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केरल का अनोखा मंदिर, जहां गणेश भगवान साक्षात हुए हैं प्रकट

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार केरल में गणेश भगवान का तकरीबन पांच हजार साल पुरान एक प्राचीन मंदिर है. मंदिर के पास ही मधुरवाहिनी नदी है. इस नदी के नाम पर ही मधुर महागणपति के नाम से मंदिर प्रसिद्ध हुआ है. इस मंदिर में प्राचीन कला का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है. पढ़ें ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट...

मधुर महागणपति
मधुर महागणपति

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Published : Aug 30, 2020, 9:08 PM IST

तिरुवनंतपुरम : केरल के मधुरवाहिनी नदी के तट पर गणेश भगवान का एक मंदिर स्थित है, जिसे मधुर महागणपति मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर गणेश भगवान के प्राचीन मंदिर में से एक है. मंदिर तकरीबन 5000 साल पुराना है. यह मंदिर स्थापत्य कला का अनोखा उदाहरण है.

शहरीकरण के चलते मंदिर के आस-पास के इलाकों में काफी बदलाव किया गया है, लेकिन मंदिर अपनी सुंदरता और प्राचीन वास्तुकला को समेट हुए अलग ही प्रतीत होता है.

इस मंदिर में गणेश भगवान की एक मिट्टी की मूर्ति है. ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति स्वंय प्रकट हुई है. मंदिर के मुख्य देवता शिव हैं, लेकिन यह मंदिर गणेश भगवान के मंदिर के नाम से अधिक लोकप्रिय है. इस मंदिर का न तो कोई त्योहार है और न ही कोई चढ़ावा चढ़ता है.

इस मंदिर में चढ़ावे के रूप में विनायक की मूर्ति की उपयोग करते हैं, जिसे मोडप्पा सेवा कहते हैं. मोडप्पा सेवा मीठे चावल और पूरी (pancake) को मिलाकर बनता है. गणेश भगवान को यह चढ़ावा नियमित नहीं चढ़ाया जाता है. कई वर्षों में भगवान गणेश को चढ़ावे के लिए विनायक मूर्ति चढ़ाई जाती है.

मंदिर की अन्य प्रतिमाओं की तुलना में भगवान गणेश की यह मूर्ति आकार में अद्वितीय है. भगवान गणेश का सूंड़ दाहिनी तरफ है और उनका मुख दक्षिण की तरफ है. वहीं भगवान शिव की प्रतिमा पूर्व दिशा में है.

मंदिर की वास्तुकला मालाबार क्षेत्र के कुछ लोकप्रिय मंदिरों जैसी है. मंदिर का पिछला हिस्सा देखने पर हाथी की पीठ जैसा दिखाई देता है. मंदिर की दिवारों पर जटिल नक्काशी की गई है. इतना ही नहीं दीवार को चित्रों से सजाया गया है. यह सभी मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं.

मंदिर में उत्तम शिलालेख भी हैं और इस प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार के समय मंदिर के प्रबंधन ने मूल संरचना से कुछ भी नहीं बदला है.

मंदिर में पांडवों की मूर्तियां भी हैं, जिससे यह पता चलता है कि यह मंदिर तकरीबन 5000 साल पुराना है.

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मंदिर के पास एक तालाब है. ऐसी मान्यताएं हैं कि इस तालाब के पवित्र जल में औषधीय गुण पाया जाता है. इतना नहीं लोगों का मनना है कि यहां पर स्नान करने से त्वचा संबंधी समस्या दूर हो जाती है. यह वही तालाब है, जिसने अपने मालाबार आक्रमण के दौरान टीपू का कायाकल्प किया था. ऐसा माना जाता है कि टीपू सुल्तान ने मंदिर पर हमला करने की योजना बनाई थी और उसने मंदिर की छत पर अपनी तलवार भी लहराई थी. टीपू सुल्तान की तलवार का निशान आज भी संरक्षित है, जो यह याद दिलाता है कि टीपू सुल्तान ने इस मंदिर पर आक्रमण किया था. लोकश्रुतियों के अनुसार टीपू सुल्तान ने मंदिर के तालाब का पानी पीने के बाद उसे नवचेतना महसूस हुई और उसने मंदिर पर हमला करने की योजना को त्याग दिया.

ऐसा माना जाता है कि माधरू नाम की एक महिला को एक शिवलिंग मिला था, जिसे महिला ने इस मंदिर में स्थापित कर दिया था.

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