडी सत्याग्रह में कई महिलाओं ने भाग लिया और वह गिरफ्तार भी हुईं. कस्तूरबा गांधी 37 महिला स्वयंसेवकों के साथ साबरमती आश्रम से निकलीं और कानून का उल्लंघन करते हुए नमक तैयार किया. वहीं सरोजिनी नायडू, कमला देवी चट्टोपाध्याय और अन्य ने नेताओं के रूप में अपनी भूमिका निभाई.

खिलाफत असहयोग आंदोलनों में मुस्लिम महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया. अहम बात ये है कि उस वक्त गांधीजी के साथ मुस्लिम महिलाएं पर्दा नहीं करती थीं, जो उनके आत्मविश्वास और गांधी के प्रति विश्वास को दर्शाता था. 1942 में गांधी ने ‘भारत छोड़ो' आंदोलन का आह्वान किया. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन पर आरोप लगाए. लेकिन बावजूद इसके महिलाएं पीछे नहीं हटीं. अरुणा आसफ अली ने इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. उषा मेहता ने एक गुप्त रेडियो का संचालन किया.

इसके बाद महिलाओं को सिर्फ आंदोलन में ही नहीं बल्कि मंत्री और राज्यपाल के रूप में भी नियुक्त किया गया. यहां तक कि संविधान सभा में (प्रारूपण के लिए) महिला सदस्य (राज कुमारी अमृत कौर, दुर्गा बाई देशमुख) थीं. हमारे संविधान ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया, जबकि उस समय कई विकसित देशों में भी इसकी अनुमति नहीं थी. गांधीजी से प्रेरित कई महिलाओं ने न केवल बड़ी संख्या में स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया बल्कि लंबी जेल की सजा भी झेली. गांधी जी ने महिला समाज को नई ऊर्जा और प्रेरणा प्रदान की. उनके सामाजिक आंदोलनों में भाग लेने से पुरुष समाज में भी उनका सम्मान बढ़ा. महिलाओं की समस्याओं, उनके अधिकारों और राष्ट्रीय आंदोलन के बारे में जागरूकता बढ़ी.

गांधी जी कहते थे, 'महिलाओं के साथ भेदभाव और छुआ-छूत ये दो ऐसी सामाजिक बुराइयां हैं, जो भारतीय समाज को प्रभावित कर रही हैं.' वे कहते थे, 'यदि कोई पुरुष शिक्षा प्राप्त करता है तो वह केवल शिक्षा ही प्राप्त करता है, लेकिन अगर एक महिला शिक्षित होती है, तो वह पूरे परिवार और समाज को शिक्षा प्रदान करती है.'

'केवल महिलाओं के सशक्तिकरण से ही एक शोषणमुक्त समाज संभव है.' स्वतंत्रता आंदोलनों ने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर हो रहे मतभेदों को दूर किया है. वास्तव में सत्याग्रही दलित महिलाओं द्वारा पकाया गया भोजन खाते थे. गांधीजी के कारण महिलाएं प्रबुद्ध हुईं और उन्होंने भी आंदोलनकारी महिलाओं से स्वतंत्र दृष्टिकोण प्राप्त किया. बापू ने खुद कई बार इस बात को कबूला था. महिलाएं गांधीजी को बहुत पसंद करती थीं.

आस-पास के लोगों की बातों पर ध्यान न देते हुए, गांधीजी ने नोआखाली के पास एक गांव में आभा गांधी को अपनी गुप्तचर के रूप में भेजा. ये धार्मिक दंगा प्रभावित इलाका था. वहीं आजादी के बाद के दंगों में एक अपहृत लड़की को बचाने के लिए मृदुला सराभाई जुट गईं थी. उन्होंने साफ तौर पर ये घोषित किया कि उन्हें ये साहस गांधी जी से हासिल हुआ.

कई इतिहासकारों ने लिखा है कि रूस और चीन में हुई क्रांतियों के मुकाबले भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में अधिक महिलाएं शामिल थीं. गांधीजी प्रेरणा थे. अगर आश्रम में कोई भी बीमार होता था तो गांधीजी स्वयं उसकी सेवा किया करते थे.

बापू के करीबी मनु गांधी ने एक किताब 'बापूजी मेरी मां हैं' लिखी थी. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गांधीजी राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की प्रेरित भागीदारी के लिए सबसे बड़े प्रेरणा स्त्रोत थे.

(लेखक- भास्कर)
आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी हैं. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.

Last Updated : Sep 28, 2019, 4:33 AM IST

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